Religious Tourism: जगमगाती अयोध्या पर्यटकों को लुभाने लगी है
दीपावली के अवसर पर अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में 15 लाख से अधिक मिट्टी के दीये जलाकर रिकार्ड बनाया गया। पिछले छह सालों से दीपोत्सव का यह महोत्सव लगातार आयोजित हो रहा है। साल 2021 में भी 9.5 लाख मिट्टी के दीये जलाकर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम किया गया था।
दीपोत्सव का यह सिलसिला मात्र रिकॉर्ड बनाने अथवा तोड़ने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इन छह सालों में अयोध्या को उसकी वास्तविक पहचान मिलनी शुरू हुई है जिसकी वह हकदार थी। इस सालाना महोत्सव के साथ-साथ अयोध्या में हो रहे आधारभूत बदलावों से यह शहर अब अपने गौरवशाली एवं समृद्ध अतीत के साथ वर्तमान में विकास की एक नयी गाथा लिखने के लिए तैयार है।
इतिहास
की
पुस्तकों
में
अयोध्या
का
वैभव
19वीं
शताब्दी
के
ब्रिटिश
इतिहासकार,
जेम्स
टैलबॉयज
व्हीलर
अपनी
प्रसिद्द
पुस्तक
'हिस्ट्री
ऑफ़
इंडिया
फ्रॉम
द
अर्लीएस्ट
एजेस'
में
अयोध्या
के
वैभव
का
वर्णन
इस
प्रकार
किया
है,
"यह
हिन्दुस्थान
का
सबसे
बड़ा
और
भव्य
नगर
था।
अयोध्या
एक
भरापूरा
नगर
था।
हर
कोई
स्वस्थ
एवं
खुशहाली
में
रहता
था।
प्रत्येक
व्यक्ति
को
अच्छा
भोजन
मिलता
था।
नगर
के
सभी
व्यापारियों
के
भण्डार
पृथ्वी
के
कोने-कोने
के
गहनों
से
भरे
हुए
थे।"
भारतीय इतिहासकार, राधाकुमुद मुकर्जी अपनी पुस्तक 'मेन एंड थॉट इन एंसियंट इंडिया' में लिखते हैं, "समुद्रगुप्त के दौर में अयोध्या एक प्रमुख नगर था। गया में उत्खनन के दौरान मिले अभिलेखों से पता चलता है कि समुद्रगुप्त के कालखंड में अयोध्या जहाजों, हाथियों और घोड़ों से भरा हुआ एक नगर हुआ करता था।"
वाल्मीकि रामायण में भी अयोध्या की समृद्धि का वर्णन बालकाण्ड के पांचवें सर्ग किया गया है, "कोशल नाम से प्रसिद्द एक बहुत बड़ा जनपद है, जो सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। वह प्रचुर धन-धान्य से संपन्न, सुखी और समृद्धशाली है। उसी जनपद में अयोध्या नाम की एक नगरी है, जो समस्त लोकों में विख्यात है। कर देने वाले सामंत नरेशों के समुदाय उसे सदा घेरे रहते थे। विभिन्न देशों के निवासी वैश्य (व्यापारी वर्ग के लिए उस दौरान उपयोग में आने वाली संज्ञा) उस पुरी की शोभा बढाते थे।"
स्वाधीन
भारत
में
बदहाल
अयोध्या
अयोध्या
का
यह
इतिहास
समय
के
साथ
नजरअंदाज
कर
दिया
गया।
स्वाधीन
भारत
में
जब
सत्ता
भारतीयों
के
पास
आई
तो
भारत
के
सांस्कृतिक
एवं
ऐतिहासिक
धरोहरों
को
सुरक्षित
एवं
संरक्षित
करने
की
जिम्मेदारी
बनती
थी।
मगर
राजनैतिक
अथवा
वैचारिक
कारणों
से
अयोध्या
जैसे
महत्वपूर्ण
नगर
का
इतिहास
घूमिल
होने
लगा
और
विकास
के
पैमानों
में
भी
अन्य
शहरों
से
की
अपेक्षा
पिछड़
गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या के दीपोत्सव कार्यकम में अयोध्या सहित हमारे अन्य सांस्कृतिक महत्व के स्थलों की दुर्दशा पर वास्तविकता को उजागर करते हुए कहा था, "एक समय था जब राम का नाम लेने से भी बचा जाता था, राम के अस्तित्व पर सवाल उठाए जाते थे। उसका परिणाम क्या हुआ। हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक स्थान पीछे छूटते चले गए। हम यहीं अयोध्या के रामघाट पर आते थे तो दुर्दशा देखकर मन दुखी हो जाता था।"
