खेती में 1.5 करोड़ रुपये आमदनी ! 5000 किसानों का मसीहा बना मरीजों का इलाज करने वाला डॉक्टर
Dragon Fruit Farming की मदद से एक डॉक्टर 1.5 करोड़ रुपये कमा रहा है। ये डॉक्टर 5000 किसानों को मदद मिल रही है। Dragon Fruit Farming hyderabad dr srinivas rao Deccan Exotics farmer training
Dragon Fruit Farming की मदद से एक डॉक्टर 1.5 करोड़ रुपये कमा रहा है। हैदराबाद के डॉ. श्रीनिवास राव माधवरम दिन में डॉक्टर का काम करते हैं। डॉ श्रीनिवास रात में किसानी करते हैं। खास बात ये है कि एक ही समय में ये डॉक्टर 5000 किसानों को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। चैलेंजिंग बात ये कि एक साथ दो करियर मैनेज करने की चुनौती से भी डॉ श्रीनिवास भली-भांति निपट रहे हैं। डॉ श्रीनिवास इस बात से काफी खुश हैं कि वे मोटी आमदनी के साथ-साथ हजारों किसानों को खेती से जोड़ रहे हैं। ड्रैगन फ्रूट की मार्केट डिमांड और खेती किसानी में भविष्य को देखते हुए श्रीनिवास की सक्सेस काफी इंस्पायरिंग है। (सभी फोटो सौजन्य- deccanexotics.com/gallery)
अस्पताल के बाद खेत में काम
आंतरिक चिकित्सा में एमडी की डिग्री रखने वाले डॉ श्रीनिवास बताते हैं कि वे अपने काम को कुछ इस तरह विभाजित करते हैं कि वे मरीजों का इलाज करते हुए खेती किसानी में भी बराबर योगदान दे रहे हैं। वे बताते हैं कि चिकित्सा और खेती के बीच संतुलित कर सकें। 36 वर्षीय डॉ श्रीनिवास ने बताया, मैं अस्पताल में सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक काम करता हूं। बाकी दिन का पूरा समय खेत में बिताता हूं।
किसान परिवार में जन्म, 6 साल पहले बदली लाइफ
श्रीनिवास का जन्म तेलंगाना के कुकटपल्ली में किसान परिवार में हुआ था। वह अपने दादा और पिता को खेतों में मेहनत करते देख बड़े हुए हैं। खेती में रुचि डेवलप होने के बाद श्रीनिवास ने इसे करियर बनाने का फैसला लिया। खेती को समर्पित लाइफ के बारे में श्रीनिवास बताते हैं कि उनका जीवन बदलने वाला क्षण 2016 में आया। उन्होंने जब ड्रैगन फ्रूट का स्वाद चखा तो वे इसके मुरीद हो गए।
विदेश से आयात करते हैं लोग
ड्रैगन फ्रूट के बारे में श्रीनिवास ने कहा, अनोखे रूप और रंग के बावजूद भले ही इसका स्वाद पसंद नहीं आया, लेकिन वे फल के प्रति आकर्षित हो गए और इसके बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी। शोध के दौरान उन्हें समझ में आया कि ये विदेशी फल, ज्यादातर अलग-अलग देशों से इंपोर्ट किए जाते हैं। भारत में भी अब कई जगहों पर इसकी खेती होती है।
पहली बार वियतनाम से इंपोर्टेड ड्रैगन फ्रूट मिला
डॉ श्रीनिवास की ड्रैगन फ्रूट फार्मिंग पर द बेटर इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया, मैंने पहली बार ड्रैगन फ्रूट चखा तो इसका स्वाद अच्छा नहीं लगा और ये बहुत महंगा भी लगा। बाद में फल के बारे में रिसर्च करने पर जानकारी मिली कि स्वाद पसंद न आने का कारण वियतनाम से इंपोर्टेड ड्रैगन फ्रूट है। लंबे समय तक रखे रहने के कारण इसकी ताजगी समाप्त हो गई। यहीं से ड्रैगन फ्रूट फार्मिंग का विचार आया। भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती पर शोध शुरू हो गया।
देश भर के किसानों को मुफ्त ट्रेनिंग
