Rajasthan : शादी के बाद 5 बेटों ने 70 वर्षीय मां को ठुकराया, बरगद के पेड़ के नीचे जिंदगी बिता रहीं कविता
श्रीगंगानगर, 15 मई। नाम कविता। उम्र 70 साल। औलाद पांच बेटे एक बेटी और जिंदगी खानाबदोश सी। ठिकाना बस स्टैंड के पास वाला बरगद का पेड़। जिन छह बच्चों को गांव-गांव गली गली पुराने कपड़ों के बदले बर्तन बेचकर पाला और जब वे बड़े हुए तो एक-एक करके मां को छोड़ते गए। आज मां अकेली है। बेबस है।
श्रीगंगानगर बस स्टैण्ड के पास बरगद के पेड़ के नीचे शरण
हर किसी को झकझोर देने वाली यह कहानी है राजस्थान के श्रीगंगानगर की। यहां के बस स्टैण्ड के मुख्यद्वार के पास बरगद के पेड़ के नीचे शरण लिए बैठी बुजुर्ग महिला कविता को अपनों का इंतजार है।अपनी बेबसी बयां करते करते कविता का गला रुंध गया और आंख भर आई। बच्चों ने भले ही कविता को ठुकरा दिया। अकेले छोड़ दिया, मगर कविता आज भी अपने बच्चों की सलामती की दुआ करती नजर आती है।
फेरी लगाकर बेचती थीं बरतन
मीडिया से बातचीत में कविता कहती हैं कि वे और उनके पति फेरी लगाकर पुराने कपड़ों के बदले बरतन बेचा करते थे। किराए के मकान में रहकर पांच बेटों व एक बेटी को पाला। करीब पच्चीस वर्ष पहले पति का निधन हो गया। उस वक्त बेटों की उम्र 18 से 20 साल की थी। फिर भी घर का पूरा बोझ कविता ने अपने कंधों पर उठाया।
बेटे नैनीताल जाकर बस गए
सब बेटों की धूमधाम से शादी की। बेटी के भी हाथ पीले किए। फिर जो हुआ उसकी कविता ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। सभी बेटे-बहू नैनीताल में जाकर बस गए। बेटी ससुराल चली गई। घर पर कविता अकेली रह गई। मकान का किराया नहीं चूक पाया तो बस स्टैंड के पास आकर शरण ले ली।
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मांगकर खाने को मजबूर है मां
शुरुआत में तो बच्चे जब भी श्रीगंगानगर आते तो मां से मिलने बस स्टैण्ड आ जाया करते थे, मगर किसी ने भी मां को अपने साथ रखने की जहमत नहीं उठाई। बेटे बहू कहते हैं कि वे अपने बच्चों को पालें या मां की देखभाल करें। अब यहां पर कविता सुबह-शाम को दान में मिलने वाले भोजन के भरोसे है। कहती हैं कि बच्चों की याद आती है तो उनकी तस्वीर देख लेती हूं। मोबाइल है नहीं। ना ही बच्चों से कभी बात हो पाती है।