सैनिक की विधवा ने फैमिली पेंशन के लिए 70 साल किया इंतजार, अब बकाए में मिलेगी इतनी रकम
पिथौरागढ़: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में एक पूर्व सैनिक की पत्नी को 82 साल की उम्र में उसका वो हक मिला है, जिसका वो बीते 70 वर्षों से इंतजार कर रही थी। उसे ना सिर्फ हर महीने फैमिली पेंशन मिलने का रास्ता साफ हुआ है, बल्कि उसे 70 साल की एकमुश्त बकाया राशि दिए जाने की भी मंजूरी दे दी गई है। इसके लिए उस बुजुर्ग महिला को लंबा संघर्ष करना पड़ा है, जो उम्र के इस पड़ाव पर रंग लाया और आज उसकी खुशी का ठिकाना नहीं है। दरअसल, जब उसने ठीक से होश भी नहीं संभाला था, तभी उसके पति की मौत हो गई थी और उसके बाद दशकों तक पेंशन के बारे में उसे किसी ने कुछ नहीं बताया था। लेकिन, बाद में उसे पता चला और उसने अपनी लड़ाई लड़नी खुद शुरू की, जिसमें उसे एक समाजसेवी की मदद मिली और अब उसके दिन ही फिर गए हैं।
जब 12 साल की थी तब पति की हो गई मौत
1952 में गर्मियों के दिन की बात है। पारुली देवी तब महज 12 साल की ही थीं। इतनी छोटी सी उम्र में ही उनकी शादी गगन सिंह के साथ हो गई थी। वो कुमाऊं रेजिमेंट में जवान थे। शादी के मुश्किल से दो महीने गुजरे होंगे कि गगन सिंह ने खुद को ही गोली मारकर खत्म कर लिया। बचपन में ही उनकी जिंदगी कैसे उजड़ गई पारुली देवी को तब जरा भी एहसास नहीं हुआ और ना ही वो आजतक अपने पति की मौत की वजह जान पाई हैं। सालों गुजरते चले गए। एक दिन उन्हें अपने ही गांव की अपनी ही तरह की एक और सैनिक की विधवा से बातचीत करने का मौका मिला। तब उनके मन में भी यह उम्मीद जगी कि वो भी तो पारिवारिक पेंशन की हकदार हो सकती हैं।
सेना के पास ठोका था पेंशन का दावा
पारुली देवी ने खुद को संभाला और 1985 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला देकर सेना के पास अपनी पेंशन का दावा ठोक दिया। काम आसान नहीं था, क्योंकि दशकों यूं ही गुजर गए थे। टीओआई से एक रिटायर्ड एसिस्टेंट ट्रेजरी ऑफिसर दिलीप सिंह भंडारी ने कहा है, 'पिथौरागढ़ में बहुत से लोगों को पेंशन सिस्टम के बारे में पता ही नहीं है, खासकर सैनिकों की विधवाओं को।' काम मुश्किल था। बहुत पुराना मामला था। उनके पति की मौत जंग लड़ते हुए या फिर तैनाती के दौरान तो हुई नहीं थी। एक्स-सर्विसमेन वेलफेयर विभाग के नियमों के मुताबिक पारिवारिक पेंशन भी 'व्यक्ति के सामान्य मौत' की स्थिति में ही मिलती है। उनके पति की मौत सामान्य वजहों से भी नहीं हुई थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक फैसला काम कर गया
भंडारी ने बताया कि '1977 में एक महिला ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस नियम को चुनौती दी थी कि सिर्फ वॉर विडो को ही पेंशन दिया सकता है। 1985 में जज ने उसके हक में फैसला दिया था।' वो बोले कि 'मैंने उसके केस को इलाहाबाद में कंट्रोलर जनरल ऑफ डिफेंस एकाउंट्स और कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर के पास ले गया। सात साल तक लिखा-पढ़ी के बाद आखिरकार उन्होंने उनके दावे को मंजूर कर लिया।' आज पारुली देवी देवी 82 साल की हो चुकी हैं और उनका वो सपना सच हुआ है, जिसके लिए वह सात दशक सोचते-सोचते गुजार दिए हैं।
20 लाख रुपये एकमुश्त मिलेंगे
अब उन्हें हर महीने 11,700 रुपये बतौर पारिवारिक पेंशन मिलेगी। इतना ही नहीं उन्हें 70 वर्षों का कुल बकाया भी एकसाथ मिलेगा, जो कि 20 लाख रुपये है। देश की आजादी से पहले 1940 में जन्मी एक बुजुर्ग महिला को जिंदगी के अंतिम पड़ाव इतनी बड़ी राहत मिलने की कितनी खुशी हुई होगी इसका तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। इस मामले में दिलीप सिंह भंडारी ने उनकी जो सहायता की है, वह भी समाज सेवा का एक बहुत ही बड़ा उदाहरण है। इसीलिए वह इलाके में पेंशन एक्सपर्ट के तौर पर भी मशहूर हो चुके हैं।
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