क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

झारखंड में रघुबर दास को महागठबंधन ने छत्तीसगढ़ी फार्मूले से हराया!

Google Oneindia News

बेंगलुरू। झारखंड में बीजेपी की करारी शिकस्त के लिए रघुबर दास के कभी सहयोगी रहे सरयू राय को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है, क्योंकि झारखंड में बीजेपी को इस बार महागठबंधन ने छत्तीसगढ़ी फार्मूले से मात दी है। वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की 15 वर्ष पुरानी डा. रमन सिंह सरकार को कांग्रेस इसी फार्मूले से सत्ता से बाहर करने में सफल रही थी।

jharkhand

छत्तीसगढ़ में 15 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद सत्ता में वापस लौटी कांग्रेस ने उस दौरान मिली तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी, लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत छत्तीसगढ़ में ही मिली थी, जिसकी झलक अब झारखंड में देखी जा सकती है, जहां बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है।

गौरतलब है वर्ष 2014 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी अकेले 37 सीटों पर धमाकेदार जीत हासिल की थी और सहयोगी दल आजसू के साथ मिलकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुई थी, लेकिन मौजूदा चुनाव नतीजे में बीजेपी महज 25 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई।

jharkhand

जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में महज 19 सीटों पर विजयी रही झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस बार 30 सीट पर जीत दर्ज की है और उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस के 16 विधायक विधानसभा में पहुंचने में कामयाब रहे। कांग्रेस पिछली बार महज 6 सीटों पर सिमट गई थी।

दूसरे शब्दो में कहें तो यह कांग्रेस द्वारा जांचा-परखा छत्तीसगढ़ी फार्मूला था, जिसे कांग्रेस ने एक बार फिर झारखंड में इस्तेमाल किया। जनजातिय इलाकों वाले राज्य छत्तीसगढ़ के बाद झारखंड में यह फार्मूला हिट साबित हुआ और बीजेपी की रघुबर दास सरकार को सत्ता छोड़नी पड़ी।

jharkhand

बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस का वह छत्तीसगढ़ी फार्मूला क्या है, जिसकी मदद से कांग्रेस छत्तीसगढ़ में 39 से 68 पर पहुंच गई और झारखंड में 6 से लगभग तीन गुना यानी 16 सीट जीतने में कामयाब हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रघुबर दास खुद भी छत्तीसगढ़ी मूल के हैं, लेकिन वो भी कांग्रेस के दांव को भांपने में नाकाम रहे।

हालांकि छत्तीसगढ़ी मूल के रघुबर दास की व्यक्तिगत हार में छत्तीसगढ़ी फार्मूले की भूमिका नहीं है, क्योंकि रघुबर दास की हार के लिए उसूलों की राजनीति के लिए मशहूर सरयू राय ही जिम्मेदार हैं। कहा जाता है कि अपनी शर्तों और सिद्धांतों की राजनीति करने वाले सरयू राय ने झारखंड में राजनीतिक सफर साथ-साथ शुरू किया था, लेकिन रघुबर दास के मूल मुद्दों से विमुखता से सरयू राय की नाराजगी थी, जिसे कई बार खुले मंच पर भी वो उठा चुके थे।

jharkhand

बीजेपी से अलग होने के बाद सरयू राय ने रघुबर दास को दाग कहकर संबोधित किया था और कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का डिटर्जेंट और अमित शाह की लाउंड्री भी दाग को नहीं धो सकती है। सरयू राय का इशारा रघुबर दास के खोखली सियासत की ओर था, जो झारखंड के जनजातिए इलाकों से इतर शहरी क्षेत्र की ओर था।

jharkhand-

सरयू राय के विरोध का ही नतीजा था कि उन्हें बीजेपी से टिकट नहीं मिला था, लेकिन जमशेदपुर पूर्व से रघुबर दास के खिलाफ निर्दलीय खड़े हो गए और झारखंड के निवर्तमान मुख्यमंत्री को हराकर साबित कर दिया कि झारखंड की सियासी जमीन पर रघुबर दास की कितनी पकड़ है।

jharkhand

जेपी आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं सरयू राय वहीं शख्स हैं, जिन्होंने चारा घोटाले का पर्दाफाश करने में अहम भूमिका निभाई थी। सरयू राय के निशाने पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ही नहीं थे, बल्कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी थे, जो अभी आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल में बंद हैं।

