2 जनवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने बनाया ऐतिहासिक, नेताओं, अनुराग ठाकुर और बीसीसीआई को किया ढेर
नए साल 2017 के पहले कामकाजी दिन 2 जनवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक बना दिया है। सुप्रीम कोर्ट के दिए गए इस फैसले को लोग लंबे समय तक याद रखेंगे और इसकी मिसाले भी देंगे।
नई दिल्ली। नए साल 2017 के पहले कामकाजी दिन 2 जनवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक बना दिया है। सुप्रीम कोर्ट के दिए गए इस फैसले को लोग लंबे समय तक याद रखेंगे और इसकी मिसाले भी देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ दो फैसले के जरिए देश के नेताओं और बीसीसीआई दोनों को ही ढेर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने जहां एक तरफ अहम फैसल में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी या उसके समर्थकों के धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगने को पूरी तरह से गैरकानूनी करार दिया है। वहीं दूसरी तरफ बीसीसीआई के अध्यक्ष और भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर को उनके पद से हटा दिया है। एक ही दिन में आए इन दोनों फैसलों ने देश की राजनीति से खेल जगत तक में एक खामोशी फैल गई है। एक तरफ जहां इन दोनों फैसलों का जमकर स्वागत किया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने जो फैसला दिया है, उसे लागे करना मुश्किल होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश मे चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है। चुनावों में वोट मांगना संविधान की भावना के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ करते हुए कहा कि जन के प्रतिनिधियों को भी अपने कामकाज को धर्मनिरपेक्षता के आधार पर ही करने चाहिए। कहा जा रहा है सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, गुजरात जैसे राज्यों में होने वाले चुनावों में होगा।
आपको बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करते हुए सवाल उठाया गया था कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत क्या धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-123(3) के तहत यह व्याख्या करनी थी कि आखिर जन प्रतिनिधि और उसके समर्थकों का धर्म का दायरा क्या है?
सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले में सुनवाई के दौरान जनप्रतिनिधित्व कानून के दायरे को और ज्यादा आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम जानना चाहते हैं कि धर्म के नाम पर वोट मांगने के लिए अपील करने के मामले में किसके धर्म की बात है?
चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी के धर्म की बात की जा रही है या फिर उसके समर्थकों के धर्म की बात की जा रही है। या फिर जिसके खिलाफ चुनाव लड़ा जा रहा है, उसके धर्म की बात की जा रही है। पहले इस मामले में आए निर्णय में कहा गया था कि जन प्रतिनिधत्व कानून की धारा-123(3) के तहत धर्म के मामले में व्याख्या की गई है कि उसके धर्म यानी चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी के धर्म की बात है।
धर्म
के
नाम
पर
वोट
मांगने
की
इजाजत
नहीं
देता
भारतीस
संविधान
सुप्रीम
कोर्ट
में
पिछले
छह
कामकाजी
दिनों
में
लगातार
इस
मामले
पर
सुनवाई
चल
रही
थी।
इस
मामले
में
वरिष्ठ
अधिवक्ता
एडवोकेट
श्याम
दीवान,
अरविंद
दत्तार,
कपिल
सिब्बल,
सलमान
खुर्शीद
और
इंदिरा
जय
सिंह
ने
पूर्व
और
संविधान
संबंधित
दलीलें
पेश
की।
वहीं
दूसरी
तरफ
सुप्रीम
कोर्ट
ने
बीसीसीआई
के
अध्यक्ष
अनुराम
ठाकुर
और
सचिव
अजय
शिर्के
को
न्यायाधीश
लोढ़ा
समिति
की
सिफारिशें
लागू
न
करने
पर
पद
से
हटा
दिया
है।
सुप्रीम
कोर्ट
के
इस
फैसले
के
बाद
बीसीसीआई
में
70
साल
से
अधिक
हो
चुके
पदाधिकारियों
को
पद
छोड़ना
होगा।
साथ
ही
सुप्रीम
कोर्ट
ने
अनुराग
ठाकुर
को
कोर्ट
की
अवमानना
का
नोटिस
भी
दिया
है।
अगर
यह
मामला
साबित
हो
जाता
है
तो
अनुराग
ठाकुर
जेल
भी
जा
सकते
हैं।
सुप्रीम
कोर्ट
ने
क्यों
चलाया
डंडा
जस्टिस
लोढा
समिति
की
सिफारिशें
न
लागू
करके
बीससीआई
लगातार
नरम
रवैया
ही
अपनाता
रहा।
बीसीसीआई
अपने
रुख
पर
कायम
रहते
हुए
कहता
रहा
कि
लोढ़ा
समिति
की
ज्यादातर
सिफारिशें
मान
ली
गई
हैं।
पर
इन
सिफारिशों
में
वैसे
कुछ
बातें
व्यवहारिक
नहीं
है
जिन्हें
लागू
नहीं
किया
जा
सकता
है।
इसमें
अधिकारियों
की
उम्र
और
कार्यकाल
का
मुद्दा,
अधिकारियों
के
कूलिंग
ऑफ
पीरियड
का
मुद्दा
और
एक
राज्य,
एक
वोट
की
सिफारिश
बोर्ड
को
मंजूर
नहीं
थीं।
आपको बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पिछली सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को चेतावनी देते हुए पूछा था कि कि आपको झूठी गवाही के लिए उनको सजा क्यों न दी जाए? इस पर एमिक्स क्यूरी गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि अनुराग ठाकुर के खिलाफ परजूरी का मामला बनता है। इसके चलते अनुराग ठाकुर पर कोर्ट की अवमानना का केस चलाया जा सकता है। अगर अनुराग ठाकुर बिना शर्त माफी नहीं मांगते हैं तो उन्हें जेल जाता पड़ सकता है।