जिस अयोध्या की दुनियाभर में चर्चा होती थी और जहाँ दुनिया के हर कोने के व्यापारी डेरा डाले रहे थे, अब वहां फैली दुर्दशाओं के चलते भारतीय भी जाने से कतराने लगे थे। बदहाल होते इस शहर की अवस्था को साल 2002 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है।
दरअसल, इस साल उत्तर प्रदेश सरकार ने एक निजी कंपनी की सहायता से प्रदेश में अगले 20 सालों में पर्यटन की संभावनाओं पर एक रिपोर्ट बनवाई। इस रिपोर्ट को सार्वजनिक भी किया गया जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में जहाँ पर्यटन की संभावनाए थी, वहां पर्यटकों को लुभाने की दृष्टि से तीन फेज तैयार किये गए। इस पूरी कवायद का उद्देश्य अयोध्या सहित अन्य तीर्थस्थलों का विकास कर उन्हें पर्यटन के लिए अनुकूल बनाना था।
इस रिपोर्ट के अनुसार अयोध्या में पहले फेज में 3000, दूसरे फेज में 6000 और तीसरे फेज में 12000 भारतीय पर्यटकों के आने की संभावना का रोडमैप बनाया गया। इसी प्रकार पहले फेज में विदेशी पर्यटकों की संख्या शून्य, दूसरे फेज में 2000 और तीसरे फेज में 4000 तय की गयी।
इस रिपोर्ट में हस्तिनापुर, चित्रकूट और कालिंजर के बाद अयोध्या ही एक ऐसा तीर्थस्थान था जहाँ सबसे कम पर्यटकों के आने की संभावना जताई गयी थी। जबकि दूसरी तरफ मुगलों के बनवाए स्थलों में सर्वाधिक ताजमहल में 77 लाख से अधिक, फिर आगरा लालकिला में 30 लाख से अधिक, सिकंदरा में 38 लाख से अधिक और फतेहपुर सीकरी में 30 लाख से अधिक भारतीय पर्यटकों के आने का अनुमान लगाया गया था। इसी प्रकार विदेशी पर्यटकों आने का सबसे अधिक अनुमान भी इन्हीं चार स्थानों पर दर्ज किया गया।
अयोध्या की बदहाली का एक और उदाहरण इस रिपोर्ट में सामने आता है। इसके अनुसार 1997 में 163, 1998 में 126, 1999 में 96, 2000 में 54 विदेशी यात्री अयोध्या आये थे। इन आकंड़ों को अनुपातिक दृष्टि से देखे तो यह 31 प्रतिशत की गिरावट दिखाता है। गौर करने वाली बात यह है कि यह विदेशी कोई और नहीं बल्कि प्रवासी भारतीय यानि Non Resident Indian (NRI) थे।
जबकि अयोध्या का संबद्ध भारत ही नहीं बल्कि भारत के बाहर के दर्जनों देशों - इंडोनेशिया, कम्बोडिया, लाओस, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, मलेशिया, कोरिया, चीन, जापान और पाकिस्तान से भी है। अयोध्या सिर्फ हिन्दूओं के लिए पवित्र नहीं है बल्कि बौद्ध, जैन और सिक्खों का भी प्रमुख तीर्थस्थान है।
भगवान बुद्ध ने अयोध्या की दो बार यात्रा की थी। चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनत्सांग ने भी यहाँ की बौद्ध परम्पराओं का उल्लेख अपने संस्मरणों में किया है। जैन मत के अनुसार यहां पहले तीर्थंकर आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों - अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ का जन्म हुआ था। सिक्खों के तीन गुरुओं - नानकदेव, तेगबहादुर, और गोबिंद सिंह ने यहाँ की यात्रा की थी।
