Bikes of Bijnor: कैसे प्रवासी मजदूरों से मिली 'गिफ्ट' से संवरने लगी है स्थानीय लोगों की जिंदगी
बिजनौर: ठीक एक साल पहले लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में प्रवासी मजदूरों के दर्द का गवाह पूरा देश बना था। उन्होंने देश के बड़े शहरों से यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड या दूसरे राज्यों में अपने गांवों तक हजारों किलोमीटर का मुश्किल रास्ता तय किया था। कोई पैदल ही बीवी-बच्चों और बुजुर्गों को साथ लेकर हजारों किलोमीटर की सफर पर निकल पड़ा था। तो किसी ने साइकिल, रिक्शा या ठेले से ही यात्रा शुरू कर दी थी। मजदूरों के उस दर्दनाक पलायन को जिन्होंने नजदीक से देखा है, वो उस मंजर को कभी भूल नहीं सकते। हालांकि, पुलिस-प्रशासन या स्थानीय लोगों में जिससे जो भी बन बड़ा उन मजबूरों की सहायता में कोई कमी भी नहीं छोड़ी। ऐसी ही मदद के बदले उत्तर प्रदेश के बिजनौर के लोगों के लिए ये प्रवासी मजदूर सैकड़ों रिटर्न गिफ्ट छोड़कर गए हैं, जिसकी अहमियत अब समझ में आ रही है। यहां प्रवासी मजदूरों की छोड़ी हुई सैकड़ों साइकिलें खराब हो रही थीं, लेकिन स्थानीय प्रशासन की पहल पर अब वही साइकिलें लोगों की बड़ी काम आ रही हैं।
लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर छोड़ गए 400 साइकिल
बड़े शहरों में प्रदूषण को कम करने के लिए साइकिल को बढ़ावा देने की योजनाएं कई शहरों में अभी तक विचारों के स्तर पर ही पड़ी हुई हैं। लेकिन, उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर बिजनौर ने इस समस्या से निपटने के लिए पूरे देश को एक नई राह दिखाई है। यहां 'बाइक्स ऑफ बिजनौर' स्कीम के तहत बेकार पड़ीं 100 साइकिलों की छोटी-मोटी मरम्मत और रंग-रोगन करके पूरी तरह से नया बना दिया गया है और उसे लोगों को मामूली किराए पर दिया जा रहा है। अगर इन साइकिलों का कायापलट नहीं किया जाता तो यह पूरी तरह से कबाड़ में तब्दील होने वाली थीं। असल में शहर में ऐसी करीब 400 साइकलें उन प्रवासी मजदूरों की हैं, जिन्हें लॉकडाउन के दौरान उन्हें यहीं पर छोड़कर जाना पड़ा था। ऐसी साइकिलों के उचित इस्तेमाल के लिए सरकारी अधिकारी और सिविल सोसाइटी के लोगों ने करीब महीनेभर तक कई प्रयोग किए, तब जाकर उन्हें इसके वाजिब इस्तेमाल का आइडिया मिला है, जिसकी सराहना केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तक ने भी की है और दूसरे शहरों को भी बिजनौर से सीखने को कहा है।
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मामूली किराये पर कोई भी चला सकता है साइकिल
