पटना में लालू की रैली से इसलिए दूरी बनाएंगी मायावती
मायावती लालू प्रसाद की मेगा रैली से बनाएंगी दूरी, फोन पर बातचीत के दौरान नहीं दिया कोई भी आश्वासन
लखनऊ। लालू प्रसाद यादव की 27 अगस्त को पटना में होने वाली मेगा रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती के जाने की संभावनाएं कम होती दिख रही हैं। बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि लालू प्रसाद यादव ने बहनजी को फोन करके एनडीए के खिलाफ पटना में होने वाली रैली में आने का निमंत्रण दिया था, यही नहीं लालू ने उनसे कहा था कि आप एनडीए के खिलाफ गठबंधन में मुख्य भूमिका निभाइए। लेकिन मायावती ने उन्हें किसी भी तरह का आश्वासन नहीं दिया है, मुमकिन है कि वह अपने किसी प्रतिनिधि को वहां भेज दें।
लालू ने दिया था राज्यसभा सीट का प्रस्ताव
आपको बता दें कि इससे पहले लालू प्रसाद यादव ने मायावती को बिहार से राज्यसभा की सीट का प्रस्ताव दिया था। यही नहीं हाल ही में बसपा के ट्विटर अकाउंट से एक पोस्टर जारी किया गया था जिसमें मायावती को तमाम विपक्षी दल के नेताओं के साथ दिखाया गया था और विपक्ष को मजबूत करने की बात कही गई थी। इस पोस्टर में अखिलेश यादव, लालू प्रसाद, सोनिया गांधी, शरद यादव, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी मौजूद थे। लेकिन इस पोस्टर और बसपा के ट्विटर अकाउंट पर सतीश मिश्रा ने कहा कि बसपा का कोई आधिकारिक ट्विटर हैंडल नहीं है और ना ही पार्टी ने इस तरह का कोई पोस्टर जारी किया है।
लगातार तीन हार के बाद अस्तित्व का संकट
वर्ष 2012 के बाद मायावती को एक के बाद एक लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। मायावती को पहले 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव, फिर 2014 क लोकसभा चुनाव में और फिर 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में जिस तरह से मायावती का जनाधार पूरी तरह से खिसक गया है वह उसे फिर से वापस हासिल करने की पूरी कवायद में जुटी हैं। जिस तरह से भगवा फौज के खिलाफ भीम आर्मी ने मोर्चा खोला उसे बसपा ने खुद समर्थन दिया। यही नहीं अपनी 2019 की रणनीति के तहत मायावती ने राज्यसभा की सीट से एक वर्ष पहले ही इस्तीफा भी दे दिया।
विपक्ष से दूरी के पीछे है वजह
हालांकि राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान मायावती ने यूपीए की उम्मीदवार मीरा कुमार को अपना समर्थन देने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने साथ ही इस बात की ओर भी इशारा कर दिया था कि वह भाजपा विरोधी दलों के साथ जुड़ने के मूड में नहीं हैं। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन उनके वोट फीसदी पर नजर डालें तो यह 20 फीसदी है। लिहाजा उनके अपने बूते पर एक बार फिर से राज्यसभा जाने का सपना खत्म हो चुका था। ऐसे में मायावती ने 18 जुलाई को राज्यसभा से उन्हें दलितों के मुद्दों पर नहीं बोलने की इजाजत का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था, अपने इस कदम के जरिए मायावती ने दलितों के भीतर अपनी सहानुभूति बनाने की कोशिश की थी। मायावती का मानना है कि गठबंधन में बसपा के अलावा बाकी दलों को लाभ होता है, 1993 का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब वह सपा के साथ थी, 1996 में जब वह कांग्रेस के साथ थीं, इस दौरान दोनों ही पार्टियों को लाभ हुआ लेकिन उनकी पार्टी प्रत्याशित सीटों पर जीत हासिल करने में विफल रहीं।