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Layoffs in big companies: कोरोना महामारी के बाद अब महाछंटनी की आहट

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Layoffs in big companies: एलन मस्क द्वारा ट्विटर ज्वाइन करने के तुरंत बाद कर्मचारियों को आनन फानन में निकाले जाने की ख़बरें सुन ही रहे थे कि पता चला फेसबुक की मेटा कंपनी ने भी छंटनी शुरु कर दी है। फिर कुछ दिन बात पता चला अमेजन ने भी यही किया।

Layoffs in twitter facebook meta google companies over economic recession

गूगल भी दस हजार कर्मचारियों को निकालने की दिशा में काम कर रही है तो लैपटॉप और प्रिंटर बनानेवाली कंपनी एचपी ने भी 6 हजार कर्मचारियों को निकालने का ऐलान किया है। भारत की एजुटेक फर्म बायजू और अनएकेडमी ने भी सैकड़ों कर्मचारियों की छंटनी की है।

फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म जोमैटो ने भी अब छंटनी शुरू कर दी है। जोमैटो की योजना अपने 4 फीसदी कर्मचारियों की छंटनी करने की है। जोमैटो ने आखिरी बार 2020 में महामारी के कारण और कारोबार में मंदी के चलते लगभग 13 फीसदी कर्मचारियों को निकाल दिया था।

एक प्रतिष्ठित अमेरिकन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेजन में हजारों लोगों की नौकरी जा सकती है। पिछली कुछ तिमाहियों में फायदा न होने की वजह से अमेजन ने यह फैसला लिया है। अमेजन के CEO एंडी जेसी ने खुलासा किया है कि कंपनी 2023 तक कर्मचारियों को निकालना जारी रखेगी। उन्होंने बताया कि आगे और भी ज्यादा छंटनी होगी, क्योंकि हमने पिछले कई सालों में तेजी से हायरिंग की है।

अमेजन को आशंका है कि वैश्विक मंदी लगातार बढ़ रही है, अतः कंपनी को अपने खर्चे कम करने चाहिए। इसीलिए कंपनी ने पिछले दिनों भर्ती रोकने की घोषणा भी की थी। अमेजन प्रबंधन का मानना है कि वे असामान्य और अनिश्चित आर्थिक माहौल में हैं, इसलिए वे व्यापार को समायोजित कर रहें हैं।

बड़ी कंपनियों द्वारा जो छंटनी हो रही है, उसका कारण आर्थिक मंदी के प्रभाव में कॉस्ट कटिंग को बताया जा रहा है। लेकिन इसका एक बड़ा कारण कंपनियों में बढता ऑटोमेशन भी है। अब कई काम इंसानों की जगह मशीन और रोबोट कर रहे हैं।
कंपनियां काम करने के लिए कई जगह रोबोट को बढ़ावा दे रही है। डिलीवर किए जाने वाले लगभग 3 चौथाई पैकेट इस समय किसी न किसी रोबोटिक सिस्टम से होकर गुजरते हैं। अमेजन के अनुसार अगले 5 साल में पैकेजिंग में शत प्रतिशत रोबोटिक सिस्टम लागू हो सकता है।

बड़ी कंपनियों में छंटनी की जो खबरे हैं वो तो सामने आ रही हैं लेकिन कमोबेश ऐसे हालात आप अपने आसपास भी पायेंगे। हालांकि छटनी करने वाली इन कंपनियों की संख्या यूरोप और अमेरिका में ज्यादा है जो कि वैश्विक मंदी की चपेट में हैं। कंपनियां अपना मासिक खर्च कम करने के लिए छंटनी जैसे हथियार का इस्तेमाल कर रही हैं।

हालांकि भारत अभी मंदी से बचा हुआ है लेकिन हमें भी छंटनी की आहट को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ग्लोबल कंपनियों के इंडिया ऑफिस के लोग भी इसका शिकार हो रहें हैं। ट्विटर और जोमैटो का उदाहरण आपके सामने हैं। कोरोना महामारी के बाद यह आर्थिक महामारी की दस्तक है। अगर अभी से रणनीतिक योजना नहीं बनाई गई तो यह समस्या विकराल रूप ले सकती है।

ऐसा नहीं है सिर्फ नौकरियां जाएंगी। इन ग्लोबल कंपनियों के सेवा एवं उत्पादों के आउटलेट इंडिया में हैं। यदि मंदी के कारण विदेशी कंपनियां अपने उत्पादन और स्टोर को बंद करती हैं या संख्या घटाती हैं तो ट्रेडिंग सेक्टर में भी भारत में मंदी आ सकती है और इन आउटलेट में काम करने वाले बड़ी संख्या में बेरोजगार हो सकते हैं।

