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फुल टाइम कोच बनकर नए वेटलिफ्टर तैयार करना चाहते हैं International Weightlifter रुस्तम सारंग

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रायपुर, 26 मार्च। छत्तीसगढ़ के गौरव माने जाने वाले अंतराष्ट्रीय भारोत्तोलक रुस्तम सारंग का कहना है कि अपना बाकि का खेल जीवन कोच की भूमिका में निभाना चाहते हैं। उनका यह भी कहना है कि छत्तीसगढ़ में राज्य को अपनी खेल नीति में जरुरी बदलाव करने की जरूरत है, क्योंकि सही उम्र में शासकीय सेवा का अवसर ना मिलने के कारण राज्य के जूनियर इंटरनेशनल खिलाड़ी अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह अपने संसाधनों से नए खिलाड़ियों को वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग दे रहे हैं और भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रहीं सबा अंजुम के साथ मिलकर राज्य की खेल प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। पढ़िए वन इंडिया हिंदी संवाददाता धीरेन्द्र गिरि गोस्वामी से International Weightlifter रुस्तम सारंग की EXCLUSIVE चर्चा

पढ़िए वन इंडिया हिंदी संवाददाता धीरेन्द्र गिरि गोस्वामी से International Weightlifter रुस्तम सारंग की EXCLUSIVE चर्चा


सवाल - काफी दिनों से आप किसी प्रतिस्पर्धा में दिखाई नही दे रहे हैं। आखिर इस समय आप कर क्या रहे हैं?

जवाब - 2017 में मुझे पैर के घुटने में चोट लग गई थी, जिसके बाद चोट से उबरने के लिए मैंने खुद को खेल से दूर कर लिया था। मैंने खेल में वापसी की कोशिश भी की थी, लेकिन कोविड 19 और लॉकडाउन के कारण अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं और ओलम्पिक में खेलने का मेरा सपना अधूरा रह गया। अब मैंने नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देना शुरू किया है। रायपुर की जिस जय सतनाम व्यायाम शाला में मैंने ट्रेनिंग ली थी, अब उसी जगह पर मैं, मेरे पिता बुधराम सारंग और भाई अजयदीप सारंग नई पीढ़ी के बच्चों को वेटलिफ्टिंग की नि:शुल्क ट्रेनिंग दे रहे हैं। हमारे परिवार में सभी वेटलिफ्टिंग से जुड़े हैं, इसलिए हमें इस काम में बेहद संतुष्टि मिलती है।

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मुझे चोटिल होने की वजह से बीच में ही एशियन चैंपियनशिप को छोड़कर घर वापस आना पड़ा था। इसकी वजह से आगे भी देश के लिए खेलने का मेरा सपना अधूरा रह गया। मेरा मानना है कि कोई भी वरिष्ठ खिलाड़ी अपना रिटायरमेन्ट सम्मानपूर्वक चाहता है, लेकिन कोविड 19 की वजह से उनके लिए वक्त काफी पीछे रह गया है। जहां तक युवा खिलाड़ियों की बात है, बीते 3 साल उनके लिए भी मुश्किल रहे हैं,क्योंकि आजकल वेटलिफ्टिंग के खिलाड़ियों को नौकरी रक्षा सेवा या रेलवे में ही मिलती है, जिसके लिए उम्र निर्धारित होती है। कोरोना की वजह से काफी खिलाड़ी इस कालखंड में अधिक उम्र के हो गए और अवसरों से वंचित रह गए।

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सवाल- आप लड़कियों और छोटी बच्चियों को ट्रेनिंग दे रहे हैं?

जवाब- मेरा सपना रहा है कि छत्तीसगढ़ की लड़कियां केवल पढ़ाई और घरेलू कामों में ही अपना वक्त जाया ना करें। लड़कियां खेल में भी आगे बढ़ें, इसलिए मैंने एक अभियान चलाकर छत्तीसगढ़ के कई स्कूल और कॉलेज में जाकर लड़कियों को वेटलिफ्टिंग में पहली बार ओलम्पिक पदक जीतने वाली खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी के बारे में बताया। अब तो मीराबाई चानू के ओलंपिक में रजत पदक जीतने के बाद से बच्चियों में वेटलिफ्टिंग के प्रति आकर्षण बढ़ा है। मैं बच्चियों को सफल महिला वेटलिफ्टर के बारे में बताकर उन्हें इस खेल में आगे बढ़ने के किये प्रेरित कर रहे हैं।

सवाल- छत्तीसगढ़ के पिछड़े इलाकों से आने वाले आदिवासी बच्चों को खेल में आगे लाने के लिए आपकी क्या योजना है?

