ज्ञानवापी मामला: काशी में तैयार हो रही हिन्दुत्व की नई पिच, जानिए किस एजेंडे को लेकर अभियान चलाएगा संघ ?
लखनऊ, 17 मई : उत्तर प्रदेश में अयोध्या के बाद अब काशी-मथुरा में हिन्दुत्व की नई पिच तैयार हो रही है। काशी और पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में जिस तरह से ज्ञानवापी का मुद्दा तूल पकड़ रहा है उससे लग रहा है कि यह मामला लंबे समय तक खिंचेगा और राजनीतिक दल इसका फायदा उठाने की कोशिश भी करेंगे। बीजेपी सूत्रों की माने तो काशी और मथुरा के मुद्दे को धार देने के लिए संघ परिवार जल्द ही पूजा स्थल अधिनियम को वापस लेने के लिए अभियान शुरू करेगा। हालांकि अखिल भारतीय संत समिति का कहना है कि सवाल केवल काशी-मथुरा का नहीं है। हिंदुओं के 3000 ऐसे पूजा स्थल हैं, जिन्हें जमींदोज कर दिया गया था। यह कानून हिंदुओं के अधिकारों का गला घोंटने के लिए लाया गया था। इसलिए इसको समाप्त करने की जरूरत है।
1991 के पूजा स्थल अधिनियम की प्रासंगिकता पर नई बहस शुरू
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पाए गए एक शिवलिंग और क्षेत्र को सील करने का आदेश देने वाली एक स्थानीय अदालत के दावों के बाद, 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों की स्थिति को बनाए रखने के लिए 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की प्रासंगिकता पर एक नई बहस शुरू हो गई है। काशी और मथुरा के मामले वर्तमान में विचाराधीन हैं। ऐसे में फिलहाल सरकार, संघ और संत समाज की नजर कोर्ट के रुख पर टिकी है। स्थानीय अदालत का रुख वर्तमान में हिंदू पक्ष में है, इसलिए सरकार और संघ को पूजा स्थल अधिनियम में कार्रवाई करने की कोई जल्दी नहीं है। हालांकि, अखिल भारतीय संत समिति का दावा है कि काशी और मथुरा पूजा स्थल के दायरे में नहीं हैं। इसके बावजूद समिति इस कानून को खत्म करने की मांग कर रही है।
कई बार संघ और सरकार के बीच हो चुका है मंथन
बीजेपी के सूत्रों की माने तो काशी और मथुरा मामलों में तेजी से सुनवाई के बाद सरकार और संघ के बीच कई बार चर्चा हो चुकी है। इन दोनों मामलों पर मार्च में गुजरात में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा और अप्रैल में देहरादून में चिंतन शिविर में विशेष सत्र में चर्चा हुई थी। इस दौरान कोर्ट का रूख जानने के बाद पूजा स्थल अधिनियम को वापस लेने का अभियान चलाने पर भी चर्चा हुई। उस दौरान सरकार और भाजपा के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। वहीं दूसरी ओर संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्र नंद सरस्वती का कहना है कि पूजा स्थल कानून का इससे कोई लेना-देना नहीं है। अधिनियम की सरस्वती पूजा विशेष प्रावधान धारा 4(3ए) के अनुसार स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ऐसे पूजा स्थल जो प्राचीन, ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल हैं, जो प्राचीन स्मारक-पुरातत्व स्थल अवशेष अधिनियम 1958 के दायरे में आते हैं। इसलिए काशी और मथुरा के पूजा स्थल कानून के दायरे में नहीं आते हैं। दोनों ही मामलों में कोर्ट का फैसला सर्वोपरि होगा।
पूजा स्थल अधिनियम को वापस लेने के लिए अभियान चलाएगा संघ
काशी-मथुरा के इस दायरे से बाहर होने के बावजूद संघ परिवार पूजा स्थल अधिनियम को वापस लेने के लिए अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है। इसका कारण पूछने पर स्वामी जितेंद्रानंद कहते हैं कि सवाल केवल काशी-मथुरा का नहीं है। हिंदुओं के 3000 ऐसे पूजा स्थल हैं, जिन्हें जमींदोज कर दिया गया था। यह कानून हिंदुओं के अधिकारों का गला घोंटने के लिए लाया गया था। सभ्यता और संस्कृति की सुरक्षा भी सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। सवाल यह है कि जब धारा 370 को खत्म किया जा सकता है तो इस कानून को खत्म क्यों नहीं किया जा सकता?
राम मंदिर निर्माण तक ज्ञानवापी से रहेगी विहिप की दूरी
विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि यह खुशी की बात है। दोनों पक्षों की मौजूदगी में शिवलिंग मिला है। साफ हो गया है कि 1947 में भी वहां एक मंदिर था। उम्मीद है देश इसे स्वीकार करेगा। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि कोई छेड़छाड़ न हो। हम राम मंदिर निर्माण तक कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। भविष्य की रणनीति के लिए 11-12 जून को हरिद्वार में गाइड बोर्ड की बैठक में चर्चा होगी।