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चुनावी बॉन्ड से पार्टियों ने कमाया मिड डे मील योजना के बजट के बराबर धन

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Provided by Deutsche Welle

नई दिल्ली, 01 अगस्त। आरटीआई के तहत आरटीआई कार्यकर्ता कोमोडोर लोकेश बत्रा ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग से चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी मांगी थी. जवाब में विभाग ने जो जानकारी दी है उसके तहत पता चला है कि 2018 में हुई बॉन्ड की शुरुआत से लेकर