रघुबर दास सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रहे सरयू राय ने अकेले दम पर पीएम मोदी की लोकप्रियता और तीन दलों के गठबंधन को मात देकर साबित कर दिया कि आज भी जनता वसूलों और सिद्धांत पर चलने वालों का साथ देती है। यह बात इसलिए और पक्की हो जाती है, क्योंकि रघुबर दास जमशेदपुर पूर्व से लगातार 5 बार विधायक चुने गए थे।

jharkhand

उल्लेखनीय है पूर्व सीएम रघुवर दास को जिताने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी खुद जमशेदपुर पहुंचे और उनके समर्थन में रैली की थी। जमशेदपुर पूर्व से सरयू राय के सामने बेहद कठिन चुनौती इसलिए भी थी, क्योंकि एक ओर तो उन्हें सीएम रघुबवर दास को चुनौती दी थी, दूसरे उनके सामने कांग्रेस ने एक अन्य वीआईपी कैंडीडेट गौरव बल्लभ को भी उतार रखा था। सरयू राय ने गौरव बल्लभ ही नहीं, रघुबर दास पर भी 15000 वोटों से मात देकर जीत हासिल की।

अब बात उस छत्तीसगढ़ी फार्मूल की करते हैं, जिसका इस्तेमाल पहले कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ की डा. रमन सिंह सरकार को हटाने में किया था और अब उस फार्मूले का इस्तेमाल झारखंड में रघुबर दास सरकार हटाने के लिए कांग्रेस ने झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल के सहयोग से बखूबी अंजाम दिया।

Jharkhand

जैसा कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाभी वहा लगभग 32 फीसदी आदिवासी जनसंख्या के पास है, जिनमें से 11.6 फीसदी वोटर दलित हैं। डा. रमन सिंह सरकार को 15 साल बाद छत्तीसगढ़ से उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय को टारगेट किया था और इतिहास गवाह है कि बीजेपी को छत्तीसगढ़ में सबसे बुरी हार दलित-आदिवासी बहुल इलाकों में ही मिली थी जबकि हमेशा की तरह शहरी इलाकों में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था।

झारखंड में भी रघुबर दास सरकार की छवि आदिवासियों के बीच अच्छी नहीं थी और जल-जंगल-जमीन के सवाल पर आदिवासी सरकार से नाराज थे। राज्य में उद्योगों के लिए लैंड बैंक बनाए जा रहे थे। छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में सरकार ने संशोधन की कोशिश की थी। आदिवासी मान रहे थे कि सरकार की यह कोशिश उनकी जमीन उद्योगों को देने के लिए हो रही है।

jharkhand

भारी विरोध के चलते जब इन कानूनों में संशोधन नहीं हुआ, जिससे प्रदेश में 27 फीसदी जनसंख्या वाले आदिवासियों की नाराजगी बढ़ती चली गई। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ी फार्मूले के तहत अनुसूचित जनजाति के सुरक्षित 28 सीटों को टारगेट किया और जब झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो उनमें 20 सीटों पर झामुमो-कांग्रेस गठजोड़ को जीत मिल चुकी थी।

रघुबर की नेतृत्व वाली रघुबर दास सरकार 2019 झारखंड विधानसभा चुनाव में महज 2 आदिवासी सुरक्षित सीटों पर जीत दर्ज कर सकी, जो उसकी हार का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। कहते हैं कि छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम में संशोधन के जरिए भले ही आदिवासी समाज का जमीन पर हक मजबूत हुआ था, लेकिन विपक्ष ने इसे आदिवासी इलाकों में जमीन कब्जा करने का एक्ट बताया और उन्हें कन्वेंस करन में सफल भी रही।

jharkhand

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को प्रदेश के 28 आदिवासी सुरक्षित सीट में से 13 सीटें हासिल की थी। अगर इस बार भी बीजेपी आदिवासी सुरक्षित सीटों की 13 सीटें हासिल होतीं तो बीजेपी के सीटों का आकंडा 25+11=36 होता। इससे स्पष्ट होता है कि आदिवासियों की नाराजगी को छत्तीसगढ़ के बाद कांग्रेस ने झारखंड में भी सत्ता की सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया।

