हर घर तिरंगा: 30 करोड़ से ज्यादा झंडे बेचे गए, कितने सौ करोड़ रुपये का हुआ कारोबार ? CAIT ने बताया
नई दिल्ली, 14 अगस्त: आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के तहत चलाए जा रहे हर घर तिरंगा अभियान को अभूतपूर्व सफलता मिली है। आजतक देश में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में 30 करोड़ से भी ज्यादा राष्ट्र ध्वज की बिक्री हो चुकी है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस अभियान की वजह से सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों की निकल पड़ी है। अबतक 500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का कारोबार हो चुका है। इस मौके के लिए तिरंगा निर्माण की वजह से 10 लाख से भी ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है।
500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का कारोबार- सीएआईटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर घर तिरंगा अभियान ने सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों की किस्मत को और चमका दिया है। रविवार को कारोबारियों की संस्था कंफेड्रेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रे़डर्स (सीएआईटी ) ने बताया कि पीएम मोदी की इस पहल से इस साल 30 करोड़ से भी ज्यादा झंडे बिक चुके हैं, जिसमें 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का बिजनेस हुआ है। यह अभियान 22 जुलाई को शुरू किया गया था। इसके तहत देश के नागरिकों को अपने घरों पर 13 से 15 अगस्त के बीच राष्ट्र ध्वज फहराने की अपील की गई और इस अभियान को जबर्दस्त सफलता मिल रही है और इसके प्रति लोगों में बहुत ही ज्यादा उत्साह देखने को मिल रहा है।
'20 दिनों में ही 30 करोड़ से ज्यादा झंडों का निर्माण'
हर घर तिरंगा अभियान सरकार के 'आजादी का अमृत महोत्सव' कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने आजादी के 75वें सालगिरह मनाने के उद्देश्य से 2021 के मार्च में लॉन्च किया था। सीएआईटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भारतीय और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने साझा बयान में कहा है, 'हर घर तिरंगा अभियान ने भारतीय उद्यमियों की क्षमता और सामर्थ्य को दिखाया है, जिन्होंने लोगों के बीच तिरंगे की अभूतपूर्व मांग को पूरा करते हुए करीब 20 दिनों के रिकॉर्ड समय में ही 30 करोड़ से ज्यादा झंडों का निर्माण किया।' सीएआईटी के मुताबिक पिछले 15 दिनों में इसने और बाकी ट्रेड संगठनों ने पूरे देश में 3,000 से अधिक तिरंगा कार्यक्रम आयोजित कराए हैं।
10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला
पिछले महीने, गृह मंत्रालय ने भारतीय ध्वज संहिता, 2002 में संशोधन किया, जिसकी वजह से हाथ से काटे गए और हाथ से बुने हुए या मशीन से बने, कपास, ऊन, रेशम खादी के अलावा पॉलिएस्टर या मशीन से बने झंडे के निर्माण की अनुमति दी गई। सीएआईटी का कहना है कि संशोधन से झंडे की उपलब्धता आसान हुई और 10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला, जिन्होंने अपने घरों और दूसरी जगहों पर तिरंगे बनाए। इसमें स्थानीय टेलर भी बड़ी संख्या में शामिल हुए।
पहले 150-200 से करोड़ रुपये का होता था कारोबार
खंडेलवाल और भारतीय ने यह भी बताया है कि, 'पिछले वर्षों में स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगों की बिक्री सालाना करीब 150-200 से करोड़ रुपये तक सीमित रहती थी। लेकिन, हर घर तिरंगा अभियान ने इसमें कई गुना बढ़ोतरी कर दी है।' इस अभियान की सफलता का प्रमाण वाकई घर-घर में नजर आ रहा है और लोगों ने काफी गर्व के साथ अपने राष्ट्र ध्वज को शान से फहरा रखा है।
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दो साल का पुराना स्टॉक भी बचा था
कंफेड्रेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रे़डर्स का कहना है कि राष्ट्र ध्वज की मांग बढ़ने का कारण सरकार की ओर तिरंगा अभियान को कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) का हिस्सा बनाना भी है। आमतौर पर तिरंगे की मांग 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर के समय बढ़ जाती थी। लेकिन, पिछले दो वर्षों से कोविड पाबंदियों की वजह से काफी स्टॉक पड़ा भी हुआ था। इसलिए इस साल वह स्टॉक भी बड़ा काम आ रहा है।