जानिए, COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में अचानक क्यों पिछड़ने लगा है मध्यप्रदेश?
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में पहली COVID-19 से हुई मौत ठीक दो महीने पहले गत 25 जनवरी को राज्य के स्वास्थ्य सेवा निदेशालय ने अस्पतालों को अलर्ट पर रहने के लिए अपनी पहली सलाह जारी की थी। तीन दिनों के बाद जारी दूसरे एडवाइजरी में कलेक्टरों को टास्क फोर्स बनाने और चीन में कोरोनोवायरस के उपरिकेंद्र वुहान से लौटने वालों के लिए आइसोलेशन वार्ड स्थापित करने के लिए कहा गया।
गत 31 जनवरी को दक्षिणी राज्य केरल में संक्रमण का पहला मामला दर्ज किए जाने के एक दिन बाद जब WHO ने COVID-19 को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया, तो राज्य सरकार ने 15 जनवरी के बाद चीन से लौटे उन सभी को कोरोनोवायरस परीक्षण करने का फैसला किया था। यह नजीर है कि मध्य प्रदेश ने शुरूआती दौर में Covid19 पर नकेल कसने के लिए ठोस कदम उठाए थे।
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लेकिन, वर्तमान में महाराष्ट्र और गुजरात के बाद मध्य प्रदेश तीसरा राज्य बन चुका हैं, जहां COVID-19 संक्रमित 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई है। अभी मध्य प्रदेश के इंदौर और उज्जैन जैसे शहर हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहे हैं जबकि राज्य ने वायरस के प्रसार की रोकथाम के लिए शुरूआत में ही कमर कस ली थी। माना जा रहा है कि मार्च माह में राज्य में सत्ता परिवर्तन के दौरान वायरस के खिलाफ लड़ाई कमजोर हुई थी।
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कांग्रेस और भाजपा दोनों ने इस महत्वपूर्ण अवधि को एकदूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में गंवा दिया। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में उनकी सरकार को गिराने में अधिक रुचि रखने का आरोप लगाया, और भाजपा ने कहा कि जब वह सत्ता में आई थी, तो राज्य वायरस से निपटने के लिए बिल्कुल तैयार अवस्था में नहीं थी।जबकि सेवारत और सेवानिवृत्त दोनों नौकरशाहों ने कहा कि मार्च में भोपाल में कोरोनोवायरस के प्रयासों को लेकर भ्रम की स्थिति थी।
क्या कोरोनावायरस के खिलाफ जारी लड़ाई अपनी प्रारंभिक गति खो दी?
एक वरिष्ठ नौकरशाह ने बताया कि कोरोनावायरस के खिलाफ जारी लड़ाई अपनी प्रारंभिक गति खो दी थी, यह देखते हुए हमने उन लोगों का सर्वेक्षण करना शुरू कर दिया था, जो जनवरी के अंत तक विदेश से आए थे। राज्य में महामारी को लेकर भय की स्थिति स्थापित होने से पहले ही स्वास्थ्य सेवा निदेशालय ने अकेले फरवरी में कम से कम एक दर्जन एडवाइजर जारी कर दिए थे।
विदेश से लौटे सभी का मेडिकल चेक-अप सुनिश्चित करने का निर्देश दिया
गत 3 मार्च को तत्कालीन मुख्य सचिव सुधी रंजन मोहंती ने जिला कलेक्टरों और जिला पुलिस प्रमुखों के साथ एक वीडियो-सम्मेलन आयोजित किया और उन्हें निर्देश दिया कि वे उन सभी का मेडिकल चेक-अप सुनिश्चित करें जो विदेश से लौटे थे, लेकिन इसके तुरंत बाद भोपाल कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक झगड़ा सतह पर आ गया। "कमलनाथ सरकार खुद को बचाने में फंस गई। उनके स्वास्थ्य मंत्री ने विद्रोह कर दिया था। चूंकि मध्य प्रदेश में Covid19 संक्रमित के कोई मामले नहीं थे इसलिए सभी राजनीतिक वर्ग ने महामारी को हल्के में लिया।
स्वास्थ्य मंत्री ने तत्कालीन कमलनाथ सरकार से किनारा कर लिया
तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री तुलसीराम सिलावट बीजेपी में शामिल हो चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी विश्वासपात्र थे, उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया। सूत्रों ने कहा कि सिलावट ने गत 6 मार्च को हुई अंतिम आधिकारिक कैबिनेट की बैठक में भाग लिया। वर्तमान सरकार में एक अधिकारी ने कहा, हमने 10 मार्च को जारी निर्देश दिया कि कोई होली समारोह नहीं होना चाहिए। हमने 13 मार्च को सभी स्कूलों, कॉलेजों, मॉल आदि को बंद कर दिया, लेकिन,जैसा कि आप जानते हैं, सारा ध्यान राजनीतिक संकट पर था।
गत 10 मार्च से 24 मार्च के बीच मध्य प्रदेश में चीजें पूरी तरह से प्रवाह में थीं।
राज्य के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि 14 मार्च को रंग पंचमी के लिए इंदौर में होने वाली आयोजित होने वाले पंचायत को रोक दिया गया था। यह एक बड़ा मुद्दा था, क्योंकि कार्यक्रम के आयोजक कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और भाजपा के कैलाश विजयवर्गीय दोनों के करीब थे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, कार्यक्रम को रद्द करने के लिए हमें दोनों ओर से आयोजकों को प्रभावित करने का संदेश मिला। इस तरह गत 10 मार्च से 24 मार्च के बीच चीजें पूरी तरह से प्रवाह में थीं।"
BJP के "इट्स नॉट कोरोना बट डरोना" ने वायरस के खतरे का अनादर हुआ?