यह भी पढ़ें- झारखंड में कोई सीएम नहीं तोड़ सका है ये मिथक, जानिए सच

रघुबर दास के खिलाफ नाराजगी को भांप नहीं पाई बीजेपी

रघुबर दास के खिलाफ नाराजगी को भांप नहीं पाई बीजेपी

कहा जाता है कि मुख्यमंत्री रघुबर दास की व्यक्तिगत छवि पिछले कुछ सालों में छवि काफी ख़राब हो गई थी। एक तबके को ऐसा लगने लगा था कि मुख्यमंत्री अहंकारी हो गए हैं। इससे पार्टी के अंदरखाने भी नाराजगी थी। सरयू राय ने कई मौक़े पर पार्टी फोरम में यह मुद्दा उठाया, लेकिन नेतृत्व ने उनकी आपत्तियों पर ध्यान नहीं दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष व गृहमंत्री अमित शाह हर बार रघुबर दास की पीठ थपथपाते रहे इसलिए रघुबर दास के विरोधी ख़ेमे मे नाराज़गी बढ़ती चली गई।

भूमि क़ानूनों में संशोधन के खिलाफ विपक्ष ने आदिवासियों को जोड़ा

भूमि क़ानूनों में संशोधन के खिलाफ विपक्ष ने आदिवासियों को जोड़ा

आदिवासियों के ज़मीन संबंधी अधिकारों की रक्षा के लिए बने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) में संशोधन की गई। भाजपा सरकार की कोशिशों का राज्य के आदिवासियों पर बड़ा प्रभाव पड़ा, लेकिन बीजेपी उसका लाभ नहीं ले पाई और विपक्ष आदिवासियों को यह समझाने में कामयाब रही कि संशोधन उनके हितों के खिलाफ है। संशोधन के खिलाफ विपक्ष ने सदन से सड़क तक यह लड़ाई लड़ी और राष्ट्रपति से इस विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने का अनुरोध किया। आपत्तियों के बाद राष्ट्रपति ने इस विधेयक को वापस लौटा दिया।

चुनाव कैंपेन में रघुबर दास का फोकस केंद्र की योजना पर ही रहा

चुनाव कैंपेन में रघुबर दास का फोकस केंद्र की योजना पर ही रहा

भाजपा ने पूरे चुनाव में केंद्रीय योजनाओं की डिलिवरी जैसे आयुष्मान भारत, उज्ज्वला योजना, किसान सम्मान राशि का प्रचार किया था। प्रधानमंत्री ने अपनी कुछ फ्लैगशिप योजनाओं को भी झारखंड से ही लॉन्च किया था। राम मंदिर, नागरिकता कानून जैसे मसले उठाए। इनमें कहीं भी स्थानीय लोगों से जुड़े सवाल नहीं थे। शिक्षकों, आंगनबाड़ी सेविकाओं के मुद्दों पर उनहोंने बात नहीं की।

बीजेपी के खिला गईं बेरोज़गारी, पत्थलगड़ी, अफ़सरशाही अभियान

बीजेपी के खिला गईं बेरोज़गारी, पत्थलगड़ी, अफ़सरशाही अभियान

पिछले पांच साल के दौरान बेरोज़गारी, अफ़सरशाही और पत्थलगड़ी अभियान के ख़िलाफ़ रघुबर दास की सरकार की नीतियां भी भाजपा के ख़िलाफ़ गईं, जिससे मतदाताओं का बड़ा वर्ग नाराज़ हुआ और देखते ही देखते यह मसला पूरे चुनाव के दौरान चर्चा में रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नौ, अमित शाह की 11 और रघुवर दास की 51 सभाओं के बावजूद भाजपा अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई। लोगों में इसकी भी नाराज़गी रही कि प्रधानंमत्री ने अपनी सभाओं में धारा-370, राम मंदिर और नागरिकता संशोधन विधेयक जैसे मुद्दों की बातें की। जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सारे स्थानीय मुद्दों पर अपना चुनाव प्रचार किया.

Comments
English summary
The big question is what is the Chhattisgarhi formula of the Congress, with the help of which the Congress has gone from 39 to 68 in Chhattisgarh and has managed to win nearly three times from 6 to 16 seats in Jharkhand. Interestingly, BJP's Chief Ministerial candidate Raghubar Das himself is also of Chhattisgarhi origin, but he too failed to recognize the Congress stakes.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X