Banking Ombudsman: भारतीय बैंकों से ग्राहकों को इतनी शिकायत क्यों है?
देश में एक बैंक लोकपाल भी काम करता है जो बैंकिंग सेवाओं से जुड़ी शिकायतों का निपटारा करता है, यह बात कम लोग जानते हैं, फिर भी रिजर्व बैंक तहत गठित इस बैंकिंग लोकपाल की ताजा रिपोर्ट अलग ही कहानी बयां करती है।
Banking Ombudsman: भारत में सबसे ज्यादा जिन सेवाओं से लोग शिकायत करते मिलेंगे उसमें बैंकिंग सेवा भी शामिल है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने ग्राहकों की शिकायतों पर जांच कर समाधान ढूंढने की एक खास व्यवस्था भी की है जो बैंकिंग लोकपाल (ओम्बड्समैन) के नाम से जानी जाती है। यह लोकपाल एक जांच अधिकारी होता है जो बैंक ग्राहकों से प्राप्त शिकायत की जांच करता है और समाधान बताता है। गत 25 वर्षों से यह व्यवस्था चल रही है।
लेकिन यह व्यवस्था कितनी उपयोगी है यह कहना मुश्किल है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बैंक लोकपाल व्यवस्था की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट 4 जनवरी को प्रकाशित की है और उससे इस विषय की थोड़ी बहुत जानकारी मिलती है।
बैंकों से किस प्रकार की शिकायतें होती है ?
जब 1995 में यह बैंक लोकपाल योजना शुरू की गई तब करीब 5000 से ज्यादा शिकायतें सालाना आती थी अब यह संख्या 4 लाख के ऊपर हो गई है। रिजर्व बैंक द्वारा जो ताजा रिपोर्ट जारी की गयी है उसके अनुसार लगभग 15% शिकायतें एटीएम या डेबिट कार्ड और 14% मोबाइल बैंकिंग के संबंध में पायी गई। क्रेडिट कार्ड तथा कर्ज संबंधी शिकायतें भी बढ़ रही हैं।
बैंक लोकपाल के पास सबसे ज्यादा शिकायतें महानगरों से आती हैं। उसके बाद शहरी विभाग से। ग्रामीण भाग से आने वाली शिकायतें अब भी कम ही हैं। करीब 50 % शिकायतें सरकारी बैंकों के बारे में होती हैं। 96% शिकायतें जल्द निपटाई जाती है। समाधान के लिए 3 महीने से ज्यादा समय लेने वाली शिकायतें नहीं के बराबर है। 72% से ज्यादा शिकायतों का निपटान आपसी समझौते से होता है। कुछ शिकायतें वापस भी ली जाती हैं।
शिकायत का बढ़ना अलग संकेत देता है
बैंकों के कामकाज और सेवा में कमियां एक आम बात हो गयी है। यही कारण है कि शिकायतें बढ़ रही हैं। यह सही है कि सरकारी बैंकों के पास सरकार से जुड़ी योजनाओं का काम होता है इसलिए ग्राहकों की संख्या विशाल है। सरकारी बैंक पर विश्वास होने से आम लोग अपना पैसा भी सरकारी बैंक में जमा रखते हैं। इससे निश्चित तौर पर काम-काज का दबाव सरकारी बैंक कर्मचारियों पर होता है। लेकिन व्यवस्था और सेवा में कमी को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वैसे तो सभी शिकायतों का शाखा या बैंक के स्तर पर ही समाधान पूर्वक निपटान होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होना बैंक प्रणाली की कमी को उजागर करती है।
दूसरे, बैंकिंग लोकपाल व्यवस्था के अंतर्गत होने वाले शिकायत निपटान के लिए 60 प्रतिशत शिकायतकर्ताओं ने ही समाधान प्रस्तुत किया है, यह बात भी कुछ अच्छा संकेत नहीं देती। तीसरे, बैंकिंग लोकपाल के स्तर पर पहुंचने वाली बहुत सारी शिकायतों का निपटान आपसी समझौते से होता है। अगर ऐसी बात है तो ऐसी शिकायतों का समाधान शाखा या बैंक स्तर पर क्यों नहीं होता यह सोचने की बात है। चौथे, बहुत सारी शिकायतें मोबाइल बैंकिंग के संबंध में आती हैं जो बैंकिंग व्यवस्था की कमजोरी बताती है।
आजकल मोबाइल से पैसे का लेन देन बढ़ रहा है और उससे होने वाले धोखे भी बढ़े हैं। इसलिए इसमें सुधार होना आवश्यक है। पांचवें, बैंक ग्राहकों की जानकारी और सतर्कता बढ़नी चाहिए जिससे बैंक सेवा की कमी तुरंत सामने आए और उस पर आवश्यक कारवाही हो। बैंक कर्मचारियों को भी इस सतर्कता और सुधार में दिलचस्पी लेनी चाहिए ताकि बैंकिंग सेवा के बारे में कम शिकायतें आएं।
क्या है बैंकिंग लोकपाल योजना?