जवाब- मेरी हमेशा से यही चाहत रही है कि छत्तीसगढ़ वेटलिफ्टिंग में आगे बढ़े। आदिवासी क्षेत्र के बच्चे हों या शहरी क्षेत्र के हमारे छत्तीसगढ़ के बच्चों में काफी दम है, बस उन्हें एक अच्छे ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग देने की जरूरत है। मेरा भारत सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार से निवेदन है कि राज्य में वेटलिफ्टिंग को बढ़ाने के लिए खेल अकादमी बनाये। वेटलिफ्टिंग एक ऐसा खेल है, जो लगातार अच्छे नतीजे दे रहा है।

अगर छत्तीसगढ़ की एक अलग खेल अकादमी होगी, तो राज्य के खिलाड़ियों को नए अवसर मिलेंगे। बिना बड़े खर्च के हम आदिवासी इलाकों में बच्चों तक नही पहुंच सकते हैं, लेकिन हम कम से कम रायपुर में पहले से तैयार स्टेडियमों की सहायता से कम बजट में भी खेल छात्रावास जरूर शुरू कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो मुझे पूरी उम्मीद है कि राज्य के खिलाड़ियों को अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए तैयार किया जा सकता है।

आज छत्तीसगढ़ के पास वेटलिफ्टिंग के क्षेत्र में उपलब्धियां बहुत हैं, समय रहते अगर खिलाड़ियों का उत्साह नहीं बढ़ाया गया, तो उनकी हिम्मत टूटने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार को एक खेल अकादमी खोले जाने की दिशा में जल्द ही बढ़ना चाहिए।

सवाल- आपको ऐसा क्यों लगता है कि छत्तीसगढ़ से अच्छे वेटलिफ्टर निकल सकते हैं?

जवाब- यह सही बात है कि हरियाणा जैसे राज्यों से रेसलर ज्यादा निकल रहे हैं। सन 2000 में छत्तीसगढ़ बना तब राज्य के खाते में कोई बड़ी खेल की उपलब्धियां नहीं थीं। इन शुरुवाती दिनों में मैंने छत्तीसगढ़ के लिए कई अन्तराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खेलों में पदक हासिल किए, इस वजह से वेटलिफ्टिंग को छत्तीसगढ़ में एक अलग पहचान मिली। छत्तीसगढ़ में उन दिनों केवल वेटलिफ्टिंग ही एकमात्र ऐसा खेल था, जो राज्य को पदक दिला रहा था। मुझे खुशी है कि हमने जो पौधा लगाया था, वह अब पेड़ बन चुका है। नई पीढ़ी को लगता है कि अगर हमारे वरिष्ठ खिलाड़ी ओलंपिक क्वालिफिकेशन तक पहुंच सकते हैं, तो हम भी ओलंपिक तक जरूर पहुंच सकते हैं। मुझे भी यही लगता है, इसलिए मेरा मानना है कि छत्तीसगढ़ में वेटलिफ्टिंग को लेकर काफी स्कोप है।

सवाल- छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से खिलाड़ियों को उनकी योग्यता के मुताबिक नियुक्तियां दी जाती हैं, वो आपको मिली नहीं ?

जवाब- मेरी सरकार से कोई नाराजगी नहीं है, जब से छत्तीसगढ़ राज्य बना है मुझे खेलने के लिए पूरी सुविधाएं दी गई थी। करियर के शुरुआती दौर में ही मुझे सरकारी नौकरी दी गई थी, लेकिन मुझे जब छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल में नियुक्ति दी गई थी, तब उपलब्धियों के मुताबिक मुझे वह पद नहीं मिल सका। क्योंकि बाद में सरकार ने खेल नियमों को शिथिल करके राज्य की एक वरिष्ठ खिलाड़ी को उचित पद दिया था, यह लाभ सभी अंतराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ियों के लिए होना चाहिए।

