Jammu and Kashmir Politics: भविष्य की राजनीतिक तस्वीर उभरने लगी
Jammu and Kashmir Politics: गुलाम नबी आज़ाद का एजेंडा एकदम साफ़ होता जा रहा है। अब यह भी स्पष्ट हो रहा है कि गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस क्यों छोड़ी थी। उन्होंने कहना शुरू कर दिया है कि वह कांग्रेस के अनुच्छेद 370 को लेकर अडियल रूख से सहमत नहीं थे। उन्हें मजबूरी में ही राज्यसभा में 370 वापसी का समर्थन करना पड़ा था, क्योंकि वह सदन में कांग्रेस और विपक्ष के नेता थे। जम्मू कश्मीर में फारूख अब्दुला की नेशनल कांफ्रेंस और मुफ्ती परिवार की पीडीपी ने पहले गुपकार एलायंस बना कर चुनावों का बहिष्कार करने का एलान किया था। लेकिन बाद में गुपकार एलायंस को समझ में आ गया कि उनकी हालत भी हुरियत कांफ्रेंस जैसी हो जाएगी।
इसलिए गुपकार एलांयस ने रणनीति बदल ली है। अब नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने 370 की वापसी को मुद्दा बना कर वोटरों के सामने जाने का फैसला किया है। फारुख अब्दुल्ला के इस बयान से भी तल्खी बढ़ी है कि जब तक भारत सरकार पाकिस्तान से बात नहीं करेगी तब तक कश्मीर में पंडितों की हत्याएं नहीं रुकेगी।
ऐसे हालात में यह संभव है कि मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट रखने के लिए अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार मिल कर ही चुनाव लड़ें। अगर ऐसा होता है, जिसकी काफी हद तक संभावनाएं बन रही हैं, तो जिन्हें नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का टिकट नहीं मिलेगा, वे मुस्लिम उम्मीदवार गुलाम नबी आज़ाद की शरण में जाएंगे।
गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी नई बनाई पार्टी लोकतांत्रिक आज़ाद कांग्रेस का तीन सूत्रीय एजेंडा घोषित कर दिया है। इस एजेंडे में 370 की वापसी की मांग शामिल नहीं है। गुलाम नबी आज़ाद के तीनों सूत्र काफी हद तक भाजपा के एजेंडे से मेल खाते हैं। गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी पार्टी के जो तीन सूत्र बताए हैं, उनमें कोई ऐसा एजेंडा नहीं, जिस पर भाजपा को एतराज हो।
अलबत्ता
गुलाम
नबी
आज़ाद
के
एजेंडे
से
भविष्य
में
उनके
भाजपा
के
साथ
कामकाजी
तालमेल
की
संभावनाए
भी
पैदा
हो
गई
हैं।
गुलाम
नबी
आज़ाद
के
तीन
एजेंडों
में
पहला
एजेंडा
है
जम्मू
कश्मीर
को
दुबारा
पूर्ण
राज्य
का
दर्जा
दिलाना।
गृह
मंत्री
अमित
शाह
जब
5
अगस्त
2019
को
राज्यसभा
में
जम्मू
कश्मीर
के
विभाजन
और
370
खत्म
करने
का
एलान
कर
रहे
थे,
तभी
उन्होंने
स्पष्ट
कर
दिया
था
कि
केंद्र
सरकार
जल्द
से
जल्द
जम्मू
कश्मीर
को
पूर्ण
राज्य
का
दर्जा
वापस
देगी।
अगले
दिन
लोकसभा
में
भी
उन्होंने
यह
वायदा
किया
था।
इसके
बाद
नरेंद्र
मोदी
और
गृह
मंत्री
अमित
शाह
जम्मू
कश्मीर
में
जाकर
भी
अपना
यह
वादा
दोहरा
चुके
हैं।
अमित
शाह
ने
तो
कुछ
दिन
पहले
एक
टीवी
इंटरव्यू
में
भी
यह
वायदा
दोहराया
था।
फर्क
सिर्फ
यह
है
कि
गुलाम
नबी
आज़ाद
ने
विधानसभा
चुनाव
से
पहले
मोदी
सरकार
से
पूर्ण
राज्य
का
दर्जा
देने
की
मांग
रखी
है।
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नरेंद्र मोदी और गुलाम नबी आज़ाद के संबंधों और समीकरणों को देखते हुए विधानसभा चुनावों से पहले अगर यह सहमति हो जाए तो आश्चर्यजनक नहीं होगा। ऐसा होने पर पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस कमजोर पड जाएँगी। गुलाम नबी आज़ाद ने दूसरी मांग यह रखी है कि जम्मू कश्मीर में जमीन खरीदने का अधिकार कश्मीरियों को ही होना चाहिए। 370 खत्म करने के बाद जो नियम कायदे बनाए गए हैं, उनमें बाहरी लोगों को जमीन खरीदने के दरवाजे नहीं खोले गए हैं।
