December 6: शौर्य और शहादत के बीच फंसी 6 दिसंबर की तारीख
तारीख या तवारीख अरबी का शब्द है जिसका अर्थ होता है बीता हुआ दिन। इसलिए उर्दू बोलने वाले लोग इसका एक अर्थ इतिहास से भी करते हैं। तारीख यानी एक ऐसा समय जो बीत गया लेकिन महत्वपूर्ण है।
December 6: हर साल 6 दिसंबर को वो बाबरी मस्जिद की शहादत की गवाही देते हैं। वो याद रखना चाहते हैं कि कैसे 6 दिसंबर1992 को अयोध्या में उनकी उस मस्जिद को शहीद कर दिया गया, जिसे मुगल बादशाह बाबर के सेेनापति मीर बकी ने तामीर करवाया था।
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में देशभर से जुटे रामसेवकों ने उस मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था जिसे मुसलमान बाबरी मस्जिद कहते थे। रामसेवक लंबे समय से उस स्थान को अपने आराध्य देव श्रीराम के जन्मस्थान के रूप में देख रहे थे। उस कथित बाबरी मस्जिद की तारीख यह है कि 1528 में उसे विष्णुपद मंदिर को ध्वस्त करके बनाया गया था। यह विष्णुपद मंदिर अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट भगवान श्री राम के जन्मस्थान पर ही बना था।
यही कारण है कि उन्नीसवीं सदी तक जो अंग्रेजों का रिकार्ड है उसमें उस मस्जिद को मस्जिद ए जन्मस्थान के नाम से ही दर्ज किया जाता रहा। उस जन्मस्थान पर रामसेवकों ने कभी अपना दावा नहीं छोड़ा था और लगभग पांच सौ साल के इतिहास में कई बार उसको अपने कब्जे में लेने के लिए रामसेवकों की ओर से प्रयास किया जाता रहा। आखिरकार 6 दिसंबर 1992 को रामसेवक निर्णायक रूप से सफल हुए और अब तीस साल बाद जन्मस्थान पर रामलला के मंदिर निर्माण का कार्य चल रहा है।
इस स्थान को लेकर मुसलमानों के पास 500 साल का इतिहास है तो हिन्दुओं के पास 10 हजार साल का इतिहास है। इसके बावजूद भारत के मुसलमान यह मानते हैं कि उनके पांच सौ साल के इतिहास को ही वास्तविक इतिहास मान लिया जाए और मस्जिद ए जन्मस्थान को ही अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाए। भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जिन्हें तोड़कर मस्जिद बना लिया गया लेकिन हिन्दू कभी बहुत आक्रोशित नहीं हुए। लेकिन यहां उनके आराध्य भगवान श्री राम के जन्मस्थान से जुड़ा मसला है। वो स्वप्न में भी इस स्थान से भला अपना दावा कैसे छोड़ सकते हैं?
अगर तारीख ही किसी स्थान पर दावे का सबसे पुख्ता सबूत होता तो हिन्दुओं का दावा मुस्लिम दावे से भी बीस गुना अधिक बैठता है। फिर भी भारत के मुसलमान हर 6 दिसंबर को इसे बाबरी के शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं। उनकी प्रतिक्रिया में हिन्दुओं ने भी इसे शौर्य दिवस के रूप में मनाना शुरु कर दिया।
लेकिन यहां सवाल दावे से अधिक उस मानसिकता पर है जो आक्रमणकारी इतिहास को भारत का इतिहास मानता है। जब यह सार्वभौम सत्य है कि बाबर के सेनापति मीर बकी ने एक मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई थी तब मुस्लिम पक्ष इसे बाबरी मस्जिद की शहादत क्यों करार देता है? बाबरी मस्जिद किसी भारतीय मुसलमान के लिए भी उतना ही बड़ा कलंक था जितना किसी हिन्दू के लिए। अगर यह कलंक किसी भी कारण से मिट गया तो जितनी प्रसन्नता हिन्दू को होनी चाहिए, उतनी ही एक भारतीय मुसलमान को भी होनी चाहिए।
