जानिए कैसे बनता है कुंडली में मांगलिक दोष
[पं. अनुज के शुक्ल] हिन्दू समाज में लड़के और लड़कियों की कुण्डली मिलाते समय मांगलिक दोष पर अधिक जोर दिया जाता है। यद्यपि लड़के के पिता इस बात से विशेष चिन्तित नहीं होते। किन्तु लड़की के माता-पिता केवल यह सुनकर ही चिन्ता में पड़ जाते हैं, कि उनकी कन्या मांगलिक है।
इस मांगलिक दोष को इतना भयानक माना जाता है कि कुछ लोग यह पता लगाने पर की उनकी लड़की मंगली है, नकली जन्म पत्री भी बनवा लेते हैं। सच पूछिए तो ऐसा करके पिता अपनी बेटी का जीवन खुद बर्बाद करते हैं। दक्षिण भारत में इसे कुज दोष कहते हैं। और असंख्य सुन्दर एवं सुशोभित कन्याओं के विवाह में मांगलिक दोष विरोध या विलम्ब उत्पन्न कर रहा है।
वास्तविकता यह है कि दाम्पत्य जीवन में सुख व दुःख का निर्णय करने वाले अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों में से मांगलिक दोष की भूमिका तो होती है, लेकिन यह अकेला ही दाम्पत्य को दुःखमय बना सकता है, ऐसा भी नहीं।
कुण्डली में कैसे बनता है मंगल दोष
मांगलिक दोष कब माना जाता है। जब कुण्डली में लग्न, चैथे, सातवें, आठवें या 12वें स्थान में मंगल बैठा हो। कुण्डली के इन पाॅच भावों में मंगल के बैठने पर मंगलिक दोष होता है। स्थान का अंदाजा आप ऊपर तस्वीर में कुंडली के प्रारूप को देख कर लगा सकते हैं।
- लग्न में मंगल हो तो स्वास्थ्य पर दुषप्रभाव पड़ता हैं, व्यक्ति स्वभाव से उग्र एवं जिद्दी होता है।
- चौथे स्थान में मंगल होने पर जीवन में भोगोपभोग की समाग्री की कमी रहती है। यह स्थिति मांगल की सातवें स्थान पर दृष्टि पडती जो दाम्पत्य सुख पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
- सातवें स्थान में स्थिति मंगल दाम्पत्य सुख (रति सुख) की हानि तथा पत्नी के स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचाता है। इस स्थान में स्थित मंगल की दशवें एवं दूसरे भाव पर दृष्टि पड़ती है। दशम से अजीविका का तथा द्वितीय स्थान से कुटुम्ब का विचार किया जाता है। अतः इस स्थान में स्थित मंगल आजीविका एवं कुटुम्ब पर भी अपना प्रभाव डालता है।
- आठवें स्थान में मंगल कभी-कभी दम्पति मे से किसी एक की मृत्यु भी करा सकता है।
- 12वें स्थान में स्थित मंगल व्यकित के क्रय शक्ति (व्यय) को प्रभावित करने के साथ सप्तम स्थान पर अपनी दृष्टि के द्वारा साक्षात दामपत्य सुख को प्रभावित करता है।
इन पाँच स्थानों में लग्न, चैथे, सातवें, आठवें एवं 12वें स्थानों में स्थित मंगल अपनी दृष्टि या युति से सप्तम को प्रभावित करने के कारण दाम्पत्य सुख के लिए हानिकारक माना गया है। अष्टम स्थान आयु का प्रतिनिधि भाव है, तथा यह पत्नी का मारक (सप्तम से द्वितीय होने के कारण) स्थान होता है। अतः इस स्थान का मंगल दम्पति में से किसी एक का मृत्यु कर सकता है। इसलिए इस स्थान में भी मंगल की स्थिति अच्छी नहीं मानी गयी है।