Fish Farming : अरविंद कुमार वायुसेना छोड़ने के बाद मत्स्य और गोपालन से जुड़े, पहले ही साल मिला अवॉर्ड
आगरा, 14 मई : उत्तर प्रदेश के आगरा में बना ताजमहल मोहब्बत की निशानी के रूप में मशहूर है। इसी शहर में एक और प्रेमकहानी साकार होती दिखी जब एक वायुसेना अधिकारी ने पशुपालन और मत्स्यपालन की रूचि को रोजगार बना लिया। पूर्व वायुसेना अधिकारी अरविंद कुमार को मछलीपालन से मोहब्बत कुछ इस कदर हुई कि इन्होंने न केवल इसे पेशा बनाया, बल्कि सफलता के झंडे भी गाड़े। करीब छह साल पहले आगरा में लीज पर जमीन लेने के बाद मछलीपालन शुरू करने वाले अरविंद कुमार की कड़ी मेहनत का ही नतीजा रहा कि पहले ही साल में इन्हें आगरा मंडल में बेस्ट फिश फार्मर का अवॉर्ड भी मिला। जानिए कैसे वायुसेना से अलग होने के बाद पानी में नौसैनिक की तरह मछली पालन कर रहे अरविंद कुमार को सक्सेस कैसे मिली। (इस स्टोरी की तस्वीरें दूरदर्शन से साभार ली गई हैं। फोटो सौजन्य- डीडी किसान यूट्यूब वीडियो ग्रैब)

2003 में छोड़ी नौकरी, 13 साल बाद मछली पालन
वायुसेना के पूर्व अधिकारी अरविंद कुमार ने 2003 में नौकरी छोड़ने के बाद मत्स्य पालन शुरू किया। मछलीपालन से जुड़ने से पहले अरविंद ने कुछ और व्यवसाय भी किए। कामयाबी मिलने के बाद झारखंड के रांची यूनिवर्सिटी में अरविंद मत्स्यपालन विभाग के संपर्क में आए।

आगरा में जमीन लीज पर लेकर मछली पालन
डीडी किसान के एक कार्यक्रम में अरविंद बताते हैं कि मछली पालन का विचार आने के बाद उन्होंने इससे जुड़ी हुई जानकारी जुटाई। वे बताते हैं कि 2016 में आगरा में जमीन लीज पर लेकर मछली पालन का काम शुरू किया। उन्होंने बताया कि मछलीपालन ऐसा व्यवसाय है जिसमें किसानों की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी।

2017 में बेस्ट फिश फार्मर का अवॉर्ड
बकौल अरविंद कुमार, सरकारी योजनाओं की जानकारी मिलने के बाद सरकार से अनुदान भी मिला। उन्होंने अपनी कामयाबी के बारे में बताया कि पहले ही साल आगरा मंडल में मछलीपालन में पुरस्कार मिला। उन्होंने बताया कि 2017 में सरकार की ओर से उन्हें बेस्ट फिश फार्मर का पुरस्कार दिया गया। इससे उत्साह और बढ़ा।

मछलीपालन के बाद पशुपालन की शुरुआत
2017 में उत्पादन के आधार पर आगरा मंडल में सबसे अधिक मछली उत्पादन का पुरस्कार मिलने के बाद सरकार की ओर से और मदद मिली। अरविंद कुमार ने बताया कि आगरा मत्स्य विभाग में जाने के बाद यूपी और भारत सरकार, दोनों की ओर से अनुदान मिला। इसके बाद 2020 में कृषि विज्ञान केंद्र बीजपुरी के संपर्क में आए। यहां से पशुपालन के बारे में मिली जानकारी।

आगरा में अरविंद के लिए वरदान बना खारा पानी
अरविंद कुमार की मदद करने वाले कृषि विज्ञान केंद्र आगरा में पदस्थापित धर्मेंद्र सिंह बताते हैं कि जो किसान मछली पालन कर रहे हैं, उन्हें पशुपालन से मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि मछलियों के खाने पर 35-40 फीसद खर्चा होता है। उन्होंने बताया कि लेबर कॉस्ट पानी का खर्चा मिलाकर टोटल कल्टिवेशन कॉस्ट 80-90 प्रतिशत हो जाता है। आर्थिक पहलू देखते हुए आगरा में कृषि विज्ञान केंद्र पर नेचुरल फार्मिंग पर जोर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि गाय का गोबर, मुर्गी पालन बीट का उपयोग कर मछली के वजन बढ़ाने और अधिक उत्पादन के मामले में आगरा के किसानों को लाभ मिल रहा है। बकौल धर्मेंद्र सिंह, आगरा का खारा पानी स्थानीय लोगों के लिए परेशानी है। ऐसे पानी में मछली पालन चुनौतीपूर्ण है, लेकिन अरविंद कुमार के लिए यह वरदान बन गया।

मछली पालन में सक्सेस के बाद गायों का पालन
मछलीपालन से जुड़े जानकारों की मानें तो पशुपालन और मत्स्यपालन साथ में करने से मछलियों के फीड की समस्या खत्म हो जाती है। जानकारों के मुताबिक गाय के गोबर का इस्तेमाल कर मछलियों का चारा तैयार हो सकता है। गोबर के इस्तेमाल से खेतों में जैविक खाद बनती है। खाद में पैदा होने वाला केंचुआ मछलियों का आहार बनता है।
देसी
गायों
का
पालन
अरविंद
कुमार
ने
इस
आधार
पर
गिर
और
साहिवाल
किस्म
की
देसी
गायों
का
पालन
शुरू
किया।
उन्होंने
गोबर
से
कंपोस्ट
बनाने
का
प्लान
भी
बनाया
है।
अरविंद
बताते
हैं
कि
गोबर
से
बनी
खाद
का
खेतों
में
इस्तेमाल
किया
जा
सकता
है।
मछलियों
को
बढ़ने
के
लिए
प्रोटीन
की
जरूरत
होती
है
और
केंचुआ
में
अधिक
मात्रा
में
प्रोटीन
होता
है।