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केंद्रीय कृषि कानून: हंगामा क्यों है बरपा, आखिर हरियाणा और पंजाब के किसान ही क्यों भड़के हैं?

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नई दिल्ली। संसद के दोनों सदनों पारित और अब कानून बन चुके कृषि कानून 2020 को लेकर विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब के किसान भाई सड़कों पर हैं। सवाल है आखिर ऐसा क्या गलत कृषि कानून में प्रावधान किए गए हैं, जिसका वाकई नुकसान किसानों को हो रहा है या भविष्य में होने वाले नुकसान के प्रति किसान आशंकित है। इन्हीं सभी सवालों के जवाब तलाशने के लिए जब फैक्ट पर नजर डालते हैं कि पता चलता है कि एक नजर में कृषि कानून किसान विरोधी नहीं है, बल्कि इसमें किसानों को मंडियों, बिचौलियों से बचाने प्रावधान किया गया है।

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कृषि कानून को काउंटर करने के लिए पंजाब सरकार ने बिल पास किए हैं

कृषि कानून को काउंटर करने के लिए पंजाब सरकार ने बिल पास किए हैं

सवाल यह है कि फिर आखिर किसान सड़क पर क्यों हैं और उससे बड़ा सवाल यह है कि सिर्फ हरियाणा और पंजाब के किसान ही क्यों अधिक भड़के हुए हैं। एक तथ्य यह कहता है कि पिछले कई दशकों तक कांग्रेस का गढ़ रही हरियाणा में पहली बार बीजेपी ने सतारूढ़ हुई है, तो यह राजनीतिक मसला भी हो सकता है, दूसरे आंदोलनरत किसान पंजाब से है, जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में हैं। तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस शासित पंजाब और राजस्थान सरकार द्वारा विधानसभा में कृषि कानून को काउंटर करने के लिए पहले से ही विधेयक पारित कर दिए हैं, तो फिर सड़कों पर उतरने का मकसद क्या है?

पंजाब सरकार ने MSP नहीं देने पर 3 साल की सजा का प्रावधान किया है

पंजाब सरकार ने MSP नहीं देने पर 3 साल की सजा का प्रावधान किया है

बड़ी बात यह है कि पंजाब सरकार ने एमएसपी नहीं देने पर तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया है। ऐसे ही प्रावधान अब कांग्रेस शासित अन्य राज्यों की सरकारें भी लाने वाली हैं। कांग्रेस का मकसद हैं कि मोदी सरकार के कृषि कानूनों को कम से कम कांग्रेस शासित राज्यों में बेअसर कर दिया जाए। दिलचस्प बात यह है कि क्या राज्य विधानसभा में पास विधेयक संसद द्वारा पारित कानूनों को प्रभावित कर सकती है, जवाब होगा नहीं? इस तथ्य से आंदोलन के लिए खड़े हुए या किए गए किसान कितने वाकिफ है, यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता हैं।

CM केजरीवाल ने पंजाब विधानसभा में पारित कृषि विधेयक को फर्जी बताया

CM केजरीवाल ने पंजाब विधानसभा में पारित कृषि विधेयक को फर्जी बताया

क्योंकि कांग्रेस शासित राज्यों द्वारा कृषि कानून को काउंटर करने के लिए राज्य विधानसभाओं में पारित किए गए विधेयक को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। पंजाब में अगली बार सरकार बनाने को लेकर उत्साहित आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने पंजाब विधानसभा में पारित कृषि विधेयक को फर्जी बताते हुए उसकी वैधता पर सवाल उठा दिए हैं, जिसका बचाव के लिए पंजाब सरकार के मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह को खुद सामने आना पड़ा है। हालांकि पंजाब सीएम ने तर्क दिया है कि कृषि कानून राज्य का विषय है, लेकिन केंद्र ने इसे नजरंदाज कर दिया गया है।

संसद के दोनों में केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े तीन विधयेक लेकर आई थी

संसद के दोनों में केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े तीन विधयेक लेकर आई थी

गौरतलब है सितंबर में संसद के दोनों में केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े तीन विधयेक लेकर आई थी, जिससे लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में सरकार पारित कराने में सफल रही थी। मोदी सरकार ने इसे आजाद भारत का सबसे बड़ा कृषि सुधार करार दिया था। राष्ट्रपति की मुहर के बाद वजूद में आए कृषि कानून में प्रावधान किया गया कि अब किसान कहीं भी किसी को भी अपनी तय कीमत पर अपनी पैदावार बेच सकते हैं। उनके लिए सरकारी मंडियों में ही अपनी उपज मजबूरन बेचने की शर्त हटा ली गई, लेकिन कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष इन प्रावधानों को किसानों के खिलाफ बता रही है।

