Jagannath Yatra 2018: क्यों जगन्नाथ के साथ निकलते हैं बलराम और सुभद्रा के रथ?
पुरी। विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी धाम में इस वक्त रथयात्रा की तैयारियां तेजी से चल रही है, इस भव्य यात्रा के आयोजन के लिए मंदिर व पूजा कमेटी द्वारा रथ पूजा की तैयारी को लेकर बैठकों का दौर जारी है, आपको बता दें इस बार रथयात्रा 14 जुलाई को है। देश के चार धामों में से एक पुरी की इस रथयात्रा को देखने के लिए हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालुगण यहां पहुंचते हैं। अक्सर लोग पूछते हैं कि इस रथ यात्रा में भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी नहीं होतीं बल्कि बलराम और सुभद्रा होते हैं, ऐसा क्यों, तो इसके पीछे एक रोचक कारण है।
कृष्ण ने लिया नींद में राधा का नाम
पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार द्वारिका में श्री कृष्ण निद्रा में अचानक राधे-राधे बोल पड़े। वहां मौजूद महारानियों को ये नाम सुनकर काफी आश्चर्य हुआ। जागने पर श्रीकृष्ण ने अपना मनोभाव प्रकट नहीं होने दिया, लेकिन रुक्मिणी से अन्य रानियों ने पूछ बैठीं कि, सुनते हैं वृन्दावन में राधा नाम की गोपी है, जिसको प्रभु ने हम सबकी इतनी सेवा-भक्ति के बाद भी नहीं भुलाया है। पहले तो रोहिणी ने कुछ भी कहने से मना कर दिया लेकिन जब उनलोगों ने काफी हठ की तो वो तैयार हो गईं।
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रुक्मिणी ने बताया राधा के प्रेम के बारे में
लेकिन राधा के बारे में बताने से पहले रुक्मिणी ने कहा कि मैं उनके बारे में बताती हूं लेकिन मां सुभद्रा को कहो कि वो महल की पहरेदारी करें और किसी को भी अंदर आने ना दें, चाहे वो श्रीकृष्ण ही ना हों। सुभद्रा महल के बाहर जाकर बैठ गईं लेकिन रोहिणी के कथा शुरू करते ही श्री कृष्ण और बलरम अचानक अन्त:पुर की ओर आते दिखाई दिए।
श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला
सुभद्रा ने उन्हें कुछ कारण बता कर द्वार पर ही रोक लिया लेकिन अन्त:पुर से श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला की वार्ता श्रीकृष्ण और बलराम दोनों को ही सुनाई दी। उसको सुनने मात्र से ही श्रीकृष्ण और बलराम के अंग-अंग में अद्भुत प्रेम रस का उद्भव होने लगा और साथ ही सुभद्रा भी भाव विह्वल होने लगीं। तीनों की ही ऐसी अवस्था हो गई कि पूरे ध्यान से देखने पर भी किसी के भी हाथ-पैर आदि स्पष्ट नहीं दिखते थे। सुदर्शन चक्र विगलित हो गया। उसने लंबा-सा आकार ग्रहण कर लिया। यह माता राधिका के महाभाव का गौरवपूर्ण दृश्य था।
नारद ने मांगा भगवान से वरदान.......
अचानक नारद के आगमन से वे तीनों पहले जैसे हो गए। नारद ने ही श्री भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान आप तीनों के जिस महाभाव में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्य जनों को भी होना चाहिए क्योंकि ये प्रेम का बहुत ही पवित्र रूप है, भगवान श्रीकृष्ण ने नारद की बात पर मुस्कुराए और तथास्तु बोल पड़े, तब से ही इस यात्रा में जगन्नाथ जी, बलराम और मां सुभद्रा के रथ निकलते हैं।
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