हार्दिक का अजीब किस्सा ! जब आंखों ही आंखों में घूर कर किया प्यार का इजहार
श्रीलंका के खिलाफ टी20 सीरीज में कप्तान हार्दिक पांड्या ने कैंप्टंसी में अपने अनोखे अंदाज दिखाए। वे कभी गुस्से में लगे तो कभी शांत। लेकिन तीसरे टी20 मुकाबले के दौरान तो आंखों में घूरकर किया इजहार बड़ा दिलचस्प था।
राजकोट, भारत-श्रीलंका तीसरा टी-20 मुकाबला। यहां दो मैच हुए। एक मैच मैदान पर खेला गया, दूसरा आंखों-आंखों में। आंखों ही आंखों में हुए इस मैच पर जरा गौर कीजिए। संयोग से ही यह लम्हा कैमरे में कैद हुआ। 17वां ओवर अर्शदीप सिंह फेंकने आये। उनकी पहली गेंद पर दासुन शनाका ने छक्का मारने के इरादे से एक आसमानी शॉट खेला। गेंद ठीक से बल्ले पर आयी नहीं। गेंद को ऊंचाई तो मिली लेकिन लंबाई नहीं मिली। नतीजे के तौर पर अक्षर पटेल ने कैच लेकर शनाका के खेल को खत्म किया। इस विकेट पर कप्तान हार्दिक पांड्या ताली बजाते हुए अर्शदीप सिंह की तरफ बढ़ने लगे।
हार्दिक के प्यार जताने का अनोखा अंदाज
संयोग से उस समय अर्शदीप अंपायर के बिल्कुल नजदीक खड़े थे। तभी कैमरा हार्दिक का क्लोज अप शॉट दिखाने लगा। हार्दिक अर्शदीप के करीब पहुंचे। फिर उनकी आंखों में आंखें डाल कर देखने लगे। उनकी आंखों में एक चमक थी और वे अर्शदीप को लगातार घूरे जा रहे थे। शायद वे कहना चाहते थे, ये हुई न बात ! तभी अंपायर की नजर हार्दिक की तरफ घुमी। अब हार्दिक मुसकुराने लगे। दूसरे मैच में लगातार तीन नोबॉल के लिए हार्दिक ने अर्शदीप को झाड़ लगायी थी। लेकिन जब अच्छा किया तो प्यार जताने भी आ गये। हालांकि उनके घूरने के अंदाज से एक पल के लिए भ्रम पैदा हो गया था। उनके प्यार जताने का ये अंदाज बिल्कुल अलग था। कुछ सेकेंड के लिए ये दृश्य उभरा फिर कैमरे ने कोण बदल लिया।
अंदाज अपना-अपना
क्रिकेट स्किल के अलावा मिजाज और अंदाज की भी खेल है। भारत के कई क्रिकेट कप्तान अपने खास मिजाज और अंदाज के लिए याद किये जाते हैं। सौरव गांगुली कोरबो, लोड़बो, जीतबो में यकीन रखते थे। इसी अंदाज में उन्होंने विश्व क्रिकेट में भारत की शान बढ़ायी। महेन्द्र सिंह धोनी कैप्टन कुल के रूप में याद किये जाते हैं। तनाव और विकट परिस्थितियों में भी वे बिल्कुल शांत रह कर खेल को संभालते थे। विराट कोहली आक्रामक कप्तान थे। रोहित शर्मा को भी शांत कप्तान ही माना जाता है। लेकिन कप्तान के रूप में हार्दिक पांड्या के तेवर इन सभी क्रिकेटरों से अलग है। उनमें एक उतावलापन है जो उनकी भवनाओं की तीव्रता को सीमा से आगे बढ़ा देता है। वे विराट कोहली से भी ज्यादा आक्रामक कप्तान बन सकते हैं। अगर हार्दिक भविष्य के कप्तान हैं तो साथी खिलाड़ियों को अपनी कमियों को जल्द दूर करने पर ध्यान देना होगा।
गलती खेल का हिस्सा, अर्शदीप पर भरोसा
कोई खिलाड़ी मैदान पर जानबूझ कर गलती नहीं करता। उसे भी अपना आत्मसम्मान प्यारा होता है। लेकिन न चाहते भी कई बार खिलाड़ी से गलती हो जाती है। कभी-कभी तो हद से ज्यादा। जैसे अर्शदीप सिंह ने टी-20 मैच में लगातार तीन नो बॉल डाल कर ब्लंडर कर दिया। लेकिन इतनी बड़ी गलती के बाद भी टीम प्रबंधन ने अर्शदीप पर भरोसा कायम रखा। कोच और कप्तान ने उन्हें समर्थन दिया। वे श्रीलंका के खिलाफ तीसरे टी-20 मैच में खेले। तीन विकेट लेकर अपनी क्षमता दिखायी। ऐसा इस लिए मुमकिन हुआ क्यों कि कोच और कप्तान उनके साथ खड़े थे। इससे अर्शदीप का खोया आत्मविश्वस लौट आया। उन्होंने अपने तरकश से सधे तीर निकाले और 3 विकेट झटक लिये। कई ऐसे क्रिकेटर हुए हैं जिनका अलग अलग कारणों से खेल खराब हुआ। लेकिन टीम प्रबंधन के भरोसे के कारण वे बाद में मैच विजेता खिलाड़ी बन के उभरे। मौजूदा दौर में बेन स्टोक्स इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं।