2019 घोषणा पत्र में कांग्रेस कृषि क्षेत्र के लिए समान प्रावधान की बात कही थी

2019 घोषणा पत्र में कांग्रेस कृषि क्षेत्र के लिए समान प्रावधान की बात कही थी

महत्वपूर्ण बात यह है कि कृषि कानून को किसानों के खिलाफ बताने वाली प्रमुख पार्टी कांग्रेस ने वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव से पूर्व जारी घोषणा पत्र में कृषि क्षेत्र के लिए कमोबेश ऐसे ही प्रावधानों को लागू करने की बात कह चुकी है। किसी भी पार्टी का घोषणा पत्र देश की जनता से किया गया वादा होता है, जो मतदाताओं से इस शर्त पर किया जाता है कि अगर उन्हें वोट दिया गया और उनकी सरकार बनती है, तो वो घोषणा पत्र में उल्लेखित वादों को पूरा करेगी। दिलचस्प बात यह है कि मोदी सरकार के कृषि कानून में उल्लेखित अधिकांश प्रावधान कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए गए वादों से हूबहू मेल खाते हैं।

घोषणा पत्र में कहा है कि कांग्रेस पार्टी APMC एक्ट खत्म कर देगी

घोषणा पत्र में कहा है कि कांग्रेस पार्टी APMC एक्ट खत्म कर देगी

उदाहरण के लिए कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव घोषणा पत्र में कहा है कि कांग्रेस पार्टी APMC एक्ट खत्म कर देगी ताकि किसान जहां चाहे अपनी उपज बेच सकें। मोदी सरकार के कृषि कानून में यही प्रावधान किया गया है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में कृषि क्षेत्र को लेकर दूसरा वादा किया गया है कि आश्वयक वस्तु अधिनियम 1955 पुराने पड़ चुके कानून का हटाएगी, जिसे नए कृषि कानून में हटा दिया गया है। 2014 में कांग्रेस ने फलों और सब्जियों को APMC एक्ट से बाहर कर दिया, लेकिन अपने राज्यों लागू किया। इसका प्रावधान भी कृषि कानून में शामिल किया गया है और APMC एक्ट से फलों और सब्जियों को बाहर कर दिया गया है। वर्ष 2013 में खुद राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस शासित राज्य अपने यहां फल और सब्जियों को APMC से बाहर करेंगे और अब वही कांग्रेस बदलाव का विरोध कर रही है, इसलिए इसे विरोध की राजनीति ही कहा जा सकता है।

मैं राजनीति छोड़ दूंगा अगर एमएसपी को लेकर समस्या हुई: हरियाणा CM

मैं राजनीति छोड़ दूंगा अगर एमएसपी को लेकर समस्या हुई: हरियाणा CM

कांग्रेस के इन्हीं राजनीतिक चरित्र पर टिप्पणी करते हुए गुरूवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कांग्रेस शासित पंजाब सरकार के मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह पर पलटवार किया। एक ट्वीट में हरियाणा के मुख्यमंत्री लिखा, मैं राजनीति छोड़ दूंगा अगर एमएसपी को लेकर समस्या हुई। इसलिए कांग्रेस किसानों को भड़काना बंद करे। हरियाणा सीएम आगे लिखते हैं, अमरिंदर सिंह जी मैं आपसे पिछले 3 दिन से संपर्क करने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन दुर्भाग्यवश आपसे संपर्क नहीं हो पाया। आपने बात नहीं करने का फैसाल किया, क्या किसानों को लेकर यही आपकी गंभीरता है। आप लगातार ट्वीट कर रहे हैं, लेकिन बातचीत से क्यों भाग रहे है? झूठ, धोखे और दुष्प्रचार का समय पूरा हुआ, क्योंकि लोगों ने आपका असली चेहरा देख लिया है।

 पंजाब सीएम को उग्र हालात के लिए सीधे-सीधेजिम्मेदार हैंः अनिल विज

पंजाब सीएम को उग्र हालात के लिए सीधे-सीधेजिम्मेदार हैंः अनिल विज

वहीं, पंजाब और हरियाणा के किसानों के उग्र होते हालात के लिए हरियाणा के गृह-स्वास्थ्य और निकाय मंत्री अनिल विज ने सीधे-सीधे पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह जिम्मेदार ठहराया हैं। उन्होंने कहा कि आज जो हरियाणा पंजाब में हो रहा है, उसके पीछे अमरिंदर मास्टरमाइंड अमरिंदर सिंह का हाथ हैं, जबकि हम किसानों के मामले में संयम बरत रहे हैं। दरसअल, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों से लोग 'दिल्ली चलो' के आवाह्न पर एकत्रित हो रहे हैं। कई जगह पुलिस से झड़पें भी हुई हैं और पुलिस आंसू गैस के गोले दागकर तथा वाटर कैनन चलाकर प्रदर्शनकारियों को भगा रही है।

नाराजगी की वजह किसानों को कहीं भी फसल बेचने की छूट बताई गई है

नाराजगी की वजह किसानों को कहीं भी फसल बेचने की छूट बताई गई है

किसानों की नाराजगी की वजह के रूप में कृषि कानून में किसानों को कहीं भी फसल बेचने की छूट को बताया जा रहा है। आरोप है कि यह पहले से बने मंडियों को खत्म करने की साजिश है। चूंकि मंडियों को यह नेटवर्क APMC कहलाता है, जिसे लोकल लेवल पर मंडी समिति कहा जाता है। किसानों के बीच भ्रम की स्थिति बन गई है कि इससे उन्हें फसल पर सरकार की ओऱ से घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी नहीं मिल पाएगा। यह भ्रम तब है जब कृषि कानून में एमएसपी को लेकर ऐसा कुछ नहीं लिखा गया है।