इसलिए इसे ऐसा नहीं समझना चाहिए कि यह विदेशों में हो रहा हैं, इसका असर हमारे ऊपर नहीं होगा। भारत भी इससे बचने वाला नहीं है। भारत की कई उत्पादन इकाइयाँ भी महंगे कच्चे माल या घटती निर्यात बिक्री के कारण छंटनी कर सकती हैं। इसलिए यह छंटनी एक खतरनाक आहट है।

कोरोना काल के बाद कॉरपोरेट का ध्यान अब ऑटोमेशन और मानकीकरण पर है। कंपनियां लागत को जितना हो सकता है, उतना कम कर रही हैं, जिस कारण स्थायी नौकरी की जगह ठेके की नौकरी का प्रचलन बढ़ रहा है। इसमें काम खत्म नौकरी खत्म चलता है।

कोरोना काल में सबने अपने खर्च का पुनर्गठन किया और लोग न्यूनतम खर्च से व्यवसाय चलाने का अनुभव ले चुके हैं। कोरोना ने कार्य करने की संस्कृति और तरीके दोनों बदल दिए हैं। बड़े कार्यालय बंद हो रहे हैं और लोग अपने स्टाफ को या तो वर्क फ्रॉम होम या को-वर्क में शिफ्ट कर रहें हैं। कोरोना के कारण आज के समय में बाजार का यह "कार्य कुशलता" वाला प्रयोग सफल रहा, इसी कारण इसकी मार अब रोजगार पर पड़ रही है।

कोरोना में बड़े पैमाने पर छंटनी और सैलेरी कट करने से कंपनियों को यह पता चला कि कोरोना से पहले जो काम 10 लोगों द्वारा किया जा रहा था, उसे तो उससे कम लोगों के द्वारा भी किया जा सकता है। डिजिटल मोड का भी प्रयोग इस दौरान खूब बढ़ा। इन दोनों प्रवृत्तियों ने कंपनियों का ध्यान ऑटोमेशन और परिचालन कुशलता के माध्यम से लागत कम करके लाभ बढ़ाने की ओर प्रेरित किया। उन्हें लगने लगा कि वो कुछ ज्यादा ही वर्क फ़ोर्स के साथ काम कर रहें हैं, इसमें अगर कुछ कमी की जाय तो व्यापार और लाभ में नुकसान की जगह फायदा ही होगा।

कंपनियों के अंदर बढ़ती इस प्रवृत्ति ने ही अब उनके अंदर स्थायी भाव बनाना शुरू किया है। अब हो सकता है कि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स और ऑटोमेशन की नई नई तकनीकी छंटनी के संकट को और बढायें।

सरकार को आर्थिक महामारी की इस छंटनी रुपी दस्तक पर तुरंत ध्यान देने की जरुरत है, नहीं तो मशीनी कार्य कुशलता का यह प्रयोग एक बड़ी आर्थिक अस्थिरता को जन्म देगा जिसे संभालना मुश्किल होगा।

नौकरी से निकाले जाने वाले ज्यादातर लोग अक्सर कच्ची गृहस्थी और पकी उम्र वाले होते हैं। कम उम्र और अविवाहित युवा तो इस झटके को कुछ सह ले जाते हैं लेकिन जिनके परिवार हैं, बच्चे हैं, उनके लिए तो यह छंटनी वज्रपात बन जाती है।

इसलिए सरकार को इस आहट पर तुरंत ध्यान देना होगा। रोजगार प्रदान करने वाले सेक्टर पर काम करना पड़ेगा, जो मांग का निर्माण करेंगे। इससे भारत में अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता रहेगा और यदि मंदी जनित छंटनी आई भी तो रिप्लेसमेंट की व्यवस्था तैयार रहेगी। लोगों को भी अभी से अपने खर्चों और कर्जों का पुनर्गठन शुरू कर देना चाहिए ताकि यदि कुछ संकट आया भी तो वह इसका मुकाबला कर सकें।

यह भी पढ़ें: Layoffs in Tech Companies: अमेजन से लेकर ट्विटर तक, इन टेक कंपनियों ने की हजारों की छंटनी

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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Layoffs in twitter facebook meta google companies over economic recession
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