इस बीच शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा नेताओं द्वारा दोहराई गई एक लाइन "इट्स नॉट कोरोना बट डरोना" द्वारा वायरस के खतरे को अनादर कर दिया गया। भाजपा द्वारा कांग्रेस पर आरोप लगाया गया कि वह अपनी सरकार को बचाने के लिए COVID-19 से डराने का खेल-खेल रही थी।
मध्य प्रदेश में पहला मामला गत 20 मार्च को जबलपुर में आया था
मध्य प्रदेश में पहला मामला गत 20 मार्च को जबलपुर में आया था, जिस दिन कमलनाथ सरकार गिर गई थी। एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मार्च के 15 दिनों को छोड़कर चौहान सरकार के पदभार संभालने के बाद एक और हमने 15 दिन और खो गए थे, क्योंकि नई सरकार द्वारा कोरोनावायरस की रोकथाम को लेकर कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किया गया था। 23 मार्च को शपथ लेने के बाद चौहान पूरे एक महीने तक राज्य में एकमात्र मंत्री बने रहे। हालांकि अब उनके पास पांच का मंत्रिमंडल है।
स्वास्थ्य विभाग के सभी शीर्ष स्तर की नौकरशाही टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए
फिर 3 अप्रैल से शुरू होने वाले अभियान में राज्य स्वास्थ्य विभाग के सभी शीर्ष स्तर की नौकरशाही टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए। ऐसे समय मे जहां तीन-चार टीमें होनी चाहिए थीं, लेकिन सभी को एक टीम में रखा गया, जिससे सभी संक्रमित हो गए। इसलिए स्वास्थ्य सेवा में स्वास्थ्य मंत्री से लेकर प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य और निदेशक कोई नहीं था। चौहान ने इसका दोष भी पिछली सरकार पर मढ़ने की मांग करते हुए कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि स्वास्थ्य अधिकारी प्रशिक्षित नहीं थे और उनमें से कई स्वयं संक्रमित हो गए।"
इंदौर का नया कलेक्टर अपेक्षाकृत अनुभवहीन था,जिससे समय लगा
चौहान की नौकरशाही के मुख्य सचिव के रूप में मोहंती के प्रतिस्थापन, स्वास्थ्य आयुक्त प्रतीक हजेला के स्थानांतरण (जो पहले असम में NRC अभ्यास का नेतृत्व कर रहे थे) और इंदौर के लिए एक नया कलेक्टर के आने से हिल गई थी। एक अधिकारी ने कहा कि नया कलेक्टर अपेक्षाकृत अनुभवहीन था, जिससे चीजों के शीर्ष पर पहुंचने में समय लगा।
MP में संक्रमित मरीजों की संख्या 2,560 पहुंच चुकी हैं, 130 लोगों की मौत हो चुकी है।
कुछ दिनों पहले सीएम चौहान ने राज्य भाजपा प्रमुख वी डी शर्मा और केवल राजनेताओं की अध्यक्षता में कोरोनोवायरस पर एक टास्क फोर्स का गठन किया। इसके अलावा एक्टिविस्ट कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में एक 13-सदस्यीय सलाहकार पैनल है, जिसमें कुछ डॉक्टर शामिल है, जिन्होंने अब तक सीएम चौहान के साथ केवल एक वीडियो-कांफ्रेंसिंग किया है। उसमें सत्यार्थी का मुख्य सुझाव बाल पोर्नोग्राफ़ी पर प्रतिबंध लगाना है। हालांकि चिकित्सा पेशेवरों को मिलाकर एक तीसरी टीम भी बनाई गई है। बुधवार तक मध्य प्रदेश के कोरोनावायरस संक्रमित मरीजों के आंकड़े 2,560 पहुंच चुके हैं और अब तक वहां 130 लोगों की मौत हो चुकी है।