Ayodhya: अजर, अमर हैं अयोध्या जी
इतना कुछ अयोध्या के पास होने के बावजूद सरकारों के पास अयोध्या को लेकर कोई विजन ही नहीं था। जैसा चल रहा था उसे और बदतर कर दिया गया। परिणाम यह हुआ कि यह शहर सरकारी नजरिये से कुछ गिनेचुने प्रवासी भारतीयों सहित कुछ हजार भारतीयों के लिए ही दर्शनीय बनकर रह गया।
वर्तमान
में
सुधरते
हालात
अयोध्या
के
इन
विपरीत
हालातों
पर
दोषारोपण
का
कोई
अर्थ
नहीं
है।
मगर
इस
ऐतिहासिक
नगर
को
फिर
से
भारत
के
नक्शें
पर
उभारना
जरुरी
था।
अतः
बीतें
छह-सात
सालों
में
चरणबद्ध
तरीके
से
उपेक्षा
के
शिकार
अयोध्या
के
गौरव
को
पुनर्जीवित
किया
गया
है।
इस
बात
का
साक्ष्य
वही
सरकारी
आकड़ें
देते
है
जो
एक
समय
में
उसे
पर्यटन
के
नाम
पर
सबसे
कमजोर
आंकते
थे।
मगर
आज
अधिकारिक
रूप
से
अयोध्या
उत्तर
प्रदेश
ही
नहीं
बल्कि
देश
के
सबसे
बड़े
पर्यटक
स्थलों
में
शुमार
हो
गयी
है।
उत्तर
प्रदेश
सरकार
के
पर्यटन
विभाग
की
वेबसाइट
के
अनुसार
2017
से
लेकर
2019
तक
अयोध्या
में
करोड़ों
की
संख्या
में
भारतीय
एवं
विदेशी
पर्यटक
आ
चुके
है।
साल
2020-21
में
कोरोना
महामारी
के
चलते
लगे
प्रतिबंधों
के
कारण
इस
संख्या
पर
थोडा
प्रभाव
जरुर
पड़ा
मगर
यह
संख्या
उन
सरकारी
अनुमानों
से
हजारों
गुना
अधिक
है
जो
सरकार
ने
2002
में
अगले
20
सालों
के
लिए
लगाये
थे।
अगर
यही
क्रम
बना
रहा
तो
केंद्र
सरकार
का
अनुमान
है
कि
अयोध्या
2030
में
विश्व
के
सबसे
बड़े
पर्यटक
स्थलों
में
शुमार
हो
जायेगा।
भारतीय पर्यटक | विदेशी पर्यटक | कुल | |
2017 | 17549633 | 23926 | 17573559 |
2018 | 19217571 | 27043 | 19244614 |
2019 | 20122436 | 26956 | 20149392 |
2020 | 6020181 | 2437 | 6022618 |
2021 | 15460151 | 31 | 15460182 |
अयोध्या के विकास को लेकर सरकार की पहल का सकारात्मक परिणाम है कि अब यह शहर विदेशों में फिर से अपनी पहचान बना रहा है।
नवम्बर 2018 में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे की पत्नी (फर्स्ट लेडी) किम जुंग सूक, चार दिवसीय भारत दौरे पर आई तो अयोध्या में उस साल के दीपोत्सव में मुख्य अथिति के तौर पर शामिल हुई थी। अयोध्या और कोरिया का ऐतिहासिक संबंध रहा है। 48 ईसवी में अयोध्या की राजकुमारी श्रीरत्ना ने कोरिया राजा सूरो से विवाह किया था। भारत और दक्षिण कोरिया के संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के उद्देश्य से अयोध्या में क्वीन हो मेमोरियल पार्क का निर्माण कराया गया है।
70-80 के दशक तक अयोध्या में कुछ टेक्सटाइल मिलें हुआ करती थी जोकि सरकारी उपेक्षा की शिकार बनकर बंद हो गयी। अब अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय स्तर के इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर उसे विदेशी निवेश का भी एक हब बनाने की तैयारी है। इसके सुखद परिणाम अयोध्या के स्थानीय व्यवसाय पर तो दिखेंगे ही साथ-ही-साथ वहां स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों के अवसर भी पैदा होंगे।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तyer...