वैसे भी इस्लाम में मस्जिद कोई वैसा दर्जा नहीं रखती जैसा हिन्दुओं में मंदिर रखता है। मंदिर पूजाघर होता है जबकि मस्जिद मात्र एक प्रार्थना करने की जगह। इस्लाम में मूर्ति पूजा की अवधारणा नहीं है इसलिए उनके लिए मस्जिद सिर्फ एक प्रार्थना स्थल होता है जहां वो इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से नमाज पढते हैं। अगर कहीं मस्जिद न भी हो तो वो खुली जगह पर भी अपनी नमाज पढ सकते हैं, बस शर्त ये होती है कि मुंह पश्चिम की ओर होना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि काबा भारत से पश्चिम की दिशा में है और मुसलमान मस्जिद में रहे या खुले मैदान में, वह काबा की ओर मुंह करके ही नमाज पढता है।
ऐसे में मुसलमान के लिए मस्जिद नहीं बल्कि वह काबा जरूरी है जिसकी ओर मुंह करके वह नमाज पढता है। हालांकि इस्लाम मूर्तिपूजा का निषेध करता है फिर भी दुनियाभर के मुसलमान काबा को अल्लाह का घर मानते हैं और अपनी नमाजें उसी दिशा में मुंह करके अदा करते हैं। इसकी शुरुआत उनके पैगंबर ने की थी, जिसका पालन मुसलमान आज भी करते हैं।
मस्जिद से जुड़ा एक तथ्य यहां और महत्वपूर्ण है कि गोल गुंबद वाली किसी इमारत को मस्जिद नहीं कहते। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार अरबी में मस्जिद का अर्थ जमीं होता है। ब्रिटैनिका के अनुसार थोड़ा और विस्तार से समझें तो मस्जिद का अर्थ place of prostration होता है जिसका अर्थ ऐसी जमीन से है, जहां पहुंचकर लोग साष्टांग दंडवत करते हैं।
मतलब, मस्जिद का मतलब अधिक से अधिक किसी मैदान या खाली जमीन से होता है, न कि किसी निर्माण से। जब इस्लाम शुरुआती दौर में था, उस समय उन्होंने कोई ढांचा कभी बनाया भी नहीं। बहुलतावादियों से उन्हें जो काबा मिला था, उनका एकमात्र ढांचा या निर्माण वही था।
कालांतर में मुसलमानों ने जेरुसलेम के टेम्पल माउंट पर भी अपना दावा किया जो कि पहले से बना हुआ ढांचा था। काबा एक छोटी चौकोर इमारत है जबकि टेम्पल माउण्ट एक गोल गुंबद वाला भवन। दोनों ही भवन अलग अलग धर्म के लोगों से जुड़े हुए थे और उस पर मुसलमानों ने अपना दावा किया।
इस्लाम में मस्जिद का आशय किसी ऐसी जमीन से होता है जहां मुसलमान इकट्ठा होकर काबा को साष्टांग दंडवत करते हैं। (नमाज पढते हैं।) इस लिहाज से गोल गुंबद वाली किसी इमारत की बजाय ईदगाह कही जाने वाली जगहें इस्लाम के मस्जिद से अधिक मेल खाती हैं।
फिर भी भारत में मुसलमान असल में इस्लाम को हिन्दुओं के ऊपर स्थापित किये गये वर्चस्व के रूप में परिभाषित करता है। इसके लिए वह कभी हिन्दुओं पर चार सौ साल शासन का हवाला देता है तो कभी बाबरी मस्जिद को भी शहीद बताता है। वरना सऊदी अरब में मस्जिद बनाना गिराना एक सामान्य इमारत के बनाने या गिराने जैसा माना जाता है। वो कभी भी भारतीय मुसलमानों की तरह मस्जिद को अल्लाह का घर नहीं बताता है जैसा कि असद्दुद्दीन ओवैसी बार बार चिल्लाते रहते हैं।
इसलिए हिन्दुओं के शौर्य और मुसलमानों के शहादत के बीच ही अगर 6 दिसंबर का निर्धारण होना है तो निश्चित रूप से यह शौर्य दिवस के रूप में ही याद रखा जाना चाहिए। मस्जिदें कभी शहीद नहीं होती। इस्लाम में शहीद उस मुसलमान को कहा जाता है जो इस्लाम के विस्तार के लिए अपनी जान देता है।
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