गुजरात धर्मांतरण केस: हाईकोर्ट के फैसले में टाइपिंग की गलती से सप्ताहभर जेल में रहे चार आरोपी, अब मिली जमानत
अहमदाबाद, 21 अक्टूबर। 13 अक्टूबर को गुजरात हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन विरोधी कानून और एससी एसटी एक्ट के एक केस में चार आरोपियों को अंतरिम जमानत देने का आदेश दे दिया लेकिन एक टाइपो एरर की वजह से फैसले को लागू नहीं किया जा सका। आरोपियों को रिहा होने के लिए एक सप्ताह जेल में ही रहना पड़ा। बीच में छुट्टियों की वजह से फैसले के टाइपो एरर को ठीक करने पर सुनवाई नहीं हो सकी। इस बुधवार को हाईकोर्ट ने फैसले की कॉपी को बदला और नए सिरे से आदेश दिया जिसके बाद आरोपियों को रिहा करने की कार्यवाही को आगे बढ़ाया जा सका।
टाइपिंग की गलती से काटते रहे जेल
एक दलित महिला ने पति, मौलवी और छह अन्य पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया था। बाद में उनके बीच समझौता हो गया और दर्ज एफआईआर को रफा-दफा करने के लिए सबने मिलकर कोर्ट में याचिका डाली थी। याचियों में शामिल चार आरोपी गुजरात धार्मिक स्वातंत्र्य (संशोधन) अधिनियम 2021 के तहत दर्ज केस में जेल में थे। कानून लागू होने के बाद दर्ज होने वाला यह पहला केस था। इसमें हाईकोर्ट के जज जस्टिस इलेश वोरा ने चारों आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का फैसला 13 अक्टूबर को दिया था लेकिन उसमें एक टाइपो एरर रह गया।
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हाईकोर्ट ने फिर से सुनाया फैसला
जज ने फैसले में कहा कि...याचिकाकर्ता संख्या 1, 6, 7 और 8 को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है। लेकिन याचिकाकर्ता 1 शिकायतकर्ता पत्नी थी जो कि न्यायिक हिरासत में नहीं थी। याचिकाकर्ता 2 पति, याचिकाकर्ता 6, 7, और 8 बाकी तीन आरोपी थे। हाईकोर्ट ने फैसले में याचिकाकर्ता 2 की जगह 1 लिख दिया जिस वजह से आदेश की तामील नहीं हो पाई और मामला टाइपो एरर ठीक कराने में फंस गया। फैसले में टाइपिंग की गलती ठीक कराने के लिए याचियों ने फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एक सप्ताह बाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें जज ने नए सिरे से आदेश दिया।
तीन महीने से ज्यादा समय से जेल में बंद थे आरोपी
सुनवाई में बुधवार को जज ने कहा कि याचियों के वकील ने फैसले में एक गलती बताई है जिसको ठीक किया जाना जरूरी है। इसलिए 13 अक्टूबर को दिए आदेश के पैराग्राफ 14 में जो लिखा है कि 'याचिकाकर्ता संख्या 1, 6, 7 और 8 को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है, उसकी जगह यह पढ़ा जाय कि 'याचिकाकर्ता संख्या 2, 6, 7 और 8 को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है'। 13 अक्टूबर के बाद से आरोपी जेल से रिहाई का इंतजार कर रहे थे। दशहरे और ईद मिलाद उन नबी की वजह से बीच में छुट्टियां रहीं। आरोपी पति पिछले चार महीने से जेल में था जबकि मौलवी समेत बाकी तीन पिछले तीन महीने से ज्यादा समय से जेल में बंद थे।
17 जून को दर्ज हुआ था पहला केस
गुजरात धार्मिक स्वातंत्र्य (संशोधन) अधिनियम 2021 लागू होने के दो दिन बाद ही 17 जून को यह केस दर्ज किया गया था जिसमें चारों आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। वडोदरा को गोत्री थाने में दर्ज केस में दलित महिला ने पति समेत चार पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया था। इस केस में गुजरात धार्मिक स्वातंत्र्य अधिनियम के साथ-साथ एससी एसटी एक्ट की धाराएं भी लगाई गई थीं। बाद में पति-पत्नी के बीच समझौता हो गया और केस को रफा-दफा कराने के लिए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका डाली थी। हलांकि इस मामले में एफआईआर को रफा-दफा करने की अर्जी पर कोर्ट में सुनवाई होनी है। अर्जी में कहा गया कि पति-पत्नी साथ रहना चाहते हैं और उनके बीच के मतभेद सुलझा लिए गए हैं। कोर्ट ने इस पर 13 अक्टूबर को आदेश में कहा था कि 15 दिनों तक दंपति साथ रहे, उसके बाद अदालत केस रफा-दफा करने के मामले में कोई फैसला लेगी।
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