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Flashback 1947: मुसलमानों को भी नामंजूर था जिन्ना का पाकिस्तान

By Vivek
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नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। क्या आप यकीन करेंगे कि देश के बंटवारे के बाद बहुत बड़ी तादाद में मुसलमान भी जिन्ना के पाकिस्तान को छोड़कर भारत आ गए थे? इन मुसलमानों को उस मुल् में रहना मंजूर नहीं था, जो सिर्फ मुसलमानों के लिए बन रहा था। उनमें ताज मोहम्मद खान भी थे। उन्हें आप नहीं जानते। वे कांग्रेसी थे। वे फ्रंटियर सूबे (अब पाकिस्तान) में स्वीधनता आंदोलन से जुड़े हुए थे। पर, आप उनके पुत्र को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। वे बॉलीवुड के सबसे बड़े स्टार हैं। नाम है शाहरूख खान। शाहरूख का जिक्र यहां पर ही खत्म करते हैं। बहरहाल, देश मजहब के नाम पर बंटा। मोहम्मद अली जिन्ना की अगुवाई में मुस्लिम लीग का पृथक इस्लामिक राष्ट्र का सपना 14 अगस्त,1947 को पूरा हो गया।

सैकड़ों मुसलमानों को जिन्ना का पाकिस्तान मंजूर नहीं था। इन्हें मुसलमान होने के बाद भी इस्लामिक मुल्क का नागरिक बनना नामंजूर था। एक दौर में नेहरु-गांधी परिवार के खासमखास और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहम्मद युनूस भी उन मुसलमानों में थे,जो फ्रंटियर छोड़कर दिल्ली आ गए थे। वे तो खान अब्दुल खान के करीबी संबंधी भी थे। वे लंबे अरसे तक ट्रेड फेयर अथारिटी ऑफ इंडिया के सर्वेसर्वा भी रहे।

साम्प्रदायकिता की आग में झुलस रहा था देश

आमतौर पर यही माना जाता है कि देश बंटा तो भारत के विभिन्न सूबों से मुसलमानों ने पाकिस्तान का रुख कर लिया। हालांकि जितने सरहद के उस पार गए उससे ज्यादा यही रहे। उन्होंने इस्लामी राष्ट्र की बजाय धर्मनिरपेक्ष देश का नागरिक बनना पसंद किया। बहरहाल, नए इस्लामिक मुल्क से तमाम हिन्दू-सिख भारत आ गए। ताज मोहम्मद जैसे बड़ी तादाद में मुसलमानों ने तब भारत का रुख किया जब देश साम्प्रदायकिता की आग में झुलस रहा था। जाहिर है, ये कोई सामान्य बात नहीं थी।

अरुण शौरी के पिता ने छोड़ दिया था पाकिस्तान

देश के बंटवारे के बाद पंजाब के रावलपिंड़ी शहर में तैनात आला अफसर एचसी शौरी दिल्ली आ गए थे। वे वरिष्ठ लेखक और पत्रकार अरुण शौरी के पिता थे। वे यहां पर शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए स्थापित किए गए सरकारी महकमे में रीहबिलटैशन कमिश्नर थे। उन्होंने करीब 20-22 साल पहले एक बातचीत में इस लेखक को बताया था कि बंटवारे के समय भारत आए मुसलमानों ने अपने लिए सस्ते घरों या दूसरी रियायतें की मांग नहीं की। वे यहां पर आने के बाद अपने कामकाज में लग गए। ये ज्यादातर फ्रंटियर से थे।

70 लाख हिंदू और सिखों ने छोड़ा था पाकिस्तान

बंटवारे के बाद कुछ महीनों तक करीब डेढ़ करोड़ लोग सरहद के आर-पार गए अपनी जिंदगी की बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ने के लिए। एक अध्ययन के मुताबिक, करीब-करीब 70-70 लाख हिन्दू और सिख पाकिस्तान से भारत आए,जबकि इतने ही मुसलमानों ने पाकिस्तान का रुख किया। पर, उन मुसलमानों की पहचान नहीं की गई जो पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।

मशहूर चिंतक और रंगकर्मी शम्शुल इस्लाम इस्लाम का परिवार भी तब दिल्ली आया था जब महजब के नाम कत्लेआम का दौर जारी था। इस्लाम बताते हैं कि उनके दादा-पिता और परिवार के दूसरे सदस्य उस मुल्क में रहने के लिए कतई तैयार नहीं थे,जो सिर्फ मुसलमानों के लिए बना था। वे गांधी के भारत में ही रहना चाहते थे। उनके पुरखों को कभी भी इस बात का अफसोस नहीं हुआ कि उनका फैसला गलत था।

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English summary
Not many people are aware of the fact the huge number of Muslims too settle for India than Pakistan in 1947.
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