प्रत्यर्पण संधि के अनुसार 25 साल से ज्यादा की कैद नहीं हो सकती, अबू सलेम की दलील पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में मुंबई बम विस्फोट मामले के दोषी अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम की 25 वर्ष से ज्यादा की सजा नहीं दिए जाने की दलील पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
नई दिल्ली, 2 फरवरी। सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में मुंबई बम विस्फोट मामले के दोषी अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम की 25 वर्ष से ज्यादा की सजा नहीं दिए जाने की दलील पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। दरअसल अबू सलेम ने कोर्ट में दलील दी है कि भारत-पुर्तगाल प्रत्यर्पण संधि के अनुसार उसे 25 साल से ज्यादा की कैद की सजा नहीं दी जा सकती है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने केंद्र से सलेम की याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा है। सलेम ने कहा कि साल 2017 में आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत जो उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी वह भारत-पुर्तगाल प्रत्यर्पण संधि की शर्तों के खिलाफ थी।
सलेम के वकील ऋषि मल्होत्रा ने कोर्ट को बताया कि 17 दिसंबर 2002 भारत सरकार ने पुर्तगाल सरकार को भरोसा दिलाया था कि यदि सलेम को भारत को सौंप दिया जाता है तो ना तो उसे मौत की सजा होगी और न ही उसे 25 साल से ज्यादा कैद में रखा जाएगा। उन्होंने कोर्ट से कहा कि टाडा कोर्ट का कहना था कि वह सरकार के आश्वासनों से बाध्य नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट के पास इस संबंध में व्यवस्था देने की शक्ति है। इसके अलावा मल्होत्रा ने कहा कि चूंकि अबू सलेम को रेड कार्नर नोटिस पर साल 2002 में पुर्तगाल से हिरासत में लिया गया था इसलिए उसकी सजा पर उसी तारीख से विचार किया जाना चाहिए न कि 2005 में उसके भारत प्रत्यर्पण की तारीख के आधार पर। उन्होंने कहा कि साल 2005 से सजा की अवधि की गणना के हिसाब से सलेम 17 साल की सजा काट चुका है जबकि सजा की गणना 28 मार्च 2003 से लागू होनी चाहिए। कोर्ट ने अबू सलेम की दलील पर महाराष्ट्र सरकार, केंद्र सरकार और सीबीआई से चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।