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कैसे हुआ था हैदराबाद का भारत में विलय?

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आज 17 सितंबर है। आज के ही दिन 17 सितंबर 1948 में ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद रियासत से निजाम का शासन समाप्त हो गया और उसका भारत में संपूर्ण विलय हुआ था। आइये समझते हैं कि कैसे हैदराबाद का भारत में विलय संभव हुआ। हैदराबाद के भारत में विलय के लिए सरदार पटेल के सैन्य प्रयास का नेहरु ने विरोध क्यों किया और हैदराबाद के विलय के बाद श्रेेय लेने में सरदार पटेल पीछे और नेहरु आगे क्यों हो गये?

How was Hyderabad merged with India?

नेहरु के आसपास निजाम के लोग

दिल्ली में हैदराबाद के निजाम की एक लॉबी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आसपास सक्रिय रहा करती थी। वे हर मुद्दे पर प्रधानमंत्री को सरदार पटेल के खिलाफ उकसाती रहती और हैदराबाद सम्बन्धी हर मसले पर असमंजस कायम कर उसे उलझाती रहती। इन लोगों का प्रधानमंत्री नेहरू पर व्यापक असर हो गया था। नतीजतन, रजाकारों द्वारा फैलाई गयी सांप्रदायिक हिंसा के शिकार हिन्दुओं को सहानुभूति देने के स्थान पर प्रधानमंत्री आवास में मुसलमानों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त होने लगी थी। वी शंकर अपनी पुस्तक 'माय रेमिनीसेंसेज ऑफ सरदार पटेल' में लिखते है, "वास्तव में यह अजीब लेकिन सत्य है कि प्रधानमंत्री ने कई बार निजाम एवं शासक परिवार के पक्ष में दखल दिया।"

निजाम की यह लॉबी इतनी मजबूत थी कि एक बार उन्होंने सरदार पटेल की हैदराबाद यात्रा पर हुए खर्च पर भी प्रधानमंत्री नेहरू के कान भर दिए। हालात ऐसे बन गए कि प्रधानमंत्री ने सरदार पटेल से इस पर जवाब तक मांग लिया। जबकि इसकी व्यावहारिक तौर पर कोई जरुरत नहीं थी। सरदार का स्वभाव भी फिजूलखर्ची वाला नहीं था। हालाँकि, सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री नेहरू को उनके पत्र का स्पष्ट जवाब दिया और कहा कि "खर्चा इत्यादि हैदराबाद प्रशासन का विषय था और इससे उन्हें कुछ लेना देना नहीं है। मेरी यात्रा से ज्यादा खर्चा तो पंडित नेहरू की हैदराबाद यात्रा पर हुआ था।"

हैदराबाद के विलय को लेकर सरदार पटेल के अटल इरादे

सरदार को इन सब बातों से ज्यादा खास फर्क नहीं पड़ता था और उनका अधिकतर ध्यान हैदराबाद के भारत में विलय पर था। उनके इरादे एकदम अटल थे मगर उन्होंने धैर्य से भी काम लिया। दरअसल, प्रधानमंत्री नेहरू और हैदराबाद लॉबी के बीच अच्छी बातचीत होने के बावजूद भी नेहरू के हैदराबाद सबंधित सारे फैसले लगातार विफल हो रहे थे।

वीपी मेनन अपनी पुस्तक 'द स्टोरी ऑफ इंटीगिरेशन स्टेट्स' में लिखते है कि सरदार इन सब तरीकों से बहुत दुखी थे और किसी भी प्रकार की देरी के पक्ष में नहीं थे। दरअसल उनका आंकलन था कि अगर हैदराबाद के विलय में और अधिक देरी हुई तो भारत राजनैतिक और सैन्य दोनों प्रकार से पिछड़ जायेगा।

केएम मुंशी अपनी पुस्तक 'पिलग्रीमेज टू फ्रीडम' में लिखते है, "निजाम और उनके सहयोगियों की हठधर्मिता के कारण हैदराबाद की स्थिति जिस तरह लगातार बिगड़ती जा रही थी, उसमें सरदार पटेल ने निजाम को यह सलाह दी कि भारत सरकार का धैर्य तेजी से खत्म होता जा रहा है। ऐसा सन्देश लेकर उन्होंने वीपी मेनन को हैदराबाद भेजा।

हैदराबाद के लिए सरदार पटेल की सैन्य कार्रवाई और नेहरु का विरोध

सरदार पटेल की निजाम को इस चेतावनी के बाद आखिरकार उन्होंने हैदराबाद पर सैन्य कार्यवाही का निर्णय ले लिया। प्रधानमंत्री नेहरू इसके एकदम विरोध में थे। अतः इस सन्दर्भ में निर्णय लेने के लिए मंत्रिमंडल की एक बैठक बुलाई गयी। इस बैठक का एक रोचक किस्सा, कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे द्वारका प्रसाद मिश्रा ने अपनी पुस्तक 'द नेहरू एपोक : फ्रॉम डेमोक्रेसी टू मोनोक्रेसी' में लिखा है। वे लिखते हैं, "नेहरू हैदराबाद के विरुद्ध बल प्रयोग के कितने विरोध में थे, यह मुझे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बताया था। डॉ मुखर्जी के अनुसार सैन्य कार्यवाही का सहारा लेने के फैसलें के बाद मंत्रिमंडल की बैठक समाप्त हुई तो नेहरू ने उन्हें बुलाया और सैन्य कार्यवाही के लिए सरदार पटेल का समर्थन करने पर नाराजगी जताई।

