अविश्वास प्रस्ताव: बीजेपी को डरा-धमकाकर समर्थन क्यों करती है शिवसेना?
नई दिल्ली। शिवसेना प्रेमिका की तरह रूठती है और थोड़ा मनाने पर मान भी जाती है। सुबह शिवसेना नेता संजय राउत ने ये कहकर बीजेपी के खेमे की सांसें फुला दी थीं कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ही तय करेंगे कि वो विपक्ष के लाए अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे या नहीं। इससे पहले संसद के बजट सत्र में जब टीडीपी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाई थी तो शिवसेना ने ऐलान किया था कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दौरान वो अनुपस्थित रहेगी। हालांकि गुरुवार दोपहर बाद पार्टी ने अपने सांसदों को व्हिप जारी करके सरकार के समर्थन में वोट करने के निर्देश दे दिए।
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अविश्वास प्रस्ताव पर बीजेपी को मिला शिवसेना का साथ
दरअसल अमित शाह और मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के साथ, शिवसेना के संबंध उतने अच्छे नहीं रहे जितने कि अटल-आडवाणी वाली बीजेपी और बाल ठाकरे वाली शिवसेना के थे। शिवसेना ने प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी का समर्थन तो किया था, लेकिन सरकार बनने के बाद ही दोनों दलों के बीच संबंधों में खटास पैदा हो गई। एक तो शिवसेना को मंत्रिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया और ऊपर से शिवसेना की आपत्ति के बावजूद सुरेश प्रभु को कैबिनेट में जगह दी गई।
शिवसेना ने जारी किया व्हिप
इसके बाद महाराष्ट्र में भी देवेंद्र फडनवीस सरकार के साथ कई मुद्दों पर टकराव होता रहा। उसके बाद हाल ही में हुए महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़ीं और शिवसेना को हार का मुंह देखना पड़ा। इन तमाम तल्खियों के बीच शिवसेना कई मुद्दों पर केंद्र और फडनवीस सरकार की खुलेआम आलोचना करती नजर आई। शिवसेना ये ऐलान भी कर चुकी है कि लोकसभा का चुनाव वो अकेले अपने दम पर लड़ेगी, हालांकि बदली हुईं परिस्थितियों में ये लगता नहीं है।
यूं बदलते रहें हैं शिवसेना-बीजेपी के रिश्ते
लोकसभा उपचुनाव के तुरंत बाद, मोदी सरकार के चार साल पूरे होने पर "समर्थन के लिए संपर्क" अभियान के तहत बीजेपी अध्य़क्ष अमित शाह खुद मातोश्री पहुंचे थे और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर तल्खी को कम करने की कोशिश की थी। सुबह संजय राउत के बयान ने बीजेपी को डरा दिया था लेकिन अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से फोन पर बात की और पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मोदी सरकार के समर्थन का फैसला किया।
अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से की फोन पर बात
दरअसल शिवसेना की जो कट्टर हिंदूवादी राजनीति रही है, उसके चलते वो कोई दूसरी राह पकड़ भी नहीं सकती। दोनों पार्टियां उग्र हिंदुत्व की राजनीति करती हैं और दोनों की राजनीतिक दिशा भी एक जैसी ही है। ऐसे में जब तक एकदूसरे के हित सधते रहें तो दोनों पार्टियों के अलगाव की कोई वजह नहीं हो सकती। दिक्कत तब होती है जब हितों को टकराव होता है। ऐसा होने पर शिवसेना खुलकर आलोचना भी करती है और बीजेपी को धमकाती भी है।
नाराजगी के बावजूद एक साथ हैं शिवसेना-बीजेपी
बीजेपी भी अपने सबसे पुराने सहयोगी को अपने साथ रखने के दबाव में है। टीडीपी के साथ छोड़ने पर ये दबाव और भी बढ़ गया है। ऐसे में वो किसी भी कीमत पर अपने बचे हुए सहयोगियों को नहीं खोना चाहती। खासकर उग्र हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना को तो बिल्कुल नहीं। आरएसस की तरफ से भी भाजपा को जो सुझाव मिला है, उसमें भी सहयोगियों के बीच पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ाने को कहा गया है। दूसरी तरफ विपक्षी खेमे बंदी की वजह से भी भाजपा दबाव में है। सारा विपक्ष मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहा है, ऐसे में एनडीए का नेतृत्व करने वाली बीजेपी पर ये दबाव ज्यादा है कि वो अपने सहयोगियों को अपने पाले से किसी भी कीमत पर छिटकने ना दे, बीजेपी इसलिए भी कुछ भी कीमत चुकाकर अपने सहयोगियों को खुश रखना चाहती है।