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सैंडी कोहेनः गरीबी के खिलाफ जंग

By शेष नारायण सिंह
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सैंडी कोहेन 1987 में अपनी बेटी के साथ पहली बार भारत आई थीं। उनके पास पैसे बहुत कम थे। उनका कहना है कि वह खुशकिस्मत थीं कि उनके पास पैसे की अधिकता नहीं थी क्योंकि साधारण से साधारण जगह पर वे रुकीं, सस्ती से सस्ती सवारी से यात्रा की, खटारा बसों में चलीं और रेल के चालू डिब्बों में सफर किया। और जब उनकी भारत यात्रा पूरी हुई तो वे भारत से मुहब्बत कर बैठी थीं।

करीब से देखी गरीबी

अपनी यात्रा में उन्होंने गरीबी को बहुत करीब से देखा, इतने करीब से देखा कि उन्हें एक अजीब सी अनुभूति हुई। सैंडी को पता लग चुका था कि जरूरी नहीं है कि जो आदमी गरीब है, वह खुश न हो। उसके बाद सैंडी बार-बार भारत आती रहीं और हर बार भारत को अपनाती गईं और एक मुकाम उनकी जिंदगी में आया जब वे भारत के बिना अपने अस्तित्व के बारे में सोच भी नहीं सकती थीं।

वो खौफनाक हकीकत

1993 में सैंडी ने राजस्थान की एक सड़क पर एक नजारा देखा जिसके बाद वह दहल गईं। राजस्थान के किसी गांव में उन्होंने करीब पंद्रह साल की एक लड़की देखी, जिसकी गोद में एक बच्चा था, एक बच्चा उस लड़की की उंगली पकड़कर चल रहा था। लोगों से पूछने के बाद जब सैंडी को पता लगा कि दोनों बच्चों की मां और कोई नहीं वही लड़की है, तो उनके पांव की जमीन खिसक गई। वे सन्न रह गईं। आगे जानकारी लेने की कोशिश की तो पता लगा कि वह लड़की एकदम निरक्षर है और उसके पास मेहनत के अलावा रोटी कमाने का और कोई ज़रिया नहीं है। उनको विश्वास ही नहीं हुआ कि गरीबी की सच्चाई इतनी खौफनाक हो सकती है।

अंतरात्मा की पहरेदार

दो बच्चों की मां, वह किशोरी सैंडी की अंतरात्मा की पहरेदार बन गयी और जब भी उनको भारत की याद आती, वह बच्ची ज़रुर याद आती। उनके दिमाग में हमेशा यह बात घूमती रहती कि गरीबी के इस भयानक रूप को कैसे पराजित किया जा सकता है। सोच-विचार के बाद उनकी समझ में महिला सशक्तीकरण को बुनियादी बातें आने लगीं। जब उनकी मां के निधन के बाद उन्हें पंद्रह हजार पांच सौ डॉलर विरासत में मिले तो उन्होंने तय किया कि उस पैसे को वे भारत में इस्तेमाल करेंगी।

मुहब्बतनामा से मिशन तक

यहीं से शुरुआत होती है सैंडी कोहेन के भारत के मुहब्बतनामे को एक मिशन में बदलने की कहानी। उन्होंने गरीबी रेखा के बहुत नीचे वाले परिवारों को समृद्घ बनाने की एक योजना पर काम शुरू कर दिया। इस योजना को कार्य रूप देने के लिए अक्टूबर 2003 में सैंडी कोहेन ने अपना पहला केंद्र दिल्ली से लगे साहिबाबाद के शहीद नगर मुहल्ले में शुरू किया। उसके बाद अमरोहा और हैवतपुर में भी सेंटर शुरू किए गए। जो सफलता पूर्वक चल रहे हैं।

गरीबी हटाने और बच्चियों को आत्म-निर्भर बनाने की अपनी इस मुहिम में सैंडी को पता है कि भोजन, रहने का ठिकाना, स्वास्थ्य और शिक्षा के सहारे ही वे सफल हो पाएंगी। सैंडी कोहेन की योजना है कि देश के अन्य भागों में भी वे अपने सेंटर खोलेंगी और गरीबी के खिलाफ जारी जंग में अपना योगदान करेंगी। [सैंडी से विशेष साक्षात्कार पढने के लिए यहां क्लिक करें]

[शेष नारायण सिंह वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हैं।]

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