अब जैविक दवाएं बचाएंगी अल्सरेटिव कोलाइटिस से
दरअसल अल्सरेटिव कोलाइटिस आंतो में होने वाली आटो इम्यून बीमारी है। इसमें शरीर की प्रतिरोधक क्षमता खुद ही आंतो के खिलाफ एण्टीबाडी बनाने लगती हैं। अभी तक इस खतरनाक बीमारी से निपटने के लिए स्टेराइड दवाएं ही इस्तेमाल की जाती थी। ये दवाइयां मरीज को लाभ की जगह नुकसान ज्यादा पहुंचाती हैं।
यहां के गैस्ट्रोमेडिसिन विभाग के प्रमुख डा़ जी़ चौधरी कहते है अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए अभी तक जो स्टेराइड दवाएं दी जाती है उनसे इस एक बीमारी से निपटते निपटते इस दवा के दुष्प्रभाव की वजह से ही कई अन्य बीमारियां पैदा हो जाती है। इससे जहां मरीजों का वजन बढ़ जाता है वहीं रक्तदाब और शर्करा की मात्रा भी बढ़ जाती है। इतना ही नहीं यह दवा अल्सरेटिव कोलाइटिस को खत्म करते -करते हड्डियों को कमजोर कर देती है। साथ ही आंखों को मोतियाबिंद का तोहफा भी दे जाती है। लिहाजा काफी सालों से इस बीमारी से छुटकारा दिलाने के लिए एक ऐसा दवा की खोज की जा रही थी जिसके परिणाम घातक नहीं हो।
उन्होंने बताया ऐसी दवा की खोज के लिए विश्व के तीस देश लगे हुए थे जिसमें 120 संस्थानों पर इस विषय में शोध चल रहा था इसमें यह संजय गांधी स्नात्कोत्तर संस्थान भी शामिल था।
वह बताते है कि इस शोध की सफलता पहले इस बात पर निर्भर कर रही है कि हमने इस दवा कर उपयोग इंजेक्शन के माध्यम से करने की कोशिश की है। जिसके बेहतरीन परिणाम सामने आयें है। यही नहीं उन्होंने पूरे दावे के साथ कहा यह नई दवा चूंकि जैविक समूह की है लिहाजा मानव शरीर पर इसके दुष्परिणामों का तो सवाल ही नहीं खड़ा होता है। इस दवा की खासियत बताते हुए डा चौधरी कहते हैं यह कोशिका स्तर पर पहुंच कर पूरे तंत्र को निष्क्रिय कर देती है जो इस बीमारी से बचाने के लिए बेहद असरकारक है। लेकिन इस दवा को वह बहुत महंगा भी बताते है। वह कहते है इस दवा की एक या दो डोज करीब दो या तीन लाख की है हालांकि इस शोध में शामिल मरीजों को इसका उपचार मुफ्त किया गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।