Chanakya Niti: 'स्त्रियां प्रत्येक कार्य में पुरुषों से आगे'
Chanakya Niti: 'लज्जा की बात करें तो स्त्री सदैव अपने दायरे में रहती है, वह कई बार अपने मन की भावनाओं को दबा देती है किंतु लोकलाज का ध्यान अवश्य रखती है।'
- स्त्रीणां द्विगुण अहारो लज्जा चापि चतुर्गुणा ।
- साहसं षड्गुणं चैव कामष्चाष्टगुण: स्मृत: ।।
अर्थात्- स्त्रियों में आहार दोगुना, लज्जा चौगुनी, साहस छह गुना तथा कामोत्तेजना पुरुषों की अपेक्षा आठ गुना अधिक होती है।
आचार्य चाणक्य ने स्त्रियों के गुणों और क्रियावृत्ति का वर्णन करते हुए अपने श्लोकों में काफी कुछ लिखा है। इस श्लोक के माध्यम से वे कहना चाहते हैं कि पुरुषों से स्त्रियां प्रत्येक कार्य में आगे रहती हैं। उनमें पुरुषों की तुलना में आहर लेने की प्रवृत्ति दोगुनी होती है, स्त्रियों की लज्जा की तो मिसालें शुरू से दी जाती रही हैं, उनमें लज्जा पुरुषों से चार गुना अधिक होती है। साहस के मामले में वे पुरुषों को छह बार पीछे छोड़ देती हैं और स्त्रियों में कामोत्तेजना पुरुषों से आठ गुना अधिक होती है।
यह नैसर्गिक है और इसमें उसकी निंदा नहीं
और गहराई में इस श्लोक की व्याख्या करें तो हम पाएंगे कि शारीरिक रूप से एक स्त्री को अधिक आहार की आवश्यकता होती है क्योंकि वह सृष्टि की जननी होती है, उसे संतान उत्पन्न करनी होती है, संतान के भरपूर पोषण के लिए उसे स्वाभाविक रूप से अधिक आहार की आवश्यकता होती ही है, यह नैसर्गिक है और इसमें उसकी निंदा नहीं है।
स्त्रियों का साहस
तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण और सुरक्षा से जुड़ी बात है वह है स्त्रियों का साहस। स्त्रियों की सुरक्षा सृष्टि के आरंभ से आज तक सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। इसलिए ईश्वर से स्वाभाविक रूप से स्त्रियों को साहसी बनाया है किंतु उसे अपनी इस शक्ति का अहसास नहीं है। उसे प्रारंभ से ही पुरुषों पर निर्भर रहना सिखाया जाता है, किंतु स्त्री चाहे तो न केवल स्वयं की बल्कि अपने परिवार की रक्षा करने में सक्षम भी है। मां दुर्गा, महाकाली इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। इतिहास में भी रानी लक्ष्मी बाई जैसी कई साहसी स्त्रियों का वर्णन मिलता भी है।
स्त्रियों को संतानोत्पत्ति करनी होती है
चौथी बात स्त्रियों की कामोत्तेजना से जुड़ी है। आचार्य कहते हैं स्त्रियों में कामोत्तेजना और संभोग की इच्छा पुरुषों की तुलना में आठ गुना ज्यादा होती है। यह भी प्राकृतिक और स्वाभाविक है क्योंकि स्त्रियों को संतानोत्पत्ति करनी होती है। इसलिए स्वाभाविक रूप से वे इस कार्य को करने के लिए प्रवृत्त होती हैं। यह गुणवत्ता उनके शारीरिक दायित्व के कारण होती है जो वे विवाहोपरांत निभाती हैं।
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