
Major Dhyan Chand: ध्यान चंद को हिटलर ने दिया था जर्मनी आने का ऑफ़र लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया

Major Dhyan Chand: हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद को कौन नहीं जानता। हॉकी वर्ल्ड में प्रसिद्ध इस खिलाड़ी को इस खेल का भगवान माना जाता है। ओलंपिक खेलों में भारत को हॉकी का गोल्ड मेडल दिलाने वाले मेजर ध्यानचंद ही थे। उनके जैसा खिलाड़ी फिर से देखने को नहीं मिला। मेजर ध्यानचंद की आज 43वीं पुण्यतिथि है।
IND vs BAN: भारत को बड़ा झटका, बांग्लादेश के खिलाफ सीरीज से बाहर हुआ दिग्गज खिलाड़ी

जन्म और जीवन परिचय
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में हुआ था। ओलंपिक हॉकी में वह तीन बार गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य रहे हैं। वर्ल्ड के बेस्ट हॉकी खिलाड़ियों में गिने जाने वाले ध्यानचंद भारत के कप्तान भी रहे हैं। उनको पद्म भूषण अवॉर्ड से भी नवाजा गया है। हालांकि ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग लगातार उठती रही है लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। भारत में हर साल उनके जन्मदिवस 29 अगस्त को नेशनल स्पोर्ट्स डे मनाया जाता है।

ध्यानचंद ने दागे थे 1000 से ज्यादा गोल
ध्यानचंद अपने जादुई खेल की वजह से जाने जाते थे। अपने खेल जीवन में ध्यानचंद ने 1000 से भी ज्यादा गोल किये थे। ऐसा कहा जाता रहा है कि जब वह मैदान पर खेलते थे, तो गेंद उनकी हॉकी स्टिक से चिपक जाती थी। गेंद उनके पास आने के बाद विपक्षी टीम के पास जाने के आसार कम ही होते थे। इस तरह का गेम वह ग्रास टर्फ पर खेलते थे। सिंथेटिक ट्रेक तो बाद में आए हैं। ध्यानचंद सेना में 1927 में लांस नायक बने थे। इसके बाद खेल के कारण उनका कद और ऊपर होता चला गया। बाद में वह लेफ्टिनेंट कर्नल बने। इसके अलावा बाद में वह सूबेदार बने। अंत में उनको मेजर का पद मिला। यही पद उनके नाम के आगे जुड़कर रह गया और सब उनको मेजर ध्यानचंद के नाम से जानने लगे।

हिटलर को भी कर दिया प्रभावित
साल 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारत और जर्मनी का मैच देखने के लिए हिटलर आया था। वहां ध्यानचंद ने गोल दागने शुरू किये। इस दौरान उनकी हॉकी स्टिक बदलवा दी गई लेकिन ध्यानचंद का गेम नहीं रुका। भारत ने जर्मनी को यह मैच 8-1 के अंतर से हरा दिया। बाद में हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी आने का ऑफर दिया लेकिन ध्यानचंद ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। ध्यानचंद ने जीवन के अंतिम दिन तंगी में बिताए। उनको सदमा लगा कि देश को परिवार से पहले रखने के बाद भी उनको वह सम्मान नहीं मिला। उनको हॉकी फेडरशन द्वारा भुला दिए जाने का सदमा लगा। बीमारी के अंतिम समय में वह एम्स दिल्ली में भर्ती थे और 3 दिसम्बर 1979 के दिन दुनिया को अलविदा कह गए।