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पहले लात मारी, फिर ट्रैक्टर चढ़ा दिया और अंत में मार्शल से रौंद डाला

कर्ज़ की रकम वसूलने गए रिकवरी एजेंट्स ने ट्रैक्टर बचाने की कोशिश कर रहे ज्ञानचंद की जान ले ली.

By BBC News हिन्दी
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उत्तर प्रदेश, अपराध, किसान, कर्ज़
Samiratmaj Mishra/BBC
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ज्ञानचंद की ग़लती सिर्फ़ इतनी थी कि उन्होंने फ़ाइनेंस कंपनी के कथित रिकवरी एजेंट्स को अपना ट्रैक्टर ले जाने से रोकने की कोशिश की.

चार-पांच की संख्या में आए रिकवरी एजेंट्स में से एक ने पहले तो इस प्रयास में ट्रैक्टर पर चढ़े ज्ञानचंद को धक्का दिया और फिर गिर जाने के बाद ट्रैक्टर से उनके शरीर को कुचलते हुए उसे चलाकर ले गए.

रिकवरी एजेंट्स की निग़ाह में शायद ज्ञानचंद के 'अपराध' की ये सज़ा भी कम दिखी, इसलिए पीछे खड़ी मार्शल जीप के ड्राइवर ने भी अपनी गाड़ी मृतप्राय ज्ञानचंद के शरीर पर चढ़ा दी. ज्ञानचंद वहीं दम तोड़ चुके थे.

उत्तर प्रदेश, अपराध, किसान, कर्ज़
Samiratmaj Mishra/BBC
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खेत में काम कर रहे थे

क़रीब 25 साल के ज्ञानचंद के पड़ोसी राजकिशोर ये बताते-बताते फफक पड़ते हैं. राजधानी लखनऊ से महज़ 60-70 किमी. दूर सीतापुर ज़िले में महमूदाबाद के भौंरी गांव के रहने वाले दलित किसान ज्ञानचंद उस समय राजकिशोर के खेत की ही जुताई कर रहे थे जब फ़ाइनेंस कंपनी के रिकवरी एजेंट ट्रैक्टर समेत उनकी तलाश में खेत तक पहुंच गए थे.

राजकिशोर बताते हैं, "उस समय खेत पर सिर्फ़ मैं था और ट्रैक्टर से जुताई कर रहे ज्ञानचंद थे. वो चार-पांच लोग थे. पहले उन्होंने काग़ज़ दिखाकर बकाया पैसा जमा करने को कहा. फिर पता नहीं कैसे उनमें से एक व्यक्ति ट्रैक्टर पर चढ़ गया. ज्ञानचंद ट्रैक्टर न ले जाने की मिन्नत करते रहे तब तक हमने देखा कि वो ट्रैक्टर के नीचे दबे हैं."

राजकिशोर बताते हैं कि वो मोटर साइकिल से भागकर गांव वालों को बुलाने गए तब तक रिकवरी एजेंट्स ट्रैक्टर लेकर और ज्ञानचंद की लाश वहीं छोड़कर फ़रार हो चुके थे. काफी ढूंढ़ने के बाद भी किसी का कुछ पता नहीं चला. बाद में गांव वालों ने तीन लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द रिपोर्ट दर्ज कराई और घटना के क़रीब तीस घंटे बाद रविवार देर शाम पुलिस सिर्फ़ एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी कर पाई है.

उत्तर प्रदेश, अपराध, किसान, कर्ज़
Samiratmaj Mishra/BBC
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पांच लाख लिया था कर्ज़

क़रीब पैंतालीस वर्षीय किसान ज्ञानचंद ने तीन साल पहले एलएंडटी नाम की एक फ़ाइसेंस कंपनी से पांच लाख रुपये का कर्ज़ लेकर ट्रैक्टर ख़रीदा था.

ज्ञानचंद के बड़े भाई लेखराम बताते हैं, "कर्जा पूरा अदा कर चुके थे सिर्फ़ 30-35 हज़ार रुपये बच गए थे. जब इतना दे दिए थे तो बचा हुआ पैसा भी दे देते. लेकिन, उन लोगों ने पता नहीं क्यों उसे मार डाला?" लेखराम बताते हुए रोने लगते हैं.

लेखराम चार भाई हैं और उन लोगों के पास क़रीब पांच बीघे खेत ​है. जिससे पूरे परिवार की आजीविका चलती है. मृतक ज्ञानचंद की पांच बेटियां हैं जिनमें से सबसे छोटी अभी सिर्फ़ छह महीने की है. उनकी पत्नी कमला देवी पति की मौत से स्तब्ध हैं तो बच्चियों की परवरिश को लेकर बेहद चिंतित.

कमला देवी इस सदमे से इतनी बदहवास हैं कि घर पर पहुंचने वाले किसी भी बाहरी व्यक्ति को वो 'भाग्य विधाता' समझकर अपनी छोटी बच्ची समेत उसके पैरों पर गिर पड़ती हैं.

परिवार वाले और गांव वाले बताते हैं कि ज्ञानचंद पर सिर्फ़ 30-35 हज़ार रुपये का ही बकाया था और बाकी उन्होंने अदा कर दिया था जबकि फ़ाइनेंस कंपनी अभी नब्बे हज़ार का बकाया दिखा रही थी. ज्ञानचंद के भाई लेखराम के मुताबिक आख़िरी बार जो रकम दी गई थी कंपनी ने उसकी रसीद भी ज्ञानचंद को नहीं दी थी.

उत्तर प्रदेश, अपराध, किसान, कर्ज़
Samiratmaj Mishra/BBC
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पुलिस कार्रवाई पर लोग असंतुष्ट

भौंरी गांव में रविवार देर शाम जब पोस्टमॉर्टम के बाद ज्ञानचंद का शव उनके घर लाया गया तो परिवार वालों के साथ ही पूरा गांव जैसे ग़म में डूबा था. औरतें शव के पास बैठी चिल्ला रही थीं.

मौक़े पर महमूदाबाद के एसडीएम रतिराम भी थे जो लोगों को ये आश्वासन दे रहे थे कि दोषी जल्दी ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सज़ा मिलेगी.

एसडीएम रतिराम ने बीबीसी को बताया, "छुट्टी का दिन होने के चलते फ़ाइनेंस कंपनी और रिकवरी एजेंटों के बारे में पता नहीं चल सका है, लेकिन जल्द ही गिरफ़्तारी होगी. ये भी पता लगाया जाएगा कि फ़ाइनेंस कंपनी ने नियमों के तहत कर्ज दिया था या फिर उनकी अनदेखी की थी. फ़िलहाल पीड़ित परिवार को सरकार की तरफ़ से हर संभव आर्थिक मदद मुहैया कराई जा रही है जिनमें पांच लाख रुपये तत्काल दिए जाएंगे."

लेकिन, न तो ज्ञानचंद के परिवार वाले और न ही गांव वाले प्रशासन की इस कार्रवाई से संतुष्ट थे.

गांव के ही रहने वाले एक बुज़ुर्ग राम लाल का कहना था, "जब नामज़द रिपोर्ट हुई है और हम लोग उसको पहचान रहे हैं तब भी पुलिस अभी तक सिर्फ़ एक को ही गिरफ़्तार कर पाई है. जिसे गिरफ़्तार भी किया है, वो कह रहा है कि इस कंपनी को वो साल भर पहले ही छोड़ चुका है."

उत्तर प्रदेश, अपराध, किसान, कर्ज़
Samiratmaj Mishra/BBC
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इससे पहले, महमूदाबाद के पुलिस क्षेत्राधिकारी जावेद ख़ान ने बीबीसी को बताया कि ये बहुत ही अमानवीय घटना है और पुलिस जल्द से जल्द दोषियों को पकड़ने की कोशिश करेगी. उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद फ़ाइनेंस कंपनी कैसे किसी को रिकवरी के लिए भेज सकती है, इस बात का भी पता लगाया जाएगा.

बहरहाल, देर रात तक ज्ञानचंद के परिजन अधिकारियों से आश्वासन के बजाय लिखित कार्रवाई की मांग करते रहे और बिना इसके दाह संस्कार करने को तैयार नहीं थे.

इस बीच, सीतापुर स्थित फ़ाइनेंस कंपनी के दफ़्तर पर ताला पड़ा हुआ है और उसके दिए टेलीफ़ोन नंबरों पर किसी से बात नहीं हो रही है. हालांकि, कुछ स्थानीय अख़बारों का दावा है कि कंपनी किसी भी रिकवरी एजेंट को न भेजने की बात कह रही है लेकिन पुलिस के मुताबिक कंपनी की ओर से अभी कोई सफ़ाई नहीं आई है.

BBC Hindi
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English summary
First kick then put the tractor and finally trampled with the Marshall
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