गर्भावस्था : क्या कहता है हमारा धर्म और हमारे शास्त्र?
आंचल श्रीवास्तव
कहते हैं की अभिमन्यु ने अपनी माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह की रचना को समझ लिया था लेकिन चक्रव्यूह भेदने की क्रिया को जानने के समय उनकी माँ की आँख लग गयी जिस कारण वश जब महाभारत में वह परिस्थितियां आयीं ओ अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदने की कला नहीं आती थी। सुभद्रा हों या कयाधू सभी ने गर्भ से ही अपने शिशु में उत्तम संस्कार डालने का कार्य किया।
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सोलह संस्कारों में भी यह कथित है
हमारे हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों का वर्णन किया गया है। इनमें से दूसरे स्थान पर है पुंसवन संस्कार। कहते हैं की कोई भी बालक बड़ा होकर किस प्रकार का मनुष्य बनेगा; कैसे आचरण करेगा; कैसा व्यव्हार रखेगा यह सब उसे उसकी माँ से गर्भ के भीतर ही मिलना शुरू हो जाता है।
क्या होता है पुंसवन संस्कार?
पुंसवन-संस्कार का उद्देश्य बलवान, शक्तिशाली एवं स्वस्थ संतान को जन्म देना है। इस संस्कार से गर्भस्थ शिशु की रक्षा होती है तथा उसे उत्तम संस्कारों से पूर्ण बनाया जाता है। ईश्वर की कृपा को स्वीकार करने तथा उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट के लिए प्रार्थना एंव यज्ञ का कार्य संपन्न किया जाता है। साथ ही यह कामना की जाती है कि वह समय पूर्ण होने पर परिपक्वरुप में उत्पन्न हो।
कैसा होता है मां का भ्रूण से सम्बन्ध
एक मां का अपने बच्चे से कैसा सम्बन्ध होता है इसे शब्दों में समेट पाना तो असम्भव है लेकिन एक महिला के लिए शायद दुनिया का सबसे सुनहरा पल वह होता है जब वह मां बनती है। उससे पहले तो उसे यह एहसास भी नहीं होता कि उसकी ज़िंदगी कितनी अधूरी थी। आजकल की आपाधापी और बिगड़ी हुई जीवन शैली में एक नये जीवन को जन्म देना नई औरतों को बोझ लगता है। पर यह एक बेहद ही खूबसूरत अनुभव है की आप ईश्वर के बाद पृथ्वी पर ऐसी हैं जो एक नये जीवन की कृति करने में सक्षम है।
क्या कहता है गरुण पुराण?
मान्यतानुसार, भगवान विष्णु के परम भक्त गरुण को स्वयं विष्णुजी ने जो सीख दी थी, उसे गरुण पुराण के रूप में भक्त पाते हैं। इस पुराण में जीवन-मृत्यु, स्वर्ग, नरक, पाप-पुण्य, मोक्ष पाने के उपाय आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके साथ ही गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि शिशु को माता के गर्भ में क्या-क्या कष्ट भोगने पड़ते हैं और वह किस प्रकार भगवान का स्मरण करता है।
क्या है प्रथम मास की बात?
गरुण पुराण में वर्णित तथ्यों के अनुसार, एक महीने में शिशु का मस्तक बन जाता है और फिर दूसरे महीने में हाथ आदि अंगों की रचना होती है। तीसरे महीने में शिशु के उन शारीरिक अंगों को आकार मिलना आरंभ हो जाता है। जैसे कि अंगुलियों पर नाखून का आना, त्वचा पर रोम की उत्पत्ति, हड्डी, लिंग, नाक, कान, मुंह आदि अंग बन जाते हैं।
तीसरे महीने में क्या होता है?
तीसरे महीने के खत्म होने तक तथा चौथे महीने के शुरू होने के कुछ समय में ही त्वचा, मांस, रक्त, मेद, मज्जा का निर्माण होता है। पांचवें महीने में शिशु को भूख-प्यास लगने लगती है। छठे महीने में शिशु गर्भ की झिल्ली से ढंककर माता के गर्भ में घूमने लगता है।
छठे महीने में बेहोश भी हो सकता है शिशु
गरुण पुराण के अनुसार छ्ठे महीने के बाद जब शिशु भूख-प्यास को महसूस करने लगता है और माता के गर्भ में अपना स्थान बदलने के भी लायक हो जाता है, तभी वह कुछ कष्ट भी भोगता है। माता जो भी खाद्य पदार्थ ग्रहण करती है वह उसकी कोमल त्वचा से होकर गुजरता है। ऐसा माना गया है कि इन कष्टों के कारण कई बार शिशु माता के गर्भ में ही बेहोश भी हो जाता है।माता जो भी तीखा, मसालेदार या गर्म तासीर वाला भोजन ग्रहण करती है वह बच्चे की त्वचा को कष्ट देता है।
सातवें महीने में इश्वर को याद करता है
माता के गर्भ में पल रहा शिशु जैसे ही अपने सातवें महीने में आता है, उसे ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। तभी ऐसा माना गया है कि वह अपनी भावनाओं के बारे में सोचता है, यह महज़ एक मान्यता नहीं है। उस समय शिशु यह सोचता है कि अभी तो मैं बेहद कष्टों में हूं लेकिन जैसे ही मैं इस गर्भ से बाहर जाऊंगा तो ईश्वर को भूल जाऊंगा।गरुड़ पुराण के अनुसार, फिर माता के गर्भ में पल रहा शिशु भगवान से कहता है कि मैं इस गर्भ से अलग होने की इच्छा नहीं करता क्योंकि बाहर जाने से पाप कर्म करने पड़ते हैं, जिससे नरक आदि प्राप्त होते हैं। इस कारण बड़े दु:ख से व्याप्त हूं फिर भी दु:ख रहित हो आपके चरण का आश्रय लेकर मैं आत्मा का संसार से उद्धार करूंगा।
नौ महीने तक करता है प्रार्थना
माता के गर्भ में पूरे नौ महीने शिशु भगवान से प्रार्थना ही करता है, लेकिन यह समय पूरा होते ही जब प्रसूति के समय वायु से तत्काल बाहर निकलता है, तो उसे कुछ याद नहीं रहता। साइंस के अनुसार मां के गर्भ से बाहर आने वाले शिशु को काफी पीड़ा का सामना करना पड़ता है जिस कारण उसके मस्तिष्क पर काफी ज़ोर पड़ता है। शायद यही कारण है कि उसे कुछ भी याद नहीं रहता।
गर्भ से बाहर बच्चा ज्ञानरहित
गरुण पुराण के अनुसार प्रसूति की हवा से जैसे ही श्वास लेता हुआ शिशु माता के गर्भ से बाहर निकलता है तो उसे किसी बात का ज्ञान भी नहीं रहता। गर्भ से अलग होकर वह ज्ञान रहित हो जाता है, इसी कारण जन्म के समय वह रोता है। पर धर्मों के आधार पर कही गयी इन बातों का वैज्ञानिक साक्ष्य भी है। इसलिए कहा जाता है की माता पिता और आसपास के माहौल और आचरण का असर बच्चे पर सबसे पहले पड़ता है। तो आप अच्छा साहित्य पढ़िए; अच्छी बातें सुनिए; ध्यान योग कीजिये ताकि होने वाली सन्तान में अच्छे मूल्यों का वास हो।