Calligraphy in Constitution: जिन्होंने अपनी खूबसूरत लिखावट में तैयार की संविधान की पहली प्रति
Calligraphy in Constitution: भारतीय संविधान को लागू हुए 72 साल हो गए। लेकिन संविधान की पहली प्रति के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। संविधान के सजे हुए जो फोटो हम देखते हैं, दरअसल वे संविधान की पहली हस्तलिखित प्रति के फोटो हैं, जिन्हें कैलीग्राफी के जरिए तैयार किया गया था। इसे तैयार किया था, दिल्ली निवासी प्रेम बिहारी रायजादा ने।
सक्सेना कायस्थ परिवार में 17 दिसंबर 1901 को जन्मे प्रेम बिहारी रायजादा का पारिवारिक कार्य कैलीग्राफी था। मूल संविधान को हस्तलिपिबद्ध करने पर उन्हें मानदेय का भी प्रस्ताव दिया गया था, जिसे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिया था। लेकिन प्रेम बिहारी ने मानदेय लेने से इन्कार कर दिया था।
संविधान की सुसज्जित और सुलिखित प्रति पर जानकारी हासिल करने से पहले जानते हैं कि आखिर कैलीग्राफी है क्या? कैलीग्राफी दरअसल देखने में सुंदर लिखावट की कला है। इसका चलन प्राचीन काल से ही है। पहले इसका प्रयोग पत्थरों पर हुआ। फिर समय ने करवट बदली तो बाद में धातुओं की प्लेटों पर सुंदर अक्षरों में लिखा जाने लगा।
जब कागज का आविष्कार हुआ तो सरकंडे की कलम, पक्षियों के परों की कलम बनाकर सुंदर अक्षरों में लिखा जाने लगा। यह कला विकसित होती रही और जब निब का आविष्कार हुआ तो स्याही के जरिए निब से सुंदर अक्षरों में लिखा जाने लगा।
अपने देश में अशोक के स्तंभ पत्थर पर कैलीग्राफी कला के बेहतर नमूने हैं। मुगल बादशाह औरंगजेब ना सिर्फ कैलीग्राफी का शौकीन था, बल्कि वह खुद भी कुरान की प्रतियां कैलीग्राफी से ही तैयार करता था।
बहरहाल छापेखाने के आविष्कार ने कैलीग्राफी कला को सीमित कर दिया है। कुछ साल पहले तक तो कैलीग्राफी की सुंदर लिखावट में स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालयों की डिग्रियां दी जाती थीं। टाइपोग्राफी ने भी कैलीग्राफी की कला को स्वीकार किया है। विभिन्न प्रकार के खूबसूरत फॉंट कैलीग्राफी कला का ही विस्तार हैं।
जब 26 नवंबर 1949 को संविधान के पहला ड्राफ्ट तैयार हो गया तो तय हुआ कि संविधान की पहली प्रति को कैलीग्राफी यानी अक्षरांकन की खूबसूरत कला में सहेजा जाय। इसके बाद अंतरिम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसके लिए दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के स्नातक प्रेम बिहारी रायजादा से संपर्क किया। प्रेम बिहारी ने कैलिग्राफी की कला अपने दादा मास्टर रामप्रकाश जी सक्सेना से सीखी थी और देखते ही देखते दिल्ली में अक्षरांकन कला में उनका बड़ा नाम हो गया।
जब
प्रेम
बिहारी
रायजादा
से
खूबसूरत
लिखावट
में
इटैलिक
अक्षरों
में
संविधान
की
प्रति
लिखने
के
लिए
पंडित
नेहरू
ने
अनुरोध
किया
तो
उन्होंने
अपनी
एक
शर्त
रख
दी।
उन्होंने
पंडित
नेहरू
से
कहा
था,
"लेकिन
मेरी
एक
शर्त
है,
संविधान
के
हर
पृष्ठ
पर
मैं
अपना
नाम
लिखूंगा
और
अंतिम
पृष्ठ
पर
मैं
अपने
दादाजी
का
भी
नाम
लिखूंगा।"
उनकी
शर्त
पर
तत्कालीन
सरकार
ने
विचार
किया
और
यह
शर्त
मान
ली
गई।
सरकार
ने
शर्त
स्वीकार
करने
के
बाद
जब
प्रेम
बिहारी
रायजादा
से
इसके
लिए
मेहनताना
के
बारे
में
पूछा
तो
उनका
जवाब
बड़ा
गंभीर
था।
रायजादा
ने
कहा,
"मुझे
एक
भी
पैसा
नहीं
चाहिए।
भगवान
की
कृपा
से
मेरे
पास
सबकुछ
है,
और
मैं
अपने
जीवन
से
काफी
खुश
हूं।"
प्रेम बिहारी रायजादा ने अक्षरांकन के जरिए भावी भारत की वैधानिक संहिता को तैयार करने का काम जब स्वीकार कर लिया तो उन्हें संविधान सभा के भवन में ही एक हॉल अलाट कर दिया गया। जहां उन्होंने छह महीने में यह कार्य पूरा किया। रायजादा को मूल संविधान हस्तलिपिबद्ध करने में 254 पेन होल्डर निब लगे थे। इसे लिखने में 303 नम्बर की निब का इस्तेमाल हुआ।
