Shehla Rashid case: भारतीय सेना को बदनाम करने वाले एक खास विचार समूह से क्यों आते हैं?
टुकड़े टुकड़े गैंग की जिस विचारधारा से शेहला राशिद पोषित होती है, वह इको सिस्टम ही अलगावादियों को महान साबित करने वाला और सेना के संबंध में दुष्प्रचार करने वाला है।
Shehla Rashid case: शेहला राशिद हों, सुजैना अरूंधति राय हों या फिर बेला भाटिया। ये सब एक खास इको सिस्टम से आती हैं जिन्हें लेफ्ट लिबरल इको सिस्टम कहा जाता है। विभिन्न समुदायों के बीच नफरत फैलाना हो या सेना को लेकर आपत्तिजनक बयान देना हो, यह इको सिस्टम सबसे आगे रहता है।
गौरतलब है कि लेफ्ट इको सिस्टम और कांग्रेस का इको सिस्टम संयुक्त तत्वावधान में काम करता है। इसका दुष्परिणाम यह है कि सेना और समाज दोनों के लिए जो पूर्वाग्रह वामपंथी गिरोह में दिखाई देता है, उसके प्रभाव से अब कांग्रेस के नेता भी मुक्त नहीं हैं। इस संबंध में राहुल गांधी, पी चिदम्बरम, संदीप दीक्षित और कन्हैया कुमार द्वारा पूर्व में सेना को लेकर दिये गये आपत्तिजनक बयान देखे जा सकते हैं।
लेकिन पहले बात शेहला राशिद की करते हैं। दरअसल उसने भारतीय सेना के बारे में 18 अगस्त 2019 को दो आपत्तिजनक ट्वीट किए थे। उसके बाद ट्वीट पर विवाद हुआ और सितम्बर 2019 में उनके ऊपर दिल्ली में एक एफआईआर दर्ज हुई। भारतीय दंड संहिता की धारा 153A के तहत दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने केस दर्ज किया था। चूंकि दिल्ली पुलिस को दिल्ली के गृह विभाग से मंजूरी लेनी होती है, सो गृह विभाग के प्रस्ताव पर अब दिल्ली के एलजी ने शेहला के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। वकील अलख आलोक श्रीवास्तव की शिकायत पर अब उन पर अदालत में केस चलेगा।
क्या था शेहला का ट्वीट?
18 अगस्त 2019 को किए गए अपने पहले ट्वीट में शेहला ने लिखा - "सशस्त्र बल रात में घरों में घुस रहे हैं, लड़कों को उठा रहे हैं, घरों में तोड़फोड़ कर रहे हैं। फर्श पर राशन, चावल के साथ तेल बिखरा है।''
शेहला ट्वीट के माध्यम से सेना के खिलाफ प्रोपगेंडा कर रही थी। उनके इस तरह के बयानों और झूठ को विचारधारा विशेष के लोगों का हमेशा समर्थन मिलता रहा है। उसने सेना के संबंध में जो दूसरा ट्वीट किया, वह भी झूठा साबित हुआ। उसने दूसरे ट्वीट में लिखा कि "18 अगस्त 2019 की रात 12 बजे शोपियां में 4 पुरुषों को आर्मी कैंप में बुलाया गया और उनसे पूछताछ की गई।" यह पूछताछ यातना के अर्थ में लिखा गया था। इस ट्वीट की अगली पंक्ति में यह स्पष्ट हो गया। जिसमें लिखा गया था कि ''उनके पास एक माइक रखा गया था ताकि पूरा इलाका उनकी चीखें सुन सके और आतंकित हो सके इससे पूरे इलाके में डर का माहौल बन गया।"
गौरतलब है कि भारतीय सेना का इस पूरे मामले पर खंडन सामने आया, जो एक तरह से फैक्ट चेक जैसा था। शेहला द्वारा दी गई जानकारी इस फैक्ट चेक में फेक पाई गई। सोशल मीडिया पर लिखे जाने वाले सभी आपत्तिनक बयानों या टिप्पणियों पर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए लेकिन इस मामले पर जांच एजेन्सी की तरफ से लिखा गया- "मामले की प्रकृति, स्थान जहां के बारे में ट्वीट किया गया है और सेना के खिलाफ झूठे आरोप लगाना इसे एक गंभीर मुद्दा बनाता है। इस मामले में इस तरह के ट्वीट पर शेहला राशिद के खिलाफ कार्रवाई करने की जरूरत है। आईपीसी की धारा 153ए के तहत मुकदमा चलाने का मामला बनता है।"
शेहला से रहा है उसके बाप को भी खतरा
शेहला को पहली बार लोगों ने टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्य के रूप में पहचाना था। फरवरी, 2016 में जब जेएनयू में एक कार्यक्रम के दौरान भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगे थे, तब वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की उपाध्यक्ष थीं। उस मामले में छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उमर खालिद को जेल जाना पड़ा था, लेकिन शेहला बची रही।