छत्तीसगढ़ सरकार से हमेशा यही निवेदन रहा है कि अगर खेल नीति को शिथिल करके एक खिलाड़ी को लाभ दिया जा सकता है, तो वह छत्तीसगढ़ के दूसरे खिलाड़ियों को भी दिया जाना चाहिए। मैंने ऐसा कभी नहीं कहा कि मुझे पद चाहिए, या मेरे साथ पक्षपात हुआ है। लेकिन कुछ लोगों ने इसे गलत तरीके से प्रचारित किया। शायद मैं अपनी बातों को सही तरीके से समझा नहीं पाया, इसलिए कुछ लोग मुझसे नाराज भी रहे। अगर कभी किसी को कोई नाराजगी हुई हो तो उसके लिए माफी चाहता हूं।

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हालांकि मेरे मन में इस बात की कसक आज भी है कि छत्तीसगढ़ के लिए अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सबसे अधिक पदक जीतने वाला खिलाड़ी होने के बावजूद मुझे खेल नीति का फायदा नहीं मिल सका, लेकिन ठीक है, जो नहीं हो पाया, वह नहीं हो पाया। मै आज छत्तीसगढ़ सरकार से यह निवेदन करूंगा कि छत्तीसगढ़ के जूनियर खिलाड़ियों के लिए खेल नीति को बदलना जरूरी है, क्योंकि जो जूनियर खिलाडी हैं, उन्हें ही अगले 10 साल तक राज्य के लिए परफॉर्म करना है। होना यह चाहिए कि जूनियर पदक विजेताओं को सही समय में नौकरी दी जानी चाहिए, ताकि वह आने वाले कई सालों तक अपने राज्य के लिए परफॉर्म कर सकें, लेकिन छत्तीसगढ़ में ठीक इसका उलट होता है। सीनियर लेवल पर पदक जीतने तक खिलाड़ियों की उम्र निकल चुकी होती है, तब 30 की उम्र में उन्हें खेल कोटे से नौकरी देकर पदक जीतने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।

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सवाल- हॉकी प्लेयर सबा अंजुम के साथ कोई मनमुटाव नहीं है?

जवाब- मै शुरू से कह रहा हूं कि मैंने कभी उन्हें पद देने का विरोध नहीं किया। लोगों ने मेरी बातों को गलत तरीके से प्रचारित किया। सबा अंजुम मेरी सीनियर हैं। हम एक ही ट्रेनिंग कैम्प में साथ खेल चुके हैं। आज वह अर्जुन अवार्डी होने के साथ पद्मश्री भी हैं। पुलिस विभाग में मेरी सीनियर हैं। मैंने उनको बताया कि मै अपने लिए नहीं, बल्कि खिलाड़ियों के हित के लिए खेल नीति के बदलाव की वकालत कर रहा था, तब उन्होंने मेरी बातों को समझा और एप्रिशिएट भी किया। आज हम साथ में पुलिस विभाग में अच्छा काम कर रहे हैं, हमारी खेल के संबंध में अकसर बातें होती रहती है, हम एक दूसरे से मोटिवेशन लेते रहते हैं। यह सबको जान लेना चाहिए कि हमारे बीच कोई भी मतभेद नहीं है। हमारी आपस में यह भी चर्चा हुई है कि हम नई पीढ़ी को आगे लाने के लिए अपनी सैलरी में से जो मदद बन पड़ेगी करेंगे। अब हम साथ मिलकर नए खिलाड़ियों के लिए काम कर रहे हैं।

सवाल- आप अभी सक्रिय वेटलिफ्टर हैं, कोच भी हैं, छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल में इंस्पेक्टर भी हैं। आखिर आपका फ्यूचर प्लान है क्या?

जवाब- मै यह मानता हूं कि खेल ही मेरा पैशन है और वेटलिफ्टिंग मेरी स्पेशलिटी है। मै शासन से यह निवेदन करना चाहता हूं कि मुझे आगे मेरी विशेष योग्यता के आधार पर ही इस्तेमाल किया जाये। मै फुल टाइम कोच बनकर नए वेटलिफ्टर तैयार करना चाहता हूं।

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English summary
International Weightlifter Rustam Sarang wants to prepare new weightlifters by becoming a full time coach
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