बाद में इस हस्तलिखित संविधान की देहरादून स्थित भारतीय सर्वेक्षण विभाग कार्यालय ने फोटोलिथोग्राफी के जरिए प्रति बनाई। चूंकि महात्मा गांधी संविधान सभा के सदस्य नहीं थे, इसलिए उनका हस्ताक्षर मूल संविधान में नहीं है।
आपको बता दें कि जिन पृष्ठों में प्रेम बिहारी रायजादा ने संविधान के 395 अनुच्छेदों, 8 अनुसूचियों और प्रस्तावना को अपने मोती जैसे अक्षरों से सजाया है, उन पन्नों को शांतिनिकेतन से जुड़े मशहूर चित्रकार नंदलाल बोस और उनके साथी बिरहोर राममनोहर सिन्हा ने डिजाइन किया था। उन पन्नों की बॉर्डर लाइन बेहद कलात्मक ढंग से तैयार की गई है।
संविधान की कैलीग्राफी वाली प्रतियों के मुखपृष्ठ पर सिंधुघाटी की सभ्यता के साथ ही महान भारतीय सभ्यता के प्रतीकों-देवताओं के चित्र भी शामिल किए गए हैं। मूल संविधान में वैदिक काल के गुरूकुल का दृश्य रामायण से श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के वनवास से घर वापस आने का दृश्य, श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गीता का उपदेश, के दृश्यों को भी दर्शाया गया है। इसी प्रकार गौतम बुद्ध व महावीर के जीवन, सम्राट अशोक व विक्रमादित्य के सभागार के दृश्य भी मूल संविधान की प्रति में मिलते है।
इसके साथ ही अकबर, शिवाजी, गुरूगोबिन्द सिंह, टीपू सुल्तान और रानी लक्ष्मीबाई के चित्र भी मूल संविधान में है। स्वतंत्रता संग्राम के दृश्य को महात्मा गांधी के दांडी मार्च के जरिए दिखाया गया है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का चित्र राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों का प्रतिनिधित्व करता है। मूल संविधान में "भारतमाता" का उल्लेख नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चित्र के वर्णन में मिलता है। मूल प्रति में कला को देखने पर अजन्ता के भित्ति चित्र याद आने लगते है।
भारत के मूल संविधान की उद्देशिका को अपने कला कार्य के जरिए ब्योहार राम मनोहर सिन्हा ने सजाया है। इसके साथ ही उद्देशिका पृष्ठ पर ब्योहार राम मनोहर सिन्हा ने अपने नाम के केवल राम शब्द का उपयोग करते हुए हस्ताक्षर किए है। इसके साथ ही जयपुर के कृपाल सिंह शेखावत ने मूल संविधान के कला कार्य में सहयोग दिया।
कृपाल सिंह शेखावत को 1974 में पद्मश्री व 2002 में शिल्पगुरू सम्मान से सम्मानित किया गया। जबकि प्रेमनारायण रायजादा को पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया। इसके लिए कृपाल सिंह शेखावत ने मूल संविधान में कई चित्र बनाये। कृपाल सिंह शेखावत ने जयपुर वापस आकर परंपरागत ब्लू पॉट्री कला को जिन्दा किया, जिसके लिए उन्हें जयपुर की महारानी गायत्री देवी ने सहयोग भी दिया।
संविधान की मूल पांडुलिपि 16 इंच चौड़े और 22 इंच लंबे चर्मपत्र शीटों पर लिखी गई थी। इस पांडुलिपि में 251 पृष्ठ शामिल थे और जिसका वजन 3.75 किलो था। संविधान की तीन प्रतियां बनवाई गईं। जिनमें से दो को नंदलाल बोस और राम मनोहर सिन्हा द्वारा सुसज्जित पन्नों पर प्रेम बिहारी रायाजादा ने एक हिंदी और दूसरी अंग्रेजी में तैयार की। जबकि तीसरी कॉपी अंग्रेजी में है, जिसे देहरादून में फोटोलिथोग्राफी के जरिए छपवाया गया।
संविधान लागू होने के दो दिन पहले यानी 24 जनवरी 1950 को तीनों प्रतियों पर संविधान सभा के सभी 308 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे। हाथ से लिखी संविधान की दो मूल प्रतियां जिनमें से एक हिंदी और दूसरी अंग्रेजी में है, को संसद भवन के पुस्तकालय में हीलियम भरे केस में सुरक्षित रखा गया है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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