जब तक ‘राहुल सर' हैं, ऐसा ही चलेगा
कुछ दिनों पहले वनडे कप्तान रोहित शर्मा ने कहा था, हम किसी खिलाड़ी का आंकलन दो चार मैचों के आधार पर नहीं करेंगे। उसे पूरा मौका देंगे। अगर प्रतिभा की खोज करनी है तो मौके भी देने पड़ेंगे। इसके लिए धैर्य रखना होगा। जीत-हार के दबाव के सोखने के लिए हर जोखिम लेनी पड़ेगी। तब ये कहा जा रहा था कि कप्तान रोहित शर्मा और कोच राहुल द्रविड़ हार की कीमत पर भी कुछ खिलाड़ियों को परखना चाहते थे। वे इसी हार पर धैर्य रखने की बात कर रहे थे। भविष्य का टीम बनाने के लिए कुछ तो कुर्बानियां देनी होंगी। अभी अर्शदीप सिंह को बाएं हाथ का सबसे प्रतिभाशाली तेज गेंदबाज माना जा रहा है। उनको मुख्य तेज गेंदबाज के रूप में तैयार किया जा रहा। किसी गलती पर उस खिलाड़ी को ही सबसे अधिक शर्मिंदगी होती है। ये कसक ही उसे अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है। भारत का कप्तान चाहे जो भी हो, जब तक राहुल द्रविड़ हेड कोच रहेंगे, खिलाड़ियों को उनकी तरफ से नैतिक समर्थन मिलता रहेगा। उनकी इसी नीति के कारण विराट कोहली ने अपना खोया हुआ फॉर्म हासिल किया था। अब अर्शदीप के साथ हैं राहुल सर। हार्दिक चाहे जितने आक्रामक हों उन्हें भी इस रास्त पर चला होगा। यह टीम और कप्तान के हित में भी है।
क्या अहमियत है नैतिक समर्थन की ?
टीम प्रबंधन के नैतिक समर्थन से कैसे खिलाड़ी की जिंदगी बदल जाती है, यह श्रीलंका के पूर्व कप्तान मर्वन अटापट्टू की कहानी से समझा जा सकता है। मर्वन अटापट्टू ने 1990 में भारत के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया था। उनकी शुरुआत अच्छी नहीं रही। दोनों ही पारियों में जीरो पर आउट हो गये। उनकी पहली 6 टेस्ट पारियों का स्कोर देखिए- 0,0, 0,1,0,0 यानी पहली छह टेस्ट पारियों में 5 शून्य और 1 रन। पहले टेस्ट में जीरो का चश्मा पहनने के बाद उन्हें अगले टेस्ट से ड्रॉप कर दिया था। 2 साल बाद उन्हें दूसरा टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला। नतीजा फिर वही। जीरो और 1 रन। इस खराब प्रदर्शन के बाद किसी खिलाड़ी का करियर खत्म माना जाता। लेकिन श्रीलंका के क्रिकेट प्रबंधन को अटापट्टू की बैटिंग स्किल पर बहुत भरोसा था। लेकिन वे भरोसे पर खरे नहीं उतर रहे थे। लेकिन दाद देनी होगी श्रीलंकाई क्रिकेट बोर्ड और चयनकर्तों की। अटापट्टू जीरो पर जीरो बनाते रहे, लेकिन वे उन्हें मौके पर मौके देते रहे। उनके चयन पर सवाल भी उठते रहे लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
बड़ी ताकत है भरोसे में
वे शुरु की 17 टेस्ट पारियों में 6 बार 0 पर आउट हुए। लेकिन 1996 में मिले मौके का उन्होंने भरपूर फायदा उठाया। फिर तो कमाल हो गया। वे पिच पर ऐसे जम जाते जैसे कि अंगद के पांव हों। उन्हें डिगाना मुश्किल हो जाता। 18 वें टेस्ट में पहला शतक लगाया। 90 टेस्ट खेले और 5 हजार से अधिक रन बनाये। 16 शतक लगाये जिसमें से 6 दोहरे शतक थे। दुनिया में केवल छह बल्लेबाजों ने ही उनसे अधिक डबल सेंचुरी लगायी है। वनडे क्रिकेट में 8 हजार से अधिक रन बनाये जिसमें 11 शतक हैं। जिस खिलाड़ी ने टेस्ट क्रिकेट पहले छह साल में सिर्फ 1 बनाये उसने अचानक रनों का अंबार लगा दिया। इसे ही कहते हैं भरोसे की ताकत।
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