डॉ. मुखर्जी को चेतावनी देते हुए नेहरु ने कहा कि अगर पाकिस्तान ने पश्चिम बंगाल पर हमला करके बदला लिया तो कलकत्ता पर बमबारी होगी। तब डॉ. मुखर्जी ने उन्हें जवाब दिया कि बंगाल और कलकत्ता के लोगों में इतनी देशभक्ति है कि वे तकलीफ सहन कर लेंगे और अपना बलिदान भी देंगे। साथ ही उन्हें यह जानकर अधिक खुशी होगी कि एक बंगाली जेएन चौधरी ने हैदराबाद पर जीत हासिल की है।"
केएम मुंशी लिखते है, "जिस दिन हमारी सेना हैदराबाद जाने वाली थी, उसके एक दिन पहले नेहरू ने मंत्रिमंडल की रक्षा समिति की एक विशेष बैठक बुलाई। जिसमें तीनों सेनाओं के अध्यक्षों को आमंत्रित नहीं किया गया था। प्रधानमंत्री के कक्ष में हुई उस बैठक में नेहरू, सरदार, मौलाना आजाद, तत्कालीन रक्षा एवं वित्त मंत्री और वीपी मेनन सहित रक्षा सचिव एचएम पटेल शामिल हुए।

चर्चा के शुरू होते ही नेहरू एकदम गुस्से में आ गए और हैदराबाद पर सैन्य कार्यवाही और उसके तरीके को लेकर सरदार पर बरसने लगे। उन्होंने वीपी मेनन पर भी अपना गुस्सा उतार दिया। अंत में उन्होंने कहा कि अब से हैदराबाद सम्बंधित सभी मामले वे खुद ही देखेंगे। उनके आवेश और उसकी टाइमिंग को देखकर सभी स्तब्ध रह गए। सरदार कुछ नहीं बोले और शांत बैठे रहे। इसके बाद वे उठे और मेनन के साथ बैठक से बाहर चले गए। इस प्रकार बैठक बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गयी।

प्रधानमंत्री नेहरू ने हैदराबाद का प्रभार लेने की धमकी के बाद भी उन्होंने इस पर कोई काम नहीं किया। इस बीच सरदार और नेहरू के बीच कोई बातचीत भी नहीं हुई। स्वाधीनता सेनानी और संसद सदस्य रहे एनजी रंगा, सरदार पटेल और उनकी हैदराबाद कार्यवाही पर अपने संस्मरण को याद करते हुए बताते है, "बहुत कठिनाई से, अपने दिल पर बहुत बड़ा बोझ सहते हुए सरदार ने अपना तरीका (सैन्य कार्यवाही) अपनाया और दो दिन की मेहनत के बाद हैदराबाद का मिलन भारतीय संघ में हो गया। जवाहर की निर्णय लेने की कमी से हैदराबाद के भारत में एकीकरण में बहुत देरी हुई जबकि सरदार की कूटनीति से छह सौ से अधिक रियासतों का भारत में विलय हो गया।"

कार्रवाई में पीछे लेकिन जीत का श्रेय लेने में सबसे आगे रहे नेहरु

उस दौर के सभी नेता अच्छे से जानते थे कि हैदराबाद का भारत में कैसे और किसके प्रयासों से विलय हुआ और नेहरू कितने विफल हुए। मगर हैदराबाद की जीत का श्रेय लेने वालों में सरदार सबसे पीछे और नेहरू सबसे आगे थे।

वी शंकर लिखते है, "हैदराबाद पर सैन्य कार्यवाही की सफलता से सरदार पटेल बहुत अधिक प्रसन्न थे। पूरे देश में इस समाचार का स्वागत किया गया और सरदार की प्रतिष्ठा आसमान छूने लगी। हालाँकि, पंडित नेहरू ने इस विजय में शामिल होने का निर्णय लिया और इस तरह हैदराबाद जाने का निर्णय किया जैसे कि उनकी जीत हुई है।"

केएम मुंशी भी इसी सन्दर्भ में लिखते है, "अगर जवाहरलाल की चलती तो निजाम का हैदराबाद अलग ही रहता और भारत की कोख में एक और पाकिस्तान बन जाता, जोकि दक्षिण को उत्तर से अलग करने वाला एक शत्रु राष्ट्र होता। हालाँकि सैनिक कार्यवाही की सफलता के बाद स्वाधीनता का श्रेय लेने के लिए वहां पहले पहुँचने वालों में नेहरू सबसे आगे थे।"

यह भी पढ़ेंः हाथरस कांड पर हंगामा तो लखीमपुर हत्याकांड पर दलित चिंतकों में चुप्पी क्यों?

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

English summary
How was Hyderabad merged with India?
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