आशंका है कि सरकार शांताकुमार कमेटी की सिफारिशों को लागू करेगी

आशंका है कि सरकार शांताकुमार कमेटी की सिफारिशों को लागू करेगी

ऐसा लगता है कि उग्र हो रहे किसानों में यह आशंका बैठा दी गई है कि सरकार 2015 में बनी शांताकुमार कमेट की उन सिफारिशों को लागू करने की तरफ बढ़ रही है, जिसमें एफसीआई यानी फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के ऊपर से किसानों की उपज की खरीद को बोझ कम करने का जिक्र है। शांता कुमार कमेटी की सिफारिश किया गया है कि पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में एफसीआई के काम (किसानों से एमएमसपी पर उपज खऱीदने और भंड़ारण का काम ) को प्रदेश सरकार के जिम्मे कर दिया जाना चाहिए, जिससे केंद्र सरकार पर बोझ कम होगा।

पंजाब में कृषि कानून के विरोध की वजह 29 हजार कमीशन एजेंट हैं

पंजाब में कृषि कानून के विरोध की वजह 29 हजार कमीशन एजेंट हैं

यह आशंका किसानों में और घर कर गई, क्योंकि जून, 2019 में एक बयान में तत्कालीन उपभोक्ता मामलों के मंत्री दिवंगत राम विलास पासवान ने कहा था कि एफसीआई को लेकर शांता कुमार के सुझावों को लागू करना सरकार की प्राथमिकताओं में हैं। कृषि कानून के विरोध का दूसरा कारण राज्य सरकारें और वो कमीशन एजेंट (आढ़तिए) हैं, जिनकी दुकान कृषि कानून में बंद हुई है। मंडी समिति में किसानों को फसल बेचने में सहायता के बदले एक निश्चित रकम किसानों से लेने वाले आढ़तिए की संख्या सबसे अधिक पंजाब में हैं। पंजाब में करीब 29 हजार कमीशन खोर आढ़तियों की संख्या है, जिनकी मदद के बिना किसान मंडियों के भीतर अपनी उपज नहीं बेच सकता है। आढ़तिए किसान से एमएसपी का लगभग 2.5 फीसदी कमीशन लेते हैं।

आढ़तिए किसान से एमएसपी का लगभग 2.5 फीसदी कमीशन लेते हैं

आढ़तिए किसान से एमएसपी का लगभग 2.5 फीसदी कमीशन लेते हैं

उल्लेखनीय है पिछले साल अकेले पंजाब और हरियाणा में ही आढ़तियों ने 2000 करोड़ रुपए के आसपास कमाई की थी। मंडियों में किसानों के जरिए मोटा पैसा कमाने वाले आढ़तियों की दुकान कृषि कानून में किए गए नये प्रावधानों से बंद हो चुकी है, क्योंकि किसानों की उन पर निर्भरता खत्म कर दी गई है किसान अब कहीं भी अपनी उपज को बेच सकते हैं, जिससे अकेले पंजाब के 29 हजार आढ़तियों की कमीशन खोरी बंद होने के कगार पर आ गई है और अपने फायदे के लिए उन्होंने किसानों को आगे करके कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन को हवा दे रहे हैं।

ऐसे किसान 10% से भी कम हैं,जो तय MSP पर फसल बेच पाते हैं:NSSO

ऐसे किसान 10% से भी कम हैं,जो तय MSP पर फसल बेच पाते हैं:NSSO

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की 20212-13 की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे किसान 10 फीसदी से भी कम हैं, जो अपनी फसल को सरकार खऱीद सेंटर पर तय एमएमसपी पर बेच पाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में यह औसत अब गिरकर 6 फीसदी रह गया है। इनमें बड़ी संख्या उन किसानों की है, जो पंजाब और हरियाणा से आते हैं, 94 फीसदी किसानों को तो पहले ही एमएसपी नहीं मिलता और वो बाज़ार पर निर्भर हैं। भारतीय खाद्य निगम की कार्य कुशलता और वित्तीय प्रबंधन में सुधार के लिए बनाई गई शांता कुमार समिति की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि सरकार के अनाज ख़रीदने की व्यवस्था का लाभ न तो अधिक किसानों तक और न ही अधिक राज्यों तक पहुंचा है।

Comments
English summary
Both the Houses of Parliament have passed and now the law has become the law of agriculture, especially the farmers of Haryana and Punjab are on the streets. The question is, what provisions have been made in the wrong agricultural law that farmers are really harmed or farmers are apprehensive about future losses. To find the answers to all these questions, when we look at the factory, it becomes clear that at one point the agricultural law is not anti-farmer, but it has a provision to protect the farmers from the mandis, middlemen.
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