इस दौरान उन्होंने टुकड़े-टुकड़े गिरोह पर लगे देशद्रोह के आरोप का विभिन्न मंचों पर बचाव किया। वह लेफ्ट लिबरल इको सिस्टम में उन दिनों सबसे लोकप्रिय चेहरा बन गई थी। शेहला का इतिहास यही है कि उसने एक बलात्कार पीड़िता की हत्या के बाद उसके परिवार के लिए पैसे इकट्ठा करने के नाम पर अपनी जेब भरी। चूंकि जो पैसा इकट्ठा किया गया, वह पीड़ित परिवार तक पहुंचा ही नहीं, इसलिए शेहला पर पैसों की हेरफेर का आरोप पीड़ित परिवार ने ही लगाया था।
बात सिर्फ पीड़ित परिवार की ही नहीं है। शेहला के ऊपर से उनके अब्बा अब्दुल रशीद शौरा का विश्वास भी उठा चुका है। उन्होंने बेटी शेहला राशिद से अपनी जान का खतरा होने की बात मीडिया में कही थी। इतना ही नहीं, अब्बा ने बेटी पर देशद्रोही गतिविधियों में शामिल होने तक का आरोप लगाया था। शेहला ने जिन शाह फैसल के साथ घाटी की राजनीति में अपने लिए जमीन तलाश करने की कोशिश की, वे शाह फैसल इधर उधर भटककर वापस भारत सरकार की सेवा में लौट आए हैं।
टुकड़े टुकड़े गैंग की जिस विचारधारा से शेहला पोषित होती है, वह इको सिस्टम ही अलगावादियों को महान साबित करने वाला और सेना के संबंध में दुष्प्रचार करने वाला है।
2011 के बयान के लिए 2019 में अरुंधति ने मांगी माफी
बुकर अवॉर्ड विजेता सुजैना अरुंधति रॉय के दिवंगत अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के साथ मधुर संबंध थे। उन्हें गिलानी के देशद्रोही बयानों से कभी आपत्ति नहीं रही। न ही अरूंधति को कभी नक्सलियों के खिलााफ दो शब्द बोलते किसी ने सुना है। अपने 2011 के एक वीडियो में वह जरूर यह कहते हुए दिखाई पड़ती हैं कि, 'कश्मीर, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड जैसे राज्यों में हम जंग लड़ रहे हैं। 1947 से ही हम कश्मीर, तेलंगाना, गोवा, पंजाब, मणिपुर, नगालैंड में लड़ रहे हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां अपनी सेना अपने ही लोगों के खिलाफ तैनात की जाती है। पाकिस्तान ने भी कभी इस तरह से सेना को अपने ही लोगों के खिलाफ नहीं लगाया।''
2014 के बाद कुछ लोगों को अपनी पुरानी गलतियों का अचानक एहसास होने लगा है। उनमें आप अरूंधति रॉय का नाम भी शामिल कर सकते हैं। उन्होंने सेना पर अपनी इस पुरानी टिप्पणी को लेकर 2019 में माफी मांग ली।
अरुंधति रॉय ने इन शब्दों में माफी मांगी कि 'हम सभी जीवन में किसी पल में गलती से मूर्खतापूर्ण टिप्पणी कर देते हैं। ये छोटा सा वीडियो मेरे पूरे विचार को नहीं बताता। इससे वो सब पता नहीं चलता जो मैं बरसों तक लिखती आयी हूं। मैं एक लेखिका हूं और मैं मानती हूं कि आपके कहे हुए शब्द आपके विचारों से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। ये बेहद चिंताजनक है और वीडियो के किसी भी हिस्से से पैदा हुए कन्फ्यूजन के लिए मैं माफी मांगती हूं।''
भारतीय सेना को बेला भाटिया ने लिखा था बलात्कारी
इस श्रृंखला में बेला भाटिया द्वारा सेना पर किए गए मीडिया ट्रायल की चर्चा भी समीचीन होगी, जिसमें उन्होंने चालीस आदिवासी महिलाओं से कथित तौर पर बातचीत के आधार पर सेना को बलात्कारी साबित करने की कोशिश की थी। जबकि ना उन्होंने सेना के उन जवानों की पहचान सामने रखी और ना ही मामले में कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया। इतना बड़ा आरोप सेना पर लगाने से पहले उन्हें साक्ष्य जुटाने की भी जरूरत महसूस नहीं हुई। जबकि वमापंथी एनजीओकर्मी खुर्शीद अनवर पर लगे बलात्कार के आरोप के मामले में पूरा लेफ्ट लिबरल समूह इस बात की वकालत कर रहा था कि जब तक बलात्कार साबित ना हो जाए, तब तक किसी को बलात्कारी नहीं कहा जा सकता है। खुर्शीद के पक्ष में उन दिनों बयान देने वालों में ओम थानवी, तीस्ता सीतलवाड़, अपूर्वानंद जैसे लेफ्ट गिरोह के चर्चित लोगों के नाम शामिल थे।
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देश के खिलाफ कभी कोई शरजील इमाम, प्रशांत भूषण, कन्हैया कुमार, कभी कोई शेहला रशीद, कभी दिल्ली दंगा और कभी किसी टूलकिट का सामने आना मानो कोई संयोग नहीं है। यह भारत को कमजोर देखने की इच्छा रखने वाली ताकतों का कोई प्रयोग लगता है जो भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों की चौकस नजर की वजह से बार बार असफल कर दिया जाता है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)