हिमाचल प्रदेश और पूर्वोतर के राज्यों में यह नियम पहले से लागू है कि बाहरी लोग जमीन नहीं खरीद सकते। मोदी सरकार का मौजूदा नियम बदलने का कोई इरादा भी नहीं है। केंद्र सरकार पहले से ही तय कर चुकी है कि हिमाचल जैसे नियम ही जम्मू कश्मीर में लागू रहेंगे। जिस तरह हिमाचली नागरिक बाहर रहते हुए भी हिमाचल में जमीन खरीद सकते हैं, वैसे ही कश्मीरी पंडित जमीन खरीद सकेंगे या राज्य सरकार कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए वहां जमीन अलॉट कर सकेगी। बल्कि उत्तराखंड सरकार भी यही नियम जल्द ही लागू करने जा रही है, वहां बनाई गई कमेटी मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंप चुकी है।
गुलाम नबी आज़ाद का तीसरा एजेंडा राज्य की नौकरियां राज्य के नागरिकों के लिए सुरक्षित करने का है। मोदी सरकार को राज्य सरकार की नौकरियों में डोमिसाईल का नियम बनाने में कोई एतराज नहीं है, इस संबंध में राज्य की भारतीय जनता पार्टी की भी यही राय है।इसलिए तीनों ही मुद्दे भारतीय जनता पार्टी की नीतियों से मेल खाते हैं, जो विधानसभा चुनाव के बाद दोनों दलों में कामकाजी तालमेल में सहायक होंगे। गुलाम नबी आज़ाद ने यह कह कर भविष्य की राजनीति का संकेत भी दिया है कि हम लोगों को सुशासन प्रदान करने के लिए एक मजबूत मोर्चा बनाने की कोशिश करेंगे।
विधानसभा चुनावों में 370 पर कांग्रेस का स्टेंड क्या रहेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। दिग्विजय सिंह ने सार्वजनिक एलान किया था कि कांग्रेस जब भी केंद्र में सत्ता में आएगी, वह 370 को वापस लागू करेगी। इसलिए जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को स्पष्ट स्टैंड लेना पड़ेगा। 370 हटने के बाद पहली बार होने जा रहे चुनावों में गुलाम नबी आज़ाद ने अपना एजेंडा इस तरह सेट किया है कि कांग्रेस के वोटबैंक के साथ साथ भाजपा विरोधी, लेकिन राष्ट्रवादी हिन्दुओं और उदारवादी मुसलमानों का वोट उनकी तरफ आ सके।
कांग्रेस के कमजोर होने के बाद नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के विरोधी उदारवादी मुसलमानों के पास कोई विकल्प नहीं था। अब उनके पास गुलाम नबी आज़ाद के रूप में सशक्त विकल्प मिल गया है। भले ही नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी उन्हें भाजपा का करीबी बता कर मुसलमानों को भड़काने की कोशिश करेगी। लेकिन जम्मू कश्मीर का जो मुसलमान नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का विरोधी है, वह गुलाम नबी आज़ाद को ले कर आश्वस्त है। मुसलमानों ने गुलाम नबी आज़ाद का तीन साल का मुख्यमंत्री काल देखा हुआ है।
गुलामनबी आज़ाद भी अब अपने उसी कार्यकाल के नाम पर वोट मांग रहे हैं । वह कह रहे हैं कि उन्होंने तीन साल में वे काम किए, जो पिछले 50 साल में नहीं हुए थे। चुनाव आयोग ने भले ही तारीखों का ऐलान नहीं किया हो, चुनाव का एलान अगले साल की पहली तिमाही में हो सकता है। लेकिन राजनीतिक दल खुद को इस लड़ाई के लिए अभी से तैयार कर रहे हैं।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)