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Congress Govt in Himachal: जीत के आगे डर क्यों है?

सुखविन्दर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री और मुकेश अग्निहोत्री को उपमुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस नेतृत्व ने संतुलन साधने की कोशिश की है। लेकिन कांग्रेस नेताओं में पूर्ण बहुमत से जीत के बाद भी डर का माहौल है।

By Sanjeev Acharya
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Congress Govt in Himachal: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं को भी डबल इंजन सरकार की दुहाई देते हुए भाजपा को एक बार फिर सत्ता सौंपने की अपील की थी लेकिन वो अपील बेअसर रही। हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन की अपनी परिपाटी को कायम रखते हुए राज्य के लोगों ने राजनीतिक सफाये की तरफ बढ़ रही काँग्रेस को सत्ता सौंपकर संजीवनी दी है। इस सत्ता को कायम रखने की चुनौती काँग्रेस के लिए बड़ी परीक्षा है।

गुजरात के मतदाताओं के लिए जैसे नरेंद्र मोदी के साथ आत्मीयता का रिश्ता है, और सभी मुद्दों को दरकिनार करते हुए भी वो उनकी अपील पर भाजपा को वोट देते हैं, कुछ हद तक हिमाचल में यही काँग्रेस के साथ है। प्रदेश के निर्माण का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर है। इसका आज भी हिमाचलियों के मानस पर असर है।

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को सबसे बड़ा फायदा पूर्ववर्ती पेंशन योजना को फिर से लागू करने के वायदे का मिला है। प्रदेश में दो लाख से ज्यादा सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं। वो पिछले कई महीनों से इस मांग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस की राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा दिये हैं। पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में भी इसको लागू करने का घोषणा पत्र में वायदा किया, जिसका सकारात्मक समर्थन पार्टी को मिला है।

इसके अलावा राज्य में बड़ी संख्या में युवा हर साल सेना की नौकरियों में प्रयास करते हैं। केंद्र सरकार की "अग्निवीर" योजना से इन युवाओं में आक्रोश व्याप्त है। क्योंकि यह योजना सिर्फ चार साल की नौकरी के अनुबंध की है। अपने बड़े बूढ़ों को सेना में स्थायी नौकरी और फिर पेंशन लेते देखने वाले युवाओं को "अग्निवीर" योजना पच नहीं रही है।

हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के बाद दूसरी प्रभावशाली लॉबी सेब उत्पादकों की है। ऊपरी हिमाचल में इनका वर्चस्व है। इन लोगों में भी दो कारणों से नाराजगी व्याप्त है। एक- सेब के सबसे बड़े खरीददार अडानी बन गए हैं। वो उत्पाद का कम मूल्य दे रहे हैं। ऊपर से केंद्र सरकार ने जीएसटी लगा दी है। इस कारण सेब उत्पादक वर्ग नाराज है। जाहिर है ये नाराजगी भाजपा के खिलाफ है। काँग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे को खूब हवा भी दी।

हिमाचल प्रदेश में भाजपा को अपने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लचर प्रशासन का भी खामियाजा भुगतना पड़ा है। पांच साल में नौ मुख्य सचिव नियुक्त किए गए। मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का समन्वय बैठ ही नहीं पाया। इसका असर प्रशासन के निर्णयों में देखने को मिला। पुलिस भर्ती घोटाले के कारण भी जयराम सरकार की बहुत आलोचना हुई। मंत्रियों के साथ मतभेद, विधायकों की नाराजगी इन सब से मुख्यमंत्री निपटने में सफल नहीं हो सके।

भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षक इस बात को समझ तो गए कि राज्य में सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर है, लेकिन उससे निपटने के लिए 11 विधायकों का टिकट काटने का फैसला उल्टा पड़ गया। बगावत की चिंगारियां बहुत सीटों पर उम्मीदों को जलाने के लिए पर्याप्त थी। वही हुआ भी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोन पर समझाने के बावजूद बागी नहीं माने। भले ही वोट ज्यादा न काट पाए, लेकिन माहौल खराब तो कर ही दिया।

कांग्रेस को इन सब मुद्दों का लाभ मिला। केंद्रीय नेताओं की बेरुखी, भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्तता के बावजूद पार्टी को राज्य में भाजपा के खिलाफ व्याप्त गुस्से का फायदा मिला। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, अपील और प्रचार भी कोई असर नहीं डाल सके।

अब कांग्रेस के सामने सबसे बडी चुनौती सरकार को बचाने और चलाने की है। जिस तरह से कांग्रेस के विधायकों ने मध्य प्रदेश, गोआ, पूर्वोत्तर राज्यों में पाला बदलकर अपनी ही सरकार गिरवाई, या नहीं बनने दी, उस परिप्रेक्ष्य में खतरा बना रहेगा।

मुख्यमंत्री की सबसे प्रबल दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विधवा एवं प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती प्रतिभा सिंह थीं। उनको सत्ता का कोई अनुभव नहीं था लेकिन जैसा पंजाब में पटियाला के महाराज अमरिंदर का मामला है, ठीक वही स्थिति महाराजा वीरभद्र सिंह के परिवार की है। फिलहाल तो प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली है लेकिन भविष्य में भी उनकी अनदेखी या तिरस्कार भारी पड़ सकता है। सुखिन्दर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता मुकेश अग्निहोत्री को उपमुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने सभी गुटों को साधने का प्रयास किया है। फिर भी असन्तोष बना रहेगा और सरकार गिरने का खतरा भी।

जहां तक हिमाचल प्रदेश की जीत से कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभाव का सवाल है, तो इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा। राज्य में न गांधी परिवार ने दमदारी से प्रचार किया न ही पार्टी ने ताकत झोंकी। सच्चाई तो यही है कि हिमाचल में कांग्रेस की जीत नहीं हुई, बल्कि भाजपा की हार हुई है। आम आदमी पार्टी ने बीच चुनाव में अपनी सेना और संसाधन गुजरात की ओर मोड़ दिए। इसका भी फायदा काँग्रेस को मिला वरना वोट बंटते तो भाजपा फायदे में रहती। लिहाजा काँग्रेस के लिए हिमाचल बिल्ली के भाग में छींका टूटने जैसा है। कहावत थी कि डर के आगे जीत है, राहुल गांधी अपनी यात्रा में भी डरो मत का नारा बुलंद कर रहे हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश के माहौल के मद्देनजर कांग्रेस नेताओं में नया नारा है "जीत के आगे डर है"।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
himachal elections 2022 cm sukhwinder singh sukhu congress Govt fear in Himachal
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