जानिए '-24 GDP' का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर, हो सकते हैं ये अहम बदलाव
नई दिल्ली। कोरोना महामारी का असर भारत सहित दुनियाभर के देशों में देखने को मिला है। कई देशों की अर्थव्यवस्था पर इस महामारी की मार झेलनी पड़ी। भारत पर भी इस महामारी का बड़ा असर देखने को मिला है। केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की ओर से वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के आंकड़े जारी किए गए हैं। पहली तिमाही यानि अप्रैल और जून माह के बीच देश की अर्थव्यवस्था की दर में 23.9 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है, जोकि अपने में रिकॉर्ड गिरावट है। हालांकि पहले ही इस बात का अनुमान लगाया जा रहा था कि अप्रैल से जून के बीच देश में लॉकडाउन की वजह से जीडीपी 18 फीसदी तक गिर सकती है। लेकिन जब आंकड़े जारी किए गए तो यह अनुमान से कहीं अधिक देखने को मिली। बता दें कि देश की जीडीपी में यह रिकॉर्ड गिरावट 1996 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है।
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किन वजहों से आई गिरावट
केंद्र सरकार की ओर से जो आंकड़े जारी किए गए हैं उसमे कहा गया है कि कोरोना वायरस की महामारी की वजह से देश की आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप थीं, यही नहीं आंकड़े इकट्ठा करने के तंत्र पर भी काफी बुरा असर पड़ा है, जिसकी वजह से देश की जीडीपी में यह गिरावट देखने को मिली है। सरकार की ओर से कहा गया है कि 25 मार्च को लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से रुक गईं थीं। यहां अहम बात यह है कि भारत दुनिया की सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरी थी, लेकिन मौजूदा हालात की वजह से अब देश की अर्थव्यवस्था को इस संकट से उबरने में कम से कम एक वर्ष का समय लगेगा।
एक साल पीछे हुई अर्थव्यवस्था
लॉकडाउन खत्म होने के बाद देश में आर्थिक गतिविधियों ने फिर से रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी है। लेकिन बावजूद इसके इस बात को लेकर अभी भी अनिश्चितता है कि आखिर कितने समय में देश की आर्थिक सेहत पटरी पर आएगी। दरअसल कोरोना वायरस के संक्रमण की रफ्तार मौजूदा समय में दुनिया में सबसे तेज है, लिहाजा अभी भी अर्थव्यवस्था को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। रविवार को भारत में दुनिया में सबसे अधिक कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए। रविवार को देश में कोरोना के 78000 मामले सामने आए, जबकि देश में कोरोना के कुल मामले 40 लाख को भी पार कर गए हैं।
सरकार की नीतियों में आ सकता है बदलाव
जीडीपी के मौजूदा आंकड़ों को देखते हुए सरकार को इसे पटरी पर लाने के लिए आवश्यक कदम उठाने बेहद जरूरी हैं। यानि लोगों से जुड़े फैसलों को लेकर सरकार को अब अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। देश के लिए नीतिगत फैसले लेने में जीडीपी एक अहम भूमिका निभाती है। अगर जीडीपी बेढ़ रही है तो इसका स्पष्ट संदेश यह होता है कि सरकार देश की अर्थव्यवस्था की दिशा में बेहतर काम कर रही है, लेकिन जीडीपी गिरने से लोगों के बीच यह संदेश जाता है कि सरकार की नीतियां प्रभावी नहीं हैं और जमीनी स्तर पर इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है। जिस तरह से देश की अर्थव्यवस्था चार दशकों के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंची हैं, उसे देखते हुए सरकार को कुछ बड़े और अहम नीतिगत फैसले लेने की जरूरत है, ताकि गिरती अर्थव्यवस्था को एक बार फिर से पटरी पर लाया जा सके। ऐसे में आने वाले दिनों में इस दिशा में सरकार की ओर से बड़े फैसले लिए जा सकते हैं।
निवेशकों का भरोसा होगा कम
आर्थिक विकास दर यानि जीडीपी के आंकड़े गिरने का बड़ा असर शेयर बाजार, कारोबार, निवेशकों पर भी पड़ता है। बेहतर जीडीपी होने पर निवेशकों का विश्वास बढ़ता है और लोग निवेश करते हैं, जिसकी वजह से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है और आशावादी माहौल में अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज होती है। लेकिन सोमवार को जीडीपी के आंकड़े सामने आने के बाद इसका सीधा असर शेयर बाजार पर देखने को मिला, सेंसेक्स तकरीबन 900 अंक गिरा तो निफ्टी में भी तकरीबन 250 अंकों की गिरावट देखने को मिली। लिहाजा सरकार से उम्मीद है कि निवेशकों का भरोसा एक बार फिर से कायम करने के लिए कुछ बड़े कदम उठाए जाएंगे।