धरती से प्रेम को दर्शाता है मातृ भाषा से प्यार
फरवरी की शुरुआत में हम सभी ने जोर-शोर से वैलेंटाइन्स डे मनाया। वैलेंटाइन्स डे पर हमारे पास ऐर सारे फीडबैक आये, जिनमें तमाम लोगों ने लिखा कि आप पाश्चात्य सभ्यता को प्रोमोट कर रहे हैं। बात भी सही है, लेकिन प्यार किसी संस्कृति या देश का गुलाम नहीं होता। बात अगर प्रेम की आयी है तो हम प्रेम की भाषा का पहला अक्षर अपनी मां से सीखते हैं। वो भी अपनी मातृ भाषा में। सच पूछिए तो मातृ भाषा से प्रेम ही व्यक्ति के मन में अपनी धरती के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
आप सोच रहे होंगे कि अचानक मातृ भाषा की बात कहां से आ गई। तो हम आपको बताते हैं- असल में आज 21 फरवरी है और आज के दिन मातृ भाषा दिवस मनाया जाता है। मातृ भाषा का मतलब यह नहीं कि आप अपने देश की राज भाषा को ही सलाम करें। आपकी मातृ भाषा चाहे उर्दू हो या भोजपुरी, अवधि, कन्नड़, तमिल, तेलुगू, मलयालम या फिर मराठी। अगर आप अपनी भाषा के प्रति लगाव रखते हैं, तो इससे बड़ा प्रेम कुछ नहीं हो सकता।
अंग्रेजी का वर्चस्व
भारत के लगभग हर कोने में आज अंग्रेजी का वर्चस्व है। हर मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे फर्राटेदार इंग्लिश बोलें। इसीलिए पैदा होते ही बच्चे से अंग्रेजी में बात करना शुरू कर देते हैं। उठते बैठते, भोजन करते, बाजार में घर में और हर जगह अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं। प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने के लिए यह सोच अच्छी हो सकती है, लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो यह विचारधारा बिलकुल गलत है।
अगर मैं लखनऊ का हूं और मेरी बेटी ठीक से हिन्दी नहीं लिख पाये, या उर्दू के लफ्ज समझ नहीं पाये, तो उससे बड़ी शर्मिंदगी की बात क्या हो सकती है। इसी प्रकार अगर आप बिहार के हैं और आपके घर में भोजपुरी में बात की जाती है। अगर उनके बच्चे बाहर निकलने के बाद भोजपुरी ही नहीं बोल पायें, तो आप क्या कहेंगे।
क्यों झिझकते हैं लोग
इस भौतिकवादी युग में पूरी तरह रम चुके लोग, जब हाई क्लास सोसाइटी में जाते हैं, तब वहां अंग्रेजी को एक स्टेटस माना जाता है। अगर आपके बच्चे वहां पर हिन्दी, अवधी, भोजपुरी या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा में बात करते हैं, तो आस-पास खड़े लोग आपको अजीब सी निगाहों से देखते हैं। यहां तक कई लोग तो कह देते हैं, "अगर अंग्रेजी नहीं सीखोगे तो पीछे रह जाओगे।" यही कारण है कि लोग अपना स्टेटस मेनटेन करने के चक्कर में अपनी मातृ भाषा को भूल जाते हैं। सच पूछिए तो यह उनकी मर्जी से नहीं होता, यह उनकी मजबूरी होती है।
अब आप सोचिये, कहीं हम अंग्रेजी के चक्कर में अपनी मातृ भाषा के साथ धोखा तो नहीं कर रहे हैं?