विदेशी ड्रैगन फ्रूट मार्केट और फल के स्वाद को समझते हुए डॉ श्रीनिवास ने इसकी जैविक खेती का फैसला लिया। उन्होंने बताया कि तेलंगाना के संगारेड्डी में वे करीब 30 एकड़ खेत में 45 से अधिक प्रकार के ड्रैगन फ्रूट उगाते हैं। ड्रैगन फ्रूट के बारे में लोगों को जानकारी मिले इस मकसद से डॉ श्रीनिवास ड्रैगन फ्रूट्स पर रिसर्च और डेवलपमेंट जैसे काम भी करते हैं। डॉ श्रीनिवास देश भर के किसानों को मुफ्त ट्रेनिंग देते हैं।
सेहत के लिए क्यों खास है ड्रैगन फ्रूट
जो भी किसान ड्रैगन फ्रूट जैसे विदेशी फलों की खेती करना चाहते हैं, उन्हें ड्रैगन फ्रूट की संभावनाएं बताई जाती हैं। बकौल डॉ श्रीनिवास, उनके खेतों में पैदा होने वाला ड्रैगन फ्रूट स्वादिष्ट ही नहीं बल्कि बेहद पौष्टिक भी होता है। उन्होंने कहा कि ड्रैगन फ्रूट सुपरफूड की श्रेणी में आते हैं। एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन सी से भरपूर ड्रैगन फ्रूट की एक और विशेषता कैलोरी में कम होना है। भले ही ये फल मीठा होता है, लेकिन नेचुरल शुगर के कारण मधुमेह के रोगी भी इसका सेवन कर सकते हैं।
आम से अधिक आयरन की मात्रा
ड्रैगन फ्रूट पर रिसर्च करने वाले डॉ श्रीनिवास बताते हैं कि इस फल के बीज ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं। साथ ही ड्रैगन फ्रूट्स में सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम का स्तर फलों के राजा आम के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होता है। यहां तक कि आयरन की मात्रा भी आम की तुलना में चार गुना अधिक होती है। करीब 6 साल पहले 2016 में, जब डॉ राव ड्रैगन फ्रूट और इसकी खेती के दायरे पर शोध कर रहे थे, तो उन्हें जानकारी मिली कि भारत में कुछ ही किसान हैं जो इसे उगाते हैं।
पहली कोशिश में मिली नाकामी
शुरुआती सफर के बारे में डॉ राव कहते हैं कि उन्होंने फलों की केवल दो मूल किस्मों की खेती से शुरुआत की। हालांकि, ड्रैगन फ्रूट के 100 से अधिक किस्में उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल के किसानों से लगभग 1,000 पौधे खरीदने के बाद अपने खेत में लगाया। दुर्भाग्य से, पहला प्रयास सफल नहीं हुआ और अधिकांश पौधे जीवित नहीं बच सके। ये ऐसा समय था जब श्रीनिवास के पास विदेशी फलों की खेती खासकर ड्रैगन फ्रूट की खेती से जुड़ी सभी जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि कम गुणवत्ता वाले पौधे जीवित नहीं बचाए जा सके।
30 एकड़ में सालान 100 टन फसल
विदेश जाने के फायदों पर डॉ श्रीनिवास ने कहा, उन्होंने ताइवान से पौधों को ग्राफ्टिंग और हाइब्रिडाइजिंग जैसी तकनीकों के माध्यम से अच्छी किस्में बनाना भी सीखा। साल 2017 में भारत वापस आकर डॉ राव ने हैदराबाद के पास संगारेड्डी में अपने खेतों में ड्रैगन फ्रूट से जुड़ी सीख आजमानी शुरू कर दी। IIHR तुमकुर के सहयोग से डॉ श्रीनिवास ने अच्छी गुणवत्ता वाले पौधे विकसित किए और उन्हें अपने खेत, डेक्कन एक्सोटिक्स में लगाया। Deccan Exotics 30 एकड़ में फैला हुआ है। बड़े पैमाने पर सफल ड्रैगन फ्रूट फार्मिंग का अंदाजा इसी बात से होता है कि अब डॉ श्रीनिवास एक एकड़ में लगभग 10 टन फसल उपजाते हैं। वार्षिक उपज लगभग 100 टन हो जाती है।
ड्रैगन फ्रूट के लिए 13 देशों की यात्रा
ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानने के लिए डॉ श्रीनिवास ने देश के विभिन्न हिस्सों की यात्रा कर किसानों और विशेषज्ञों से बात की। कई लोगों ने कहा कि हैदराबाद में ड्रैगन फ्रूट्स का प्रचार मुश्किल होगा, लेकिन हार मानने का सवाल ही नहीं था। शायद ऐसे ही किसी मौके पर भारत रत्न डॉ कलाम ने कहा था, FAIL नाकामी हीं, सीखने का पहला प्रयास है। बकौल डॉ श्रीनिवास अपनी यात्रा के माध्यम से उन्होंने यह भी समझा कि भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे लोग कैसे पौधों को पोषित और संरक्षित कर रहे हैं। उन्होंने ड्रैगन फ्रूट्स के बारे में अधिक जानने और उन्हें उगाने की कला में महारत हासिल करने के लिए वियतनाम, ताइवान, फिलीपींस आदि सहित लगभग 13 देशों की यात्रा भी की। उन्होंने कहा, "मैंने वियतनाम के एक संस्थान से प्रशिक्षण लिया और तकनीक सीखने के लिए एक ड्रैगन फ्रूट किसान के साथ रहा।
एक पौधे से 20 साल तक फल मिलते हैं
रोपाई के समय के बारे में डॉ श्रीनिवास बताते हैं कि भारत में ड्रैगन फ्रूट लगाने के लिए मार्च से जुलाई के बीच का समय सबसे अच्छा है। एक बार जब ड्रैगन फ्रूट परिपक्व हो जाए है, तो जून से अक्टूबर के बीच भरपूर फसल मिलती है। विशेष रूप से बरसात के मौसम में ड्रैगन फ्रूट का बेहतर विकास होता है। बता दें कि भारत में अलग-अलग समय पर बारिश होती है, ऐसे में एक ड्रैगन फ्रूट का पौधा 20 साल तक फल दे सकता है। इसमें रखरखाव की जरूरत भी बहुत कम होती है।
60,000 से अधिक ड्रैगन फ्रूट
पांच साल के अनुभव के बारे में डॉ श्रीनिवास कहते हैं कि वर्तमान में उन्होंने अपनी भूमि पर 60,000 से अधिक ड्रैगन फ्रूट उपजाए हैं। इसमें एक नर्सरी भी शामिल है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाले ड्रैगन फ्रूट के पौधे विकसित करते हैं। उन्होंने अनुसंधान के लिए एक केंद्र और फार्म के भीतर ही ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट जैसे विदेशी फलों के मामले में अनुसंधान जरूरी है क्योंकि इस संबंध में किसानों को देश भर में शिक्षित करने की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा, अधिक कुशल किस्मों और उच्च गुणवत्ता वाले पौधों के विकास के लिए अनुसंधान भी जरूरी है। ड्रैगन फ्रूट फार्मिंग में एक्सपर्ट और सफल किसान बन चुके डॉ श्रीनिवास ने खुद के जर्मप्लाज्म से कुछ नई किस्मों को भी विकसित किया है।
2017 में बनाया FPO
खुद की विकसित ड्रैगन फ्रूट वेराइटी के संबंध में डॉ श्रीनिवास कहते हैं कि नई किस्मों में से एक सामान्य किस्मों की तुलना में तीन गुना तेजी से बढ़ता है। किसी भी कठोर मौसम में ये फल खराब नहीं होते। भारत के कई राज्यों में ड्रैगन फ्रूट की इस किस्म का सफल ट्रायल हो चुका है। डॉ श्रीनिवास ने इसे डेक्कन पिंक नाम दिया गया है। डॉ राव ने डेक्कन एक्सोटिक्स को एक किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के रूप में 2017 में ही पंजीकृत करा लिया था। इस FPO की मदद से विदेशी फलों, विशेष रूप से ड्रैगन फ्रूट की खेती में रुचि रखने वाले किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है।
डेढ़ करोड़ से अधिक की सालाना कमाई
फिलहाल डॉ श्रीनिवास की FPO डेढ़ करोड़ से अधिक की सालाना कमाई कर रही है। 5000 से अधिक किसानों से जुड़े डॉ श्रीनिवास सबको ट्रेनिंग भी दे रही हैं। इनसे इंस्पायर होकर बिहार के एक युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने नौकरी छोड़ने के बाद Dragon Fruit Farming की शुरुआत की है। किशनगंज का ये युवा भी डॉ श्रीनिवास की तरह सफल किसान बन चुका है।