India China Relations: सीमा पर तकरार फिर भी फल-फूल रहा भारत चीन व्यापार
कॉर्पोरेट डाटा प्रबंधन के अनुसार भारत में 3,560 कंपनियां ऐसी हैं जिनमें चीनी डायरेक्टर हैं। ये आंकड़े साबित करते हैं कि भारत-चीन व्यापार के लिहाज से एक-दूसरे से कितने अधिक जुड़े हुए हैं।
India China Relations: एशिया की दो उभरती महाशक्तियों, भारत और चीन, के बीच सीमा विवाद गहराता जा रहा है। हाल ही में अरुणाचल के तवांग में 9 दिसंबर को भारत और चीन के सैनिकों में हाथापाई हुई। दरअसल, 600 चीनी सैनिकों ने 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यांगत्से में भारतीय पोस्ट को हटाने के लिए घुसपैठ की कोशिश की थी। हालांकि भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से चीनियों को उनकी ही सीमा में खदेड़ दिया।
तवांग की हालिया घटना ऐसे समय में हुई है जबकि मई 2020 में पैंगोंग झील क्षेत्र में झड़प के बाद पूर्वी लद्दाख सीमा गतिरोध का हल निकालने के लिए दोनों देश कमांडर स्तर की 16 दौर की बातचीत कर चुके हैं। किन्तु इस बार की घुसपैठ संसद से लेकर सड़क तक और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक बहस के केंद्र में है।
दोनों देश के बीच सीमाई तल्खी संयुक्त रूप से दोनों देशों के 2.8 अरब लोगों पर सीधा असर डालने की क्षमता रखती है। देखा जाए तो 2017 के बाद से दोनों देशों के मध्य सीमा विवाद के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है किन्तु उतने ही अप्रत्याशित रूप से दोनों देशों के बीच आर्थिक व व्यापारिक गठजोड़ बढ़ता जा रहा है। 7 दशकों के आपसी संबंधों के उतार-चढ़ाव के बावजूद भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार में 10 गुना बढ़ोत्तरी हुई है।
चीन से लगातार बढ़ रहा है आयात
भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2021-22 में दोनों देशों के बीच 115 अरब डॉलर का व्यापार हुआ जो पिछले वर्ष के 86 अरब डॉलर की तुलना में बढ़ा है। इसके अलावा चीन से भारत का आयात भी बढ़ा है। इस वर्ष जहाँ यह 94 अरब डॉलर रहा वहीं पिछले वर्ष यह 65.3 अरब डॉलर रहा था। चीन की सरकार के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 की पहली छमाही में दोनों देशों के बीच 67.08 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार वर्ष 2001 में 1.83 अरब अमेरिकी डॉलर से शुरू हुआ द्विपक्षीय व्यापार 2021 में 100 अरब डॉलर का हो गया था।
एक अनुमान के मुताबिक, भारत का चीन को निर्यात 26.358 अरब डॉलर का हो गया है जो हर वर्ष 38.5 प्रतिशत बढ़ा है। वहीं भारत का चीन से आयात 87.905 अरब डॉलर हो गया है जो 49 प्रतिशत तक बढ़ा है। हालांकि भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है जो चिंतित करता है।
तेजी से बढ़ता भारत का व्यापार घाटा
एक ओर दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है वहीं दूसरी ओर भारत का व्यापार घाटा भी तेजी से बढ़ा है। व्यापार घाटा का अर्थ है कि भारत ने चीन को जितना सामान बेचा है, उससे कहीं अधिक खरीदा है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल भी इस पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं।
भारत कई चीजों के लिए चीन पर निर्भर होता जा रहा है। वर्ष 2003-2004 में चीन से भारत का आयात करीब 4.34 अरब डॉलर का था। वर्ष 2013-14 में यह बढ़कर 51.03 अरब डॉलर तक पहुंच गया। वहीं 2004-05 में भारत और चीन के बीच 1.48 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था जो 2013-14 में बढ़कर 36.21 अरब डॉलर हो गया। 2020-21 में चीन ने भारत को 65.21 अरब डॉलर मूल्य का सामान निर्यात किया था।
वित्त वर्ष 2021-22 में इसमें तेज इजाफा हुआ। इस वर्ष चीन ने 94.57 अरब डॉलर मूल्य का सामान भारत को निर्यात किया। वर्ष 2020-21 के बीच भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा 44.33 अरब डॉलर का हो गया था जो अगले वित्त वर्ष के दौरान बढ़कर करीब 73 अरब डॉलर पर पहुंच गया। वित्त वर्ष 2022-23 में अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक यह घाटा 51.5 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है।
भारत को होगा जबरदस्त नुकसान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने चीन सहित अन्य जगहों पर निर्मित वस्तुओं पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए कंपनियों को 'मेक इन इंडिया' पहल को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया था जिसका उद्देश्य पड़ोसी देशों के साथ व्यापार घाटे में कटौती करना था।
चीन के साथ जारी सीमा विवाद के बाद भारत में नागरिकों के स्तर पर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की मुहिम भी चली किन्तु उपरोक्त व्यापारिक आंकड़ों को देखें तो यह नाकाफी साबित हुई है। चीन और भारत दोनों विश्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं और दोनों एक-दूसरे पर निर्भर भी हैं।
पाकिस्तान के साथ भारत के व्यापारिक सम्बन्ध नगण्य हैं किन्तु चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को समाप्त करना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए हितकारी नहीं है। इसे ऐसे समझें कि भारत में इस समय 174 चीनी कंपनियां विदेशी कंपनियों के तौर पर रजिस्टर्ड हैं जिनमें चीनी निवेशकों और शेयरधारक वाली कंपनियों की संख्या शामिल नहीं है। कॉर्पोरेट डाटा प्रबंधन के आंकड़ों के अनुसार भारत में 3,560 कंपनियां ऐसी हैं जिनमें चीनी डायरेक्टर हैं। ये आंकड़े यह साबित करते हैं कि भारत-चीन व्यापार के लिहाज से एक-दूसरे से कितने जुड़े हुए हैं और चीन से व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त करना भारत की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचा सकता है।
क्या चीन को भी होगा नुकसान?
प्रश्न उठता है कि यदि भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में विराम आ जाये तो क्या भारत की ही भांति चीन की अर्थव्यवस्था को भी झटका लगेगा? निश्चित तौर पर लगेगा किन्तु चीन ने इससे बचाव का भी मार्ग ढूंढ लिया है।
जून, 2020 गलवान में चीन की कायरतापूर्ण कार्रवाई के बाद भारत में लोगों के बीच चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम चली थी। भारत सरकार ने भी टिकटॉक, वीचैट, हैलो समेत दो सौ से अधिक चाइनीज ऐप्स को प्रतिबंधित कर दिया था। तब चीन ने बड़ी चालाकी से अपने सामानों पर मेड इन चाइना के स्थान पर मेड इन पीआरसी (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) लिखना शुरु दिया। ऐसे में भारतीय जनता भ्रमित हुई और चीनी सामान आज भी खरीदे जा रहे हैं।
बहरहाल चीन ने अर्थव्यवस्था विस्तार के लिहाज से खाड़ी देशों में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं ताकि भारत से सम्बन्ध विच्छेद के कारण उसे कम से कम आर्थिक घाटा हो। हाँ, चीन के खाड़ी देशों की ओर रुख करने से अमेरिका में खलबली मच गई है क्योंकि अभी तक खाड़ी देशों में उसी का आर्थिक साम्राज्य फल-फूल रहा था।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)