AFSPA के सख्त नियमों में बदलाव की तैयारी कर रही है केंद्र सरकार
नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानि अफस्पा के नियमों में बदलाव के लिए केंद्र सरकार विचार कर रही है। सरकार इसे और भी मानवीय बनाए जाने के लिए इस पर विचार कर रही है।अफस्पा के जरिए सेना को जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर के विवादित इलाकों में कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं जिसपर अक्सर विवाद होता रहता है और यहां के स्थानीय लोग इसके खिलाफ प्रदर्शन करते रहते हैं। लोग सेना पर अफस्पा के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहते हैं और इसे हटाए जाने की मांग करते रहते हैं, ऐसे में सरकार इसपर एक बार फिर से विचार कर रही है ताकि इसे और भी मानवीय बनाया जा सके जिससे की लोगों का सेना के प्रति रुख बदले।
सेक्शन 4 व 7 पर पुनर्विचार
अफस्पा के दुरुपयोग को रोकने के लिए केंद्र सरकार इसमे कुछ बदलाव करने की तैयारी कर रही है, इसके कुछ प्रावधानों को कमजोर बनाने को लेकर उच्च स्तरीय बातचीत भी चल रही है। जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने एक्सट्रा ज्युडिशियल किलिंग पर फैसले दिए और इसे लेकर बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी है, उसे ध्यान में रखते हुए यह बातचीत चल रही है। अफस्पा के सेक्शन 4 व 7 पर सरकार मुख्य रूप से चर्चा कर रही है, जिसके तहत सेना को आतंकविरोधी अभियान में असीमित व कानूनी सुरक्षा मिल जाती है।
क्या है सेक्शन 4
सेक्शन 4 के तहत जब सुरक्षाबल किसी भी परिसर की तलाशी लेते हैं तो उन्हें किसी को गिरफ्तार करने के लिए किसी भी वारंट की जरूरत नहीं होती है, इस नियम के तहत सुरक्षाबल किसी भी स्तर तक अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। यही नहीं अगर सेना को संदेह है तो वह किसी भी गाड़ी को रोक सकते हैं और उसकी तलाशी लेने के बाद उसे सीज कर सकते हैं। अफस्पा के इन प्रावधान के खिलाफ हमेशा से ही आवाज उठती रही है, लेकिन सेना का कहना है कि इस कानून के जरिए जवानों को जरूरी अधिकार मिलते हैं जिससे कि वह खतरनाक आतंकी स्थितियों से निपटने में सहज होते हैं और उन्हें सुरक्षा भी मिलती है।
कहां और कब लागू हुआ अफस्पा
गौरतलब है कि अफस्पा वर्ष 1958 में पहली बार अस्तित्व में आया था जब नागा उग्रवाद पर नियंत्रण करने के लिए आर्मी के साथ राज्य और केंद्रीय बल को गोली मारने, घरों की तलाशी लेने के साथ ही उस प्रॉपर्टी को अवैध घोषित करने का आदेश दिया गया था जिसका प्रयोग उग्रवादी करते आए थे। सिक्योरिटी फोर्सेज को तलाशी के लिए वारंट की जरूरत नहीं होती थी। यह कानून असम, जम्मू कश्मीर, नागालैंड और इंफाल म्यूनिसिपल इलाके को छोड़कर पूरे मणिपुर में लागू है। वहीं अरुणाचल प्रदेश के तिराप, छांगलांग और लांगडिंग जिले और असम से लगी सीमा पर यह कानून लागू है, साथ ही मेघालय में भी सिर्फ असम से लगती सीमा पर यह कानून लागू है।
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