अब इन साइकिलों का इस्तेमाल बिजनौर आने वाला या यहां रहने वाला कोई भी शख्स बहुत ही कम किराया चुकाकर कर सकता है। इसके चार घंटे तक इस्तेमाल के लिए 5 रुपये और 12 घंटे तक चलाने के लिए 10 रुपये का किराया फिक्स किया गया है। कोई भी शख्स इसे किसी भी स्टैंड से ले जा सकता है और फिर शहर के किसी भी निर्धारित साइकिल स्टैंड पर इसे जमा कर सकता है। इस स्कीम पर सबसे पहले ध्यान 2018 बैच के आईएएस अधिकारी विक्रमादित्य सिंह मलिक का गया, जिन्होंने पिछले साल यहां के ज्वाइंट मैजिस्ट्रेट का चार्ज लिया था। जब उनकी नजर थानों में पड़ी खराब हो रही सैकड़ों साइकिल पर पड़ी थी। तब उन्होंने ही सबसे पहले इस नायाब योजना पर पहल शुरू की और आज केंद्रीय मंत्री तक उनकी तारीफ कर रहे हैं। दरअसल, बिजनौर ऐसी जगह पर है जहां से पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड से रास्ता आता है और जिस होकर लॉकडाउन के दौरान हजारों प्रवासी मजदूर यूपी और बिहार में अपने गांवों की ओर जा रहे थे।
एक आईएएस अधिकारी की पहल ने बिजनौर को दी नई दिशा
बिजनौर के जिलाधिकारी रामाकांत पांडे ने बताया कि "कोरोना की वजह से पिछला साल सबके लिए बड़ी मुश्किल का रहा। और बिजनौर पड़ता है रास्ते में... पूर्वी उत्तर प्रदेश या बिहार जाने के लिए जिन भी लोगों को पंजाब से या उत्तराखंड से आना था। दुर्भाग्य से सभी कोशिशों के बाद भी ऐसा हुआ कि कुछ मजदूरों को पैदल जाने की मजबूरी दिखाई दी सड़कों पे.....तो हमने उन्हें रोका, उनके खाने और रहने का इंतजाम किया। उसके बाद उनको ट्रेन से भेजने का इंतजाम किया.....स्पेशल ट्रेन चलाकर। तो मुश्किल उस समय ये आई कि कुछ लोग साइकिल से जा रहे थे.....कि उन साइकिलों का क्या किया जाए....?" उधर मलिक ने बताया कि "हम नहीं चाहते थे कि ये वैसे वाहन हो जाएं जिनका वैल्यू बिल्कुल ही गिरता चला जाए....उनका कोई यूज ना हो सके। इसलिए पहले हमने इन लोगों से संपर्क किया और मूल्यांकन करवाके साइकिल का इनको बताया गया कि आप या तो आप अपनी साइकिल यहां से ले जाइए या इतना प्राइस निर्धारित हुआ है, जो हम आपके खाते में दे देंगे।" कुछ ही लोग साइकिल लेने के लिए बिजनौर आ पाए, बाकी के खातों में 600-600 रुपये भेज दिए गए।
'बाइक्स ऑफ बिजनौर'-पूरी दुनिया के लिए तीन संदेश
'बाइक्स ऑफ बिजनौर' स्कीम एक पूरी कार्य योजना के आधार पर लागू किया गया है। सबसे पहले तो करीब 400 साइकिलों में से 100 साइकिलों को स्थानीय साइकिल मेकेनिकों से ही मरम्मत करवाई गई और उनसे ही इसकी पेंटिंग करवाई गई। इसे खास पीले रंग से रंगा गया है, जिससे इसकी पहचान दूर से ही की जा सकती है। ज्वाइंट मैजिस्ट्रेट मलिक के मुताबिक इस पूरे कंसेप्ट को वेस्ट टू वेल्थ और आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत आकार दिया गया है। 100 साइकिलों के लिए शहर की 10 भीड़-भाड़ वाली जगहों पर 'बाइक्स ऑफ बिजनौर' के नाम से 10 साइकिल स्टैंड बनाए गए हैं। इन साइकिल स्टैंड का मैनेजर भी कहीं वहीं पर स्थानीय चाय दूकानदार है तो कोई हेलमेट बेचने वाला या फिर दिव्यांग साइकिल मेकेनिक को ही इसकी जिम्मेदारी दी गई है। इस योजना से आज छोटा सा बिजनौर पूरी दुनिया को तीन पॉजिटिव मैसेज दे रहा है। पहला- शहर में ट्रैफिक की समस्या कम होगी। ईंधन की बचत होगी और पर्यावरण की भी हिफाजत होगी और स्थानीय लोगों के लिए यह फिटनेस का भी एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। (तस्वीरें- नितिन गडकरी के ट्वीट के वीडियो ग्रैब से)