बेटे को डॉक्टर बनाने के लिए किडनी बेचना चाहता है ये दिव्यांग पिता, ऐसी है बुलंद इरादों की कहानी
गांधीनगर। एक पिता अपनी संतान को पढ़ाने के लिए क्या कुछ नहीं कर सकता। गुजरात में आदिवासी समुदाय से अपने लाड़ले को डॉक्टर बनाने का सपना पाले एक दिव्यांग पिता अपनी किडनी बेचने पर आमदा है। वह 1995 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद खुद नौकरी ढूंढ रहा था, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर थी। वह एक हादसे का शिकार हो गए। उनकी आंखों की रोशनी चली गई और शरीर पर भी गहरे जख्म लगे। तब से उनका जीवन दूसरों पर निर्भर हो गया। जैसे-तैसे उन्होंने की पढ़ाई शुरू कराई। अब वह अपने बेटे को डॉक्टर बनाना चाहते हैं। एक ऐसा डॉक्टर जो दूसरों की तो जिंदगी भली-भांत रखने में मददगार हो।
हादसे की वजह से नहीं मिल पाई नौकरी, लेकिन बुलंद हैं पिता के इरादे
यह शख्स हैं गुजरात के वांसदा तालुका के आदिवासी इलाके में रहने वाले जयेश पटेल। उनका घर आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। किंतु वह अपने बेटे को पढ़ाने के लिए सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हैं। वे कहते हैं कि माता-पिता तो अपना घर, ज़मीन और ज़ेवरात भी बेच ही देते हैं। अच्छी संतान से बड़ा क्या धन हो सकता है। सच कहा जाए तो आदिवासी इलाक़े का यह पिता अपने बेटे की बेहतर पढ़ाई कराने के लिए अपने शरीर का अभिन्न अंग भी बेचने के लिये तैयार है। आमतौर पर, किडनी बेचने के किस्से सुने जाते हैं, मजबूरी में वह भी एक किस्सा बन जाना चाहते हैं।
इसलिए किडनी बेचने को भी तैयार हैं जयेश
सरकार ने यूं तो राज्य में आदिवासियों के बच्चों के लिये भी कई तरह की योजनाएं शुरू की हैं।किंतु जयेश कहते हैं कि कोई भी सरकारी अधिकारी उनकी मदद को ध्यान नहीं लगा रहा। यदि सरकार से मदद मिले तो मुझे खुद की जिंदगी दांव पर लगाने की नौबत ही न आए। फिलहाल परिवार का गुजारा भी मुश्किल से हो पा रहा है। जयेश की पत्नी परिवार में एक मात्र रोटी कमाने वाली थीं, इसलिए परिवार के लिए गुजरा न करना कठिन था। किंतु अब परिस्थितियों इतनी जटिल हैं कि कोई और रास्ता नहीं रह गया। ऐसे में अपने बेटे साहिल को पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाने के लिए वह किडनी बेचने में भी संकोच नहीं कर करना चाहते।
बेटे ने 10वीं 90.59% मार्क्स हासिल किए
बेटे ने अपने 10वीं बोर्ड की परीक्षा में 90.59 प्रतिशत मार्क्स हासिल किए हैं। बड़ी मुश्किल से उसे नए स्कूल में दाखिला मिला। क्योंकि वह साइंस की पढ़ाई करना चाहता था, तो उसके कुछ शिक्षकों ने उन्हें विभिन्न तरीकों से मदद की। अब उसे डॉक्टर बनना है। किंतु यह सपना पूरा करना है तो जयेश मानते हैं कि खर्च उठाने के लिए अपनी किडनी बेचने का फैसला लेकर सही किया है। कम से कम बेटा डॉक्टर बनेगा तो उसके सपने को तो पूरा किया जा सकता है।
पत्नी ही कर रहीं घर का गुजारा
जयेश यह भी कहते हैं कि मैं हमेशा से जानता था कि मेरा बेटा पढ़ने में होशियार है। उसने कक्षा-10 की बोर्ड परीक्षा में वास्तव में अच्छा स्कोर प्राप्त किया। अब वह एक अच्छा डॉक्टर बनना चाहता है, लेकिन मैं उसकी आर्थिक रूप से सहायता नहीं कर पा रहा हूँ। जब मैंने 10 साल पहले अपनी आँखें खो दीं, पत्नी ही हमारा गुजारा करती है। बेटा डॉक्टर बन जाए तो लोगों की सेवा भी की जा सकेगी।
सरकार ने आदिवासियों के लिए 20000 करोड़ दिया, लेकिन..
राज्य में आदिवासियों के कल्याण के लिये सरकार ने 20,000 करोड़ की वन बंधु योजना लागू की हुई है। जिसमें युवाओं के लिये रोज़गार और विद्योपार्जन के लिये सहायता भी शामिल है। किंतु, यह दिव्यांग पिता जयेश और बेटा साहिल इस योजना का लाभ भी नहीं ले पा रहे हैं।