बैंक ग्राहकों की शिकायतों को महत्व बैंक राष्ट्रीयकरण के बाद दिया जाने लगा। पहले बैंक ऐसी शिकायतों का निपटारा अपने स्तर पर करते थे, लेकिन शिकायतें बढ़ती जा रही थी। इसलिए आधिकारिक तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक ने लोकपाल (ओम्बड्समैन) व्यवस्था 1995 में लागू की जिसका उद्देश्य बैंक ग्राहकों की शिकायतों को समाधान पूर्वक निपटाना था। बाद में इसमें 2002, 2006, 2017, 2018, 2019 और 2021 में बदलाव किए गए। 1995 में व्यापारी बैंक तथा अनुसूचित सहकारी बैंक और 2002 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में बैंकिंग लोकपाल लागू किया गया।
बैंकिग लोकपाल योजना 2006 तक लगभग सभी बैंको पर लागू हो गई। 2018 में यह गैर बैंकिंग वित्त संस्थाओं पर लागू हुई और 2019 में डिजिटल लेन-देन पर भी लागू की गई। 2021 में बैंकों तथा गैर बैंक वित्तीय संस्था (एनबीएफ़सी) और गैर बैंक पेमेंट सिस्टम में भागीदारों (एनबीपीडीपी) को भी शामिल कर लिया गया।
अब 'एक देश-एक लोकपाल' के तहत एक केंद्रीय व्यवस्था स्थापित की गई है जहां देश भर से आयी शिकायतों पर कार्रवाही होती है। आज यही योजना अमल में है। इस व्यवस्था के अंतर्गत अगर किसी शिकायत का निपटारा बैंक स्तर पर समय के अंदर नहीं होता है तो शिकायतकर्ता सीधे रिजर्व बैंक की इस लोकपाल व्यवस्था के अंतर्गत शिकायत दर्ज कर सकता है। बैंक से मिलने वाली किसी भी सेवा में कमी हो तो शिकायत की जा सकती है। शिकायत चिट्ठी लिखकर, ईमेल पर या फोन करके किसी भी माध्यम से की जा सकती है।
रिजर्व बैंक की सराहना होनी चाहिए
निश्चित ही भारतीय रिजर्व बैंक की सराहना करनी होगी कि वह भारतीय वित्तीय प्रणाली को जवाबदेह बनाने में प्रयत्नशील है। ऐसे प्रयत्नों में से एक बैंकिंग लोकपाल व्यवस्था कही जाएगी। अच्छी बात यह है कि रिजर्व बैंक ऐसी व्यवस्था में सुधार लाने की कोशिश करता रहता है। हाल ही में इस लोकपाल व्यवस्था की समीक्षा भी की गई और नई सूचना बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं को दी गई है।
अब बैंकों को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शिकायतों की सारी जानकारी देनी होगी। शिकायत की यह व्यवस्था ग्राहकों के लिए मुफ्त है लेकिन अब बैंक से लोकपाल द्वारा शिकायत निपटान खर्चा लिया जाएगा। रिजर्व बैंक ने यह भी तय किया है कि ऐसे बैंकों पर विशेष लक्ष्य दिया जाएगा जिनके विरूद्ध शिकायतें बार-बार आती रहती हैं। रिजर्व बैंक ने शिकायतों की एक मास्टर लिस्ट भी तैयार की है।
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अंत में यही कहना चाहिए कि व्यवस्था कितनी भी अच्छी क्यों न हो अगर लोकपाल व्यवस्था के बावजूद बैंकों के खिलाफ शिकायतें बढ़ रही हैं और बैंक शाखा के स्तर पर इसका निपटारा नहीं हो पा रहा है तो यह चिंता का विषय है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)