Rajiv Assassination Case: राजीव हत्याकांड की जांच करने वाली जस्टिस वर्मा कमेटी क्या कहती है?
पूर्व प्रधानमंत्री की इस प्रकार निर्मम हत्या की जांच के लिए एक समिति का भी गठन किया था। इस समिति में केवल एक ही सदस्य थे, जिनका नाम जस्टिस जेएस वर्मा था। वे भारत के 25वें मुख्य न्यायाधीश थे।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या एक बार फिर चर्चा में है। दरअसल, उनके हत्यारों को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा कर दिया है। 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में एक चुनावी रैली के दौरान आत्मघाती हमले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। राजीव की हत्या में साजिश करने वाले गिरफ्तार सात लोगों के नाम - नलिनी श्रीहरन, रविचंद्रन, मुरुगन, संथन, जयकुमार, और रॉबर्ट पॉयस और पेरारिवलन हैं।
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पूर्व प्रधानमंत्री की इस प्रकार निर्मम हत्या की जांच के लिए एक समिति का भी गठन किया था। इस समिति में केवल एक ही सदस्य थे, जिनका नाम जस्टिस जेएस वर्मा था। वे भारत के 25वें मुख्य न्यायाधीश थे।
धमकियां
मिलने
के
बावजूद
एसपीजी
सुरक्षा
हटाई
गई
जस्टिस
वर्मा
ने
अपनी
रिपोर्ट
12
जून
1992
को
संसद
को
सौंप
दी
थी।
इसमें
उन्होंने
बताया
कि
प्रधानमंत्री
राजीव
गाँधी
ने
2
दिसंबर
1989
को
अपना
इस्तीफा
दिया
था।
उसके
बाद
एक
उच्च
स्तरीय
कमेटी
की
एक
बैठक
हुई,
जिसमें
निर्णय
लिया
गया
कि
पूर्व
प्रधानमंत्री
को
एसपीजी
सुरक्षा
देना
जारी
रखना
चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार कैबिनेट सचिव ने 4 दिसंबर 1989 को निर्देश दिए थे कि सरकार पूर्व प्रधानमंत्री को वही सुरक्षा प्रदान करेगी जो उन्हें पहले मिलती थी। मगर अचानक से 3 जनवरी 1990 को सुरक्षा में परिवर्तन कर दिया गया और उनकी एसपीजी सुरक्षा हटा दी गयी। जबकि इंटेलिजेंस और गृह मंत्रालय इस फैसले को लेकर बिलकुल भी संतुष्ट नहीं थे। उस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे।
जस्टिस वर्मा दावा करते है कि पूर्व प्रधानमंत्री को 1991 के लोकसभा चुनावों के दौरान धमकियाँ मिल रही थी। इन्हें देखते हुए इंटेलिजेंस द्वारा कई बार सर्क्युलर भी जारी किये गए थे। मगर उन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या से एक दिन पहले भी इंटेलिजेंस ब्यूरो ने सूचना दी थी कि राजीव गाँधी की सुरक्षा अपर्याप्त है और उन्हें कम-से-कम एनएसजी प्रदान करनी चाहिए।
इंटेलिजेंस
की
चेतावनियों
पर
किसी
ने
ध्यान
नहीं
दिया
तमिलनाडु
के
श्रीपेरुमबुदुर
में,
21
मई
1991
को
पूर्व
प्रधानमंत्री
राजीव
गाँधी
एक
चुनावी
रैली
को
संबोधित
करने
पहुंचे
थे,
वही
उनकी
हत्या
हुई
थी।
रिपोर्ट
का
दावा
है
कि
रैली
स्थल
पर
तैनात
सुरक्षाकर्मियों
ने
भी
सुरक्षा
व्यवस्था
को
लेकर
गंभीरता
नहीं
दिखाई।
दरअसल, राजीव गाँधी की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंपी गयी थी। यानि वे जहाँ-जहाँ दौरा करेंगे, उनके लिए सुरक्षा उस राज्य की सरकार करेगी। 23 जनवरी 1991 को इंटेलिजेंस ब्यूरो ने एक सर्क्युलर भी जारी करते हुए कहा था, "राजीव गाँधी सहित अन्य भारतीय नेता लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम के लिए बाधा बन रहे है इसलिए LTTE ने उन्हें धमकियां दी है।"
तमिलनाडु में उस दौरान राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था और LTTE के खिलाफ केंद्र सरकार की कार्यवाही ने LTTE के स्थानीय समर्थकों में बेहद नाराजगी पैदा की हुई थी। जिसके बाद 18 अप्रैल 1991 को एक बार फिर इंटेलिजेंस ब्यूरो ने एक सर्क्युलर भी जारी करते हुए चेतावनी दी, "किसी सार्वजनिक सभा अथवा रैली में हत्या की साजिश हो सकती है।"
हत्या
वाले
दिन
सुरक्षा
में
चूक
जस्टिस
वर्मा
अपनी
रिपोर्ट
में
लिखते
है,
"पूर्व
प्रधानमंत्री
की
रैली
से
कुछ
दिन
पहले,
18
मई
को
डीआईजी
और
सीआईडी
ने
जिक्र
किया
था
कि
गणमान्य
व्यक्ति
के
आसपास
किसी
भी
अज्ञात
व्यक्ति
के
पहुँचने
की
अनुमति
नहीं
रहेगी।
साथ
ही,
वीआईपी
को
माला
अथवा
फूल
देने
से
पहले
उनकी
जांच
करनी
होगी।
इन
सारी
बातों
को
नजरअंदाज
किया
गया
था।"
गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री को पहले तीन लोगों द्वारा माला पहनाया जाना तय किया गया था। बाद में इनकी संख्या को बढाकर 23 कर दिया गया। यह 23 लोग कौन थे, उनकी जांच नहीं की गयी थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि उस रैली के मुख्य आयोजक एजी दास थे। आश्चर्यजनक यह था कि वे मंच से लगातार घोषणा कर रहे थे कि जिन्हें राजीव गाँधी को माला पहनानी है, वे मंच के बायीं ओर आ जाये। उन्होंने अपनी घोषणा के दौरान किसी का नाम नहीं लिया। जिसके चलते कोई भी व्यक्ति पूर्व प्रधानमंत्री को माला पहनाने के लिए स्वतंत्र था। उनकी हत्या में इस चूक का भी बार-बार जिक्र किया जाता है।
लापरवाह
अधिकारियों
पर
कड़ी
कार्यवाई
नहीं
एक
बार
राजीव
गाँधी
पर
दिल्ली
स्थित
महात्मा
गाँधी
के
समाधि
स्थल
-
राजघाट
पर
हमला
हुआ
था।
तब
उनके
मुख्य
सुरक्षाधिकारी
गौतम
कौल
को
हटा
दिया
गया
था।
वे
राजीव
गाँधी
के
रिश्तेदार
भी
थे।
मगर
उनकी
हत्या
के
बाद,
तमिलनाडु
में
19
पुलिस
अधिकारियों
को
सस्पेंड
किया
गया
था।
जस्टिस
वर्मा
का
कहना
था
कि
इन
अधिकारियों
द्वारा
सुरक्षा
में
चूक
के
चलते
ही
पूर्व
प्रधानमंत्री
के
साथ
हादसा
हुआ।
फिर
भी
बाद
में
कई
पुलिस
अधिकारियों
को
दुबारा
नौकरी
करने
की
अनुमति
दे
दी
गयी
थी।
नरसिम्हा
राव
सरकार
ने
रिपोर्ट
स्वीकार
नहीं
की
साल
1993
में
प्रधानमंत्री
पीवी
नरसिम्हा
राव
ने
पहले
इस
रिपोर्ट
को
स्वीकार
करने
से
मना
कर
दिया
था
लेकिन
बाद
में
भारी
दवाब
के
चलते
उन्होंने
इसे
मान
लिया।
हालाँकि,
इस
रिपोर्ट
के
सुझावों
पर
कभी
गौर
नहीं
किया
गया।