BSP की वजह से दयाशंकर और स्वाति सिंह का राजनीतिक किरदार 'हिट'
लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती पर अभद्र टिप्पणी करने के बाद दयाशंकर पर सवाल हावी होते चले गए। और सिर्फ दयाशंकर ही नहीं बल्कि विरोधी दलों ने समस्त भाजपाईयों को कटघरे में खड़ा कर दिया। लेकिन लोगों के भीतर यह जानने की उत्सकुता थी कि आखिर दयाशंकर के द्वारा दिए गए इस तरह के बयान की असली वजह क्या है ?
दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति का ऐलान..मायावती के खिलाफ लड़ेंगी चुनाव
क्या बयान के जरिए चर्चा का केंद्र बनना ? या और ऊंचा औदा हासिल करने की चाह में नया प्रयोग किया गया ? हालांकि इस बीच जनता ने कहा कि हिट होने की चाह में दयाशंकर ने इस तरह का बयान दिया है लेकिन वे हिट नहीं हो पाए।
'क्या पुलिस और एसटीएफ वाले मायावती से डर रहे हैं ?'
स्वाती बनाम बसपा
मौजूदा स्थिति को देखने के बाद ये बात पूरी तरह से गलत साबित होती है। क्योंकि जहां एक ओर दयाशंकर द्वारा दिए गए बयान के बाद बहुजन समाज पार्टी को संजीवनी मिल गई, तो वहीं दूसरी ओर दयाशंकर की मां, बहन, बेटी पर बसपाईयों द्वारा की गई अभद्र टिप्पणी के बाद बसपा का राजनीति हो या फिर सामाजिक दृष्टि से पुरजोर विरोध शुरू हो गया। दयाशंकर की पत्नी ने अपमान को स्त्री बनाम स्त्री का रूप दिया।
स्वाती सिंह ने इस बात पर खासी तवज्जो दे दी
जी हां वो इसलिए क्योंकि स्वाति सिंह ने इस बात पर खासी तवज्जो दे दी कि गर उनके पति ने गलती की है तो उस पर उनकी सजा पार्टी निलंबित करके दे चुकी है, साथ ही दयाशंकर की गिरफ्तारी भी हो गई। लेकिन विवाद स्वाति बनाम पर आ गया। फिर तो इस फेहरिस्त में मायावती के साथ-साथ, नसीमुद्दीन सिद्दीकी एवं अन्य बसपा नेता भी थे।
''नसीम अंकल बताईये मुझे कहां पेश होने आना है''
बहरहाल ये पूरा मामला दयाशंकर समेत स्वाति सिंह को राजनीति में हिट करते चले गए और आज स्वाति माया को सीधी चुनौती देने की अवस्था में हैं।
सहानुभूति और हक की खातिर उठी आवाज
दयाशंकर के बयान के बाद ये मामला जितने लोगों के बीच नहीं पहुंचा उसे बसपाईयों के बयान, दूसरा स्वाति सिंह द्वारा की गई एफआईआर......और दयाशंकर की बेटी के द्वारा कहा गया वो शब्द ''नसीम अंकल बताईये मुझे कहां पेश होने के लिए आना है'' के जरिए लोगों के बीच पहुंच गया। सहानुभूति और हक की खातिर आवाज दयाशंकर की बिटिया के लिए लोगों ने जमकर उठाईं। और बसपा जिस मुद्दे को भुनाना चाहती थी, उसमें वह खुद ही उलझकर रह गई।
हाथी से रूठा क्षत्रिय
मायावती जिस क्षत्रिय वर्ग को साथ लेकर 2007 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार लाने में कामयाब हुई थीं, उसे 2012 में मायावती सही ढंग से साध न सकीं...और सूबे की सत्ता में अखिलेश सपा सरकार का झंडा लेकर काबिज हो गए। 2017 के चुनाव के लिहाज से माया ने एक बार फिर से सवर्ण, दलित, मुस्लिम मतदाताओं को जुटाने का प्रयास किया। लेकिन प्रयास की पहली कड़ी में दयाशंकर के दांव से वे सवर्ण वर्ग के बीच कमजोर पड़ती नजर आ रही हैं।
स्वाति कर रहीं BSP को वोट न देने की अपील
स्वाति सिंह बसपा सुप्रीमो मायावती को बार-बार चुनौती दे रही हैं। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दयाशंकर सिंह और उनकी पत्नी स्वाति सिंह पब्लिक मीटिंग कर बीएसपी को घेरने की कोशिश में हैं। दयाशंकर और उनकी पत्नी अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के बैनर तले काम कर रहे हैं, जिसके अध्यक्ष अपना दल के सांसद हरिबंश सिंह हैं। अपना दल का बीजेपी के साथ गठबंधन है।
दयाशंकर की पत्नी स्वाती लगातार पब्लिक मीटिंग कर रही हैं
बहरहाल इसमें दिलचस्प बात ये है कि दयाशंकर की पत्नी स्वाति लगातार पब्लिक मीटिंग कर लोगों से अपील कर रही हैं कि वे बसपा को कतई वोट न दें क्योंकि इस पार्टी में महिलाओं का सम्मान नहीं होता। बीते दिनों हाथरस में आयोजित एक पब्लिक मीटिंग के दौरान भाजपा उपाध्यक्ष रहे दयाशंकर सिंह ने कहा कि स्वाति राजनेता नहीं है लेकिन बीएसपी चीफ मायावती के खिलाफ सामान्य सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।
माया को उठाना पड़ सकता है नुकसान
क्षत्रिय महासभा के प्रमुख और प्रतापगढ़ के सांसद हरिबंश सिंह भी इस क्रम में कह चुके हैं कि उनका संगठन राज्य के सभी जिलों में कार्यक्रमों का आयोजन करेगा क्योंकि क्षत्रिय समुदाय का अपमान हुआ है। इसमें कुछ भी राजनीति नहीं है, समुदाय के लोग, चाहे वो किसी भी पार्टी के सदस्य हो इसमें शामिल होंगे।
बसपा को अच्छा खासा नुकसान हो सकता है
विश्लेषकों की मानें तो इससे बसपा को अच्छा खासा नुकसान हो सकता है। लेकिन इन सबके बीच स्वाति सिंह और दयाशंकर यूपी की सियासत में एक चर्चित नाम बन गए हैं। बल्कि सिर्फ सियासत में ही नहीं बल्कि लोगों के बीच भी खासा प्रभावी हैं।