कहीं दाल-रोटी पर भी ना आ जाए संकट ? इस वजह से दलहन की बुवाई में आई कमी, टेंशन में सरकार
नई दिल्ली, 22 अगस्त: कुछ महीने पहले देश में गेहूं की कीमतें बढ़ने लगी थी तो सरकार ने इसका निर्यात रोक दिया था। बाद में आटे के दाम बढ़ने लगे तो सरकार फिर से ऐक्शन में आ गई थी। अब दाल के दाम को लेकर संकट मंडराने लगा है। इसके कई कारण हैं। इस बार खरीफ सीजन में दलहन की फसलों की बुवाई कम हुई है। दाल उत्पादक ज्यादातर राज्यों में अधिक बारिश ने भी इसकी फसलों को प्रभावित किया है। लिहाजा सरकार ने इसकी कीमतों को कंट्रोल में रखने के लिए कई कदम उठाए भी हैं। लेकिन, कारोबारी इसपर भी सवाल उठा रहे हैं।
दालों के खुदरा दाम बढ़ने की आशंका से सरकार भी चिंतित
दलहन की बुवाई के रकबे में आई गिरावट ने इसकी खुदरा कीमतें बढ़ने की आशंका को लेकर सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं। फिलहाल तो सरकार ने उपभोक्ताओं की जरूरतों के लिए इसके आयात और स्टॉक की घोषणाओं जैसे उपाय अपनाने शुरू कर दिए हैं और जानकारी के मुताबिक इस तरह के कुछ और भी कदम उठाए जा सकते हैं। खरीफ सीजन का तो यह हाल बताया जा रहा है कि देश के बड़े हिस्से में किसान, तुअर और उड़द की जगह तिलहन और कपास की खेती पर जोर दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण किसानों को मिलने वाली दलहन की कीमतों की तुलना में तिलहन और कपास के अच्छे दाम मिलने और मानसून की बारिश में हुई देरी को बताया जा रहा है। कई किसान दलहन की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों को देखते हुए भी पीछे हटे हैं, जिन्हें लगता है कि भविष्य में इससे उनकी फसलों को अच्छी कीमतें मिलने में दिक्कत हो सकती है।
कहीं दाल-रोटी पर भी ना आ जाए संकट ?
इस बार खरीफ के मौसम में दलहन की जो बुवाई हुई उसका रकबा देखने के बाद यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं की, भविष्य में दाल की कीमतें कितना टेंशन दे सकती हैं। नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन की वेबसाइट के 19 अगस्त तक के आंकड़ों के मुताबिक देश में 125.57 लाख हेक्टेयर में दलहन की बुवाई हुई थी। जबकि, एक साल पहले यह आंकड़ा 132.65 लाख हेक्टेयर का था। अगर इसकी डिटेल में जाएं तो उड़द- 35.10 (इस साल)/37.21 (एक साल पहले) लाख हेक्टेयर, मूंग- 32.40/33.96 लाख हेक्टेयर और तुअर की फसल- 43.38/46.74 लाख हेक्टेयर में लगाई गई है।
सोयाबीन और कपास की खेती बढ़ी
राजस्थान को छोड़कर जितने भी दाल उत्पादक राज्य हैं, चाहे महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश हों, हर जगह के किसानों ने दाल की जगह पर सोयाबीन और कपास की तरफ ध्यान देना शुरू किया है। अगर इनकी फसलों के दायरे में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी को आंकड़ों में देखें तो सोयाबीन- 119.54 (इस साल)/119.04 (पिछले साल) लाख हेक्टेयर और कपास- 123.09/116.15 लाख हेक्टेयर में लगाई गई है। जाहिर है कि दलहन की कम फसल होने का परिणाम इसके दाम में बढ़ोतरी के तौर पर देखने की आशंका है।
तुअर दाल की कीमत में पहले से ही आ चुकी है तेजी
तुअर जो कि दलहन की एक प्रमुख खरीफ फसल है, उसकी कीमतें पहले से ही बढ़ने लगी हैं। मसलन, महाराष्ट्र के लातूर के होलसेल बाजार में इसकी औसत कीमत 8,006 रुपये प्रति क्विंटल हो चुकी है, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसएपी) 6,600 रुपये से कहीं ज्यादा है। इस बीच इसकी बुवाई में आई कमी ने सरकार को कीमतों पर नियंत्रण के लिए अपनी ओर से कदम उठाने को मजबूर कर दिया है। 12 अगस्त को केंद्र ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वह ये सुनिश्चित करें कि स्टॉकहोल्डर अपने पास मौजूद स्टॉक की घोषणा करें।
सरकार दाल की सीमतों को लेकर पहले से ही सचेत
सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि ऐसी रिपोर्ट हैं कि कुछ स्टॉकिस्ट और व्यापारी कीमतें बढ़ाने के लिए जानबूझकर कृत्रिम किल्लत पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे प्रमुख तुअर उत्पादक राज्यों में ज्यादा बारिश और पानी जमा होने की स्थिति की वजह से पिछले साल की तुलना में खरीफ बुवाई की गति धीमी है, जिसके चलते जुलाई के दूसरे हफ्ते से तुअर के खुदरा दाम ऊपर की ओर दिख रहे हैं। विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि सरकार विदेशों और घरेलू बाजारों दोनों जगह दालों की उपलब्धता और उसकी कीमतों पर नजदीकी नजर रख रही है, ताकि कीमतों को नियंत्रित रखने के एहतियाती कदम उठाए जा सकें।
2000 टन उड़द आयात करने का टेंडर
सरकार ने यह भी कहा कि घरेलू बाजार में दालों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए उसके पास जो 38 लाख टन का स्टॉक उपलब्ध है, वह भी जारी कर रही है, ताकि बाजार में इसकी उपलब्धता में किसी तरह की दिक्कत ना रहे। 8 अगस्त को नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर फेडरेशन ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों से 2000 टन उड़द की आयात के लिए टेंडर भी जारी किया था। ये सारे कदम इसलिए उठाए गए हैं, ताकि आम उपभोक्ताओं को दाल-रोटी मिलने में किसी तरह की दिक्कत ना रहे। हालांकि, कारोबारियों का कहना है कि अगर बेमौसम बारिश की वजह से फसलों को नुकसान होता है (जो कि अभी अच्छी हालत में हैं) तो सप्लाई और डिमांड में अंतर के कारण ये सारे उपाय धरे के धरे रह जाएंगे।(तस्वीरें- फाइल)