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Chhath Puja 2022: लोक आस्था में क्या है छठ पूजा का पौराणिक, धार्मिक और प्राकृतिक महत्त्व?

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Chhath Puja 2022: छठ सूर्य उपासना का महापर्व है। आज खरना है। कार्तिक शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि। षष्ठी की तैयारी है। पूर्व संध्या पर छठ व्रती पीले व लाल रंग के एकसूत परिधान में होंगी। पूरी श्रद्धा से खरपतवार की धीमी आंच पर गुड़ खीर बनेगा। खीर केले का प्रसाद छठी मां के भोज्य के लिए बनेगा। छठी मां के भोग काल में संपूर्ण शांति रहेगी। श्रद्धालु उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगे। फिर इस लोकपर्व को षष्ठी तिथि की संध्या में अस्ताचल गामी और सप्तमी की प्रातः में उदित सूर्य को अर्घ्य देकर समापन होगा।

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Chhath Puja 2022 Religious and natural importance of Chhath Puja festival

ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणा‌र्घ्यं दिवाकर।।

अर्थात "हे सूर्यदेव ! आपकी हर किरण पूरी धरा को ऊर्जावान बनाए रखे। हे आदिदेव ! हम सब आपकी प्रिय बहन छठ मैया के दिन आपसे कृपा की आकांक्षा लिए याचना करते हैं। अपने साम‌र्थ्य का अंश हम सब पर बरसाते रहिए। हमारा अ‌र्घ्य स्वीकार कीजिए।"

बहुधा लोग अर्घ्य अर्पण में इस मंत्र का जाप करते हैं। वैसे लोकगीत और संगीत के साथ श्रद्धा से सजे आस्था के इस महापर्व का संबंध किसी मंत्र के ध्वनि विशेष से अधिक पवित्र मन और श्रद्धाभाव से है।

कई श्रद्धालु इसे चैत्र मास की षष्ठी को भी मानते हैं।

छठ महापर्व की धार्मिक मान्यताओं का प्रकृति की पूजा से सीधा संबंध है। छठ व्रत कथा में छठ मइया यानी छठी देवी ईश्वर यानी प्रकृति की पुत्री देवसेना हैं। देवसेना प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से पैदा हुईं हैं। उन्हें षष्ठी कहा जाता है। इस संदर्भ में यह प्रकृति पूजन का पर्व है। इसे अनिवार्य रूप से नदी, तालाब अथवा किसी जलस्रोत पर ही मनाया जाता है। व्रती कमर तक जल में डूबे रहकर सूर्यदेव की उपासना करते हैं। श्रद्धालु बांस के बने डाला में सजे फल व पकवान (ठेकुआ,खजूर,भूसबा) को व्रती जब सूर्यदेव को अर्पित कर रहे होते हैं तब उस पर जल अथवा दुग्ध का अर्घ्य देते हैं।

छठ पर्व के उत्साह से भरे आस्तिक जन कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि से ही छठ घाट की पहचान कर लेते हैं। उसके अगले दिन घाट के रंग रोगन और उसकी राह की स्वच्छ साफ सफाई के बाद नहाय खाय से महापर्व की शुरुआत हो जाती है। नहाय खाय के सात्त्विक भोजन में लहसुन प्याज का निषेध रहता है।

सूर्यदेव की बहन है छठ देवी

मान्यताओं में छठ देवी सूर्य देव की बहन है। छठ महापर्व में सूर्य की बहन छठी मईया यानि मां को प्रसन्न करने की तैयारी भ्रातृ द्वितीया के अगले दिन तृतीया से होता है। भ्रातृ द्वितीया को भाई दूज कहते हैं। यह भाई बहन के संबंधों की पवित्रता का पर्व है। जैसे भाईदूज में किसी पुजारी को भगवान के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करने का माध्यम बनाने की आवश्यकता नहीं होती उसी तरह लोक आस्था में बसे छठ महापर्व को बिना किसी पुजारी के सरल सामान्य आस्था के साथ मनाया जाता है।

यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2022 samagri: क्या है छठ पूजा की सामग्री? कौन हैं 'छठ मईया'? क्यों मनाते हैं ये पर्व?

छठ पूजा के आरंभ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। उनमें से एक त्रेता युग की है। भगवान श्रीराम वनवास के बाद अयोध्या वापस आए तो माता सीता ने साथ मिलकर मुंगेर के गंगा तट पर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देवता की उपासना की थी।
इसके अलावा द्वापर में पांडवों की माता कुंती ने पुत्र प्राप्ति के लिए विवाह से पूर्व सूर्योपासना की। दानवीर अंगराज कर्ण सूर्यदेव को पिता मानते थे। उनके अंगप्रदेश के मुंगेर में आज भी पौराणिक सूर्य मंदिर हैं। त्रेता युग में इस मंदिर में ही माता सीता ने छठ पूजा की थी।

अंगक्षेत्र के अलावा भोजपुर, वैशाली, मगध और मिथिला क्षेत्र में सूर्य उपासना के आदिकालीन साक्ष्य हैं। बिहार के औरंगाबाद जिला के देव नामक जगह में मौर्य कालीन सूर्य मंदिर आज भी जागृत अवस्था में है। आधुनिक दौर में छठ पर्व के आरंभ का विस्तार इसी देव मंदिर से हुआ बताया जाता है।

बिहार से बाहर छठ महापर्व

संस्कृति के केंद्र बनारस में गंगा तट पर अब देव दीपावली से ज्यादा लोग छठ महापर्व पर उमड़ते हैं। दिल्ली में छठ का महत्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के दिनों में तेजी से बढ़ा। शीला दीक्षित के दिनों में सरकारी अवकाश होने लगा। छठ पर यमुना तट का प्रबंधन अरविंद केजरीवाल सरकार के लिए बड़ी चुनौतियों में से एक है।

अब मुंबई में रहने वाले वरिष्ठ संपादक निशिकांत ठाकुर बड़ी तन्मयता से याद करते हैं कि बीते सदी के आखिरी दशक में विस्तार लेते दैनिक जागरण जैसे अखबार ने प्रवासी पाठकों के सहारे देश की राजधानी दिल्ली में छठ पर्व को लोकप्रिय बनाने का काम किया। सरकारों के लिए छठ पर्व पर विशेष प्रबंधन की शुरुआत हुई। दिल्ली के संग मुंबई में हिंद महासागर के जुहू तट पर फिल्मी सितारों के जमघट ने छठ पूजा को विख्यात किया।

सीता की जन्मस्थली मिथिला में भी छठ महापर्व का बड़ा क्रेज है। यहां से निकले प्रवासी भारतीयों ने छठ पर्व को दुनिया के कोने कोने तक पहुंचा दिया है। अमेरिका वेस्ट वर्जीनिया स्थित मॉर्गन टाउन के निवासी आशुतोष लाल दास कहते हैं, "ग्लोबल विलेज के इस दौर में गांव घर का पर्व अमेरिका के नियाग्रा जलप्रपात से लेकर लंदन के टेम्स नदी के तट पर भी मनाया जाने लगा है।"

सूर्य उपासना से स्वास्थ्य की कामना

षष्ठी व्रत आरंभ के बारे में एक अन्य प्रसंग में कहा गया है कि राजा शाम्य भगवान श्री कृष्ण के पौत्र थे। उनको कुष्ठ रोग हो गया। उपचार के लिए एक ऋषि ने षष्ठी को सूर्य की उपासना करने को कहा। उससे उनको अपेक्षित लाभ मिला। चिकित्सा विज्ञान में सूर्य की किरण विटामिन डी की वाहक हैं।

छठ पूजा की प्रक्रिया को जैव रासायनिक परिवर्तन से जोड़कर देखा जाता है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। सूर्य देव की उपासना के लिए यह दिन बड़ा शुभ माना गया है। इससे सूर्य किरणयुक्त जल-चिकित्सा का लाभ मिलता है। आयुर्वेद में अरोग्य रहने के लिए संस्तुति सूर्य मंत्र है -

ॐ नम: सूर्याय, शान्ताय, सर्वरोग विनाशने ।
आयु: आरोग्य, ऐश्वर्यं, देहि देव जगत्पते ।।

अर्घ्य के समय बौद्धिक जन मंत्रोच्चार करते हैं। स्वस्तिर ध्वनि संग लोग छठी मईया का जयकारा लगाते हैं। छठ घाटों पर रात्रि जागरण के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भव्य आयोजन होता है। छूत अछूत, वर्ण जाति और धर्म का कोई विभेद छठ घाट पर कहीं नजर नहीं आता। यही सब मिलकर छठ को एक महापर्व के रूप में स्थापित करता है।

यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2022 Dos and Don'ts: छठ पूजा के दौरान क्या करें और क्या ना करें?

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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Chhath Puja 2022 Religious and natural importance of Chhath Puja festival
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