दलित संगठनों ने सरकार को 30 अगस्त तक का दिया वक्त, संयुक्त सचिव स्तर पर नियुक्तियों को लेकर आपत्ति
नई दिल्ली: कुछ दलित संगठन संयुक्त सचिव स्तर पर अधिकारियों की लेैटरल एंट्री के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं। उनके आंदोलन का नेतृत्व करने वाले अशोक भारती ने वन इंडिया को बताया कि वह उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और चंडीगढ़ सहित तमाम दलित संगठनों से मुलाकात कर रहे हैं। 'हमने 30 अगस्त, 2018 तक सरकार को समय दिया है और यदि सरकार हमारी मांगों को स्वीकार नहीं करती है, तो हम आंदोलन करने को बाध्य होंगे।' उन्होंने कहा कि वह उन लोगों से भी मिल रहे हैं जो सरकार से खुश नहीं हैं जैसे ओआरओपी को लेकर उसके विरोध में प्रदर्शन करने वालों पर भी नजरें हैं।
हालांकि, भाजपा के सांसद और एससी/एसटी संगठन के अखिल भारतीय संघ के अध्यक्ष उदित राज ने बाद में प्रवेश के माध्यम से आने वाले लोगों के लिए आरक्षण की मांग की और कहा कि दलित समुदाय में अच्छे अधिकारियों की कोई कमी नहीं है लेकिन उन्हें उचित जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि संयुक्त सचिव के दस पदों की नियुक्ति निजी संस्थानों के लोगों द्वारा भरी जा रही है जो आरक्षण नीति का उल्लंघन हैं। इसलिए उन्होंने एससी/एसटी और ओबीसी के आरक्षण की मांग की है।
तेलुगू देशम पार्टी, जो हाल ही में एनडीए से अलग हुई है, उसका मानना है कि ये नियुक्तियां संख्या में बहुत कम हैं, इसलिए यह आरक्षण नीति को बहुत प्रभावित नहीं करेगी। वन इंडिया से बात करते हुए तेलुगु देशम पार्टी के एमपी पी रविंद्र बाबू ने कहा कि यह एक तरह की विशेष जिम्मेदारी होगी जिसे नौकरी के साथ सौंपा जाएगा। वे अच्छे परिणाम देंगे और वापस जाएंगे। वास्तव में वो आरक्षण नीति को प्रभावित नहीं करेंगे।
लेकिन सरकार इस मामले पर दृढ़ है और केंद्रिय मंत्री जितेंद्र कुमार कहते हैं कि सरकार इस कदम को वापस नहीं लेगी। प्रस्ताव के साथ सरकार आगे बढ़ेगी। अशोक भारती, जिन्होंने 2 अप्रैल को भारत बंद बुलाया था, दलितों में काफी गुस्सा है। उनके लिए यह संवैधानिक तंत्र को अनदेखी करना है जो शीर्ष सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती के लिए अनिवार्य है। इसका विरोध एक संदेश देने की कोशिश है कि अगर उनकी परेशानियों पर सरकार ध्यान नहीं देती है, तो दलित बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनावों में एक करारा जवाब देंगे।