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Hindu Refugees: राजस्थान में 25000 पाक से भागे हिन्दू शरणार्थी, वर्षों से कर रहे भारतीय नागरिकता का इंतजार

बीतें दिनों पहले जोधपुर में, फिर जैसलमेर के अमर सागर क्षेत्र में पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के आशियानों को स्थानीय प्रशासन ने बुलडोजर से रौंद दिया। मगर यह समस्या सिर्फ दो जिलों की नहीं बल्कि पूरे राजस्थान की है।

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Rajasthan 25000 Hindu refugees fled from Pakistan waiting for Indian citizenship

Hindu Refugees: पाकिस्तान में धार्मिक और सामाजिक उत्पीड़न से तंग आकर भारत आने वाले हिंदू विस्थापितों की संख्या कम नहीं है। आमतौर पर ये लोग पाकिस्तान से पर्यटन या धार्मिक वीजा पर भारत आते हैं और फिर यहीं बस जाते हैं। मगर जिंदगी की बदनसीबी यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ रही। अच्छी जिंदगी की तलाश में भारत आने वाले इन हिन्दू विस्थापितों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। भारतीय नागरिकता न मिलने के कारण उन्हें न सिर्फ सरकारी योजनाओं से वंचित रहना पड़ता है बल्कि निजी क्षेत्र के दरवाजे भी उनके लिए बंद रहते हैं। कहने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 संसद से पास हो गया है, लेकिन उसका लाभ हिंदू शरणार्थियों को नहीं मिल रहा है। राजस्थान में मेहनत मजदूरी करके जीवनयापन करने वाले तकरीबन 25 हजार से अधिक पाकिस्तानी हिंदू विस्थापित आज भी भारतीय नागरिकता का इंतजार कर रहे है।

जोधपुर और जैसलमेर में उजड़ गये आशियानें

जोधपुर में 24 अप्रैल को चोखा गांव में जोधपुर विकास प्राधिकरण ने अतिक्रमण विरोधी अभियान के नाम पर इन हिन्दू शरणार्थियों के घरों पर बुलडोजर चलाया था। इस कार्रवाई के शिकार हुए लोगों के पास भारत में रहने के लिए लॉन्गटर्म वीजा है। पीड़ितों ने यह जमीन स्थानीय भूधारकों से 70 हजार रुपये से लेकर 2 लाख रुपये देकर खरीदी थी। इसके बावजूद जिला प्रशासन ने इन्हें बेघर कर दिया।

जोधपुर में बुलडोजर चलने के बाद जैसलमेर में भी जिला प्रशासन की जेसीबी हिंदू विस्थापितों पर चल चुकी है। नतीजतन 150 से ज्यादा बच्चों सहित महिलायें और पुरुष बेघर हो गये। ये लोग भी लॉन्गटर्म वीजा पर भारत आए थे। यह कार्यवाही जैसलमेर से 5 किलोमीटर दूर अमर सागर पंचायत क्षेत्र में की गयी थी। कहा जा रहा है कि कलेक्टर टीना डाबी के आदेश पर ही घरों को तोड़ा गया था। यूआईटी ने करोड़ों की कीमत वाली भूमि को खाली कराने के लिए जिला प्रशासन से मदद मांगी थी। मामला बिगड़ने के बाद जैसलमेर जिला प्रशासन ने हिंदू शरणार्थियों के रहने का फिलहाल बंदोबस्त कर दिया है।

मूलभूत सुविधाओं को तरसे हिंदू विस्थापित

पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान आने वाले हिंदू विस्थापितों की असली परीक्षा यहां आने के बाद ही शुरू होती है। उन्हें सिर छुपाने के लिए ऐसी जगह मिलती है, जहां पर न तो सड़क होती है, न बिजली और न ही बच्चों के लिए स्कूल। गरीब होने के कारण उनकी जिंदगी मजदूरी पर ही निर्भर करती है। ऐसे में वह अपनी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करें या फिर नागरिकता के लिए? भारतीय नागरिकता नहीं मिलने के कारण पाक विस्थापितों को केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रखा जाता है। आधार कार्ड और राशन कार्ड समेत अन्य दस्तावेज नहीं होने से सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। ऐसे में उनका पूरा जीवन मजदूरी पर ही निर्भर हो गया है।

हिन्दू शरणार्थियों की अनुमानित संख्या

पश्चिमी सरहद से सटे पाकिस्तान के सिंध इलाके में रहने वाले अधिकांश हिंदू परिवार बाड़मेर, जैसलमेर व जोधपुर से जुड़े हुए हैं। इनके पारिवारिक संबंध आज भी यहीं है। इनमें से मात्र 1500 के आसपास लोगों को अभी तक नागरिकता मिली है। तकरीबन 18 हजार पाक विस्थापित पंजीकृत है। वहीं 3 हजार के आसपास गैर पंजीकृत है। इनके अलावा 4 हजार हिन्दू शरणार्थी राजस्थान के जयपुर सहित अन्य इलाकों में रह रहे हैं।

संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 पास हो गया है। ऐसे में राजस्थान में रह रहे इन 25 हजार पाकिस्तान विस्थापितों को भारतीय बनने की आस जगी हुई है। मगर 6 साल के प्राकृतिक रहवास और सरकारी प्रक्रिया में अन्य जटिलताओं सहित धीमी गति के चलते नागरिकता मिलना आज भी दूर की कौड़ी बनी हुई है।

नागरिकता देने के लिए कलेक्टर को अधिकार

केंद्र सरकार ने नागरिकता देने को लेकर तीन साल पहले दिशा-निर्देश जारी कर जिला कलेक्टर्स को अधिकार दिए थे। मगर यहां भी औपचारिकताएं इतनी हैं कि इन विस्थापितों को नागरिकता मिलने का काम धीरे चल रहा है। अब केंद्र सरकार प्राकृतिक रहवास की अवधि 12 से 6 साल करने जा रही है, ऐसे में कुछ लोगों को सीधे इसका फायदा मिल जायेगा। ये ऐसे लोग हैं जिनके माता-पिता का जन्म 1947 के बाद हुआ और नागरिकता के लिए जरुरी रहवास करने की अवधि को पूरा कर चुके हैं।

ऐसे मिलती है नागरिकता

पाक विस्थापितों को नागरिकता देने के लिए एसीपी की तरफ से जांच होने के बाद कलेक्टर को रिपोर्ट भेजी जाती है। संबंधित जिला कलेक्टर केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेजता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय क्लीयरेंस के लिए आवेदन जांच एजेंसी आईबी के पास भेजता है। आईबी क्लीयरेंस के बाद संबंधित जिला कलेक्टर नागरिकता प्रदान करते हैं। इसके लिए नागरिकता कैंप लगाए जाते हैं।

भारत सरकार ने राज्य के जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, सिरोही, बीकानेर, जालौर और पाली कलेक्टर को नागरिकता देने के लिए शक्तियां दे रखी हैं। अन्य जिलों में राज्य सरकार का गृह विभाग नागरिकता प्रमाण पत्र देता है। इन जिलों को राज्य के गृह विभाग से अनुमति नहीं लेनी होती है। हालांकि, गृह विभाग को सूचना देनी होती है।

इस कारण होता है विलम्ब

भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के समय पाकिस्तानी पासपोर्ट चालू हालात में होना चाहिये। यानि एक्सपायर्ड डेट का पासपोर्ट मान्य नहीं होता। सात साल यहां निकालने के दौरान अधिकांश विस्थापितों का पासपोर्ट एक्सपायर्ड हो जाता है। ऐसे में उन लोगों को पाकिस्तानी दूतावास से इसका नवीनीकरण करवाना पड़ता है। पासपोर्ट नवीनीकरण के लिए पाक दूतावास के चक्कर काटने में समय के साथ काफी पैसा खर्च हो जाता है।

आमतौर पाकिस्तानी विस्थापित पर्यटन या धार्मिक वीजा पर भारत आते हैं और फिर यहीं बस जाते है। यहां रहने के लिए उन्हें अपने रहने के स्थान के साथ ही एक गारंटर का नाम व पता देना होता है। बरसों तक नागरिकता का इंतजार करने के दौरान ये लोग काम के सिलसिले में पुराना पता छोड़ और कहीं रहना शुरू कर देते है। ऐसे में नागरिकता प्रदान करने से पहले आईबी की टीम पुराने पते पर पहुंचती है तो सम्बन्धित व्यक्ति वहां नहीं मिलता। इस पर उसके खिलाफ रिपोर्ट चली जाती है और नागरिकता अटक जाती है।

नियमों का हो सरलीकरण

पाक विस्थापितों का कहना है कि बड़ी संख्या में लोग बरसों से नागरिकता मिलने का इंतजार कर रहे हैं। उनके अनुसार पासपोर्ट नवीनीकरण की शर्त को बदला जाना चाहिये। यहां आते ही एक बार पासपोर्ट सरेंडर करवा दिया जाए, ताकि पाकिस्तानी दूतावास के चक्कर नहीं काटना पड़े। साथ ही गारंटर की वर्तमान व्यवस्था में कुछ बदलाव होना चाहिये।

शिविर लगा कर दें नागरिकता

पाक विस्थापितों का कहना है कि शिविर लगाकर नागरिकता प्रदान की जानी चाहिये। नागरिकता की शर्तें व नियम पूरे करने वाले लोगों के आवेदन लेने के साथ ही सभी अधिकारियों को एक स्थान पर बैठा सारी औपचारिकताएं एक ही स्थान पर पूरी की जाए। ताकि लोगों को नागरिकता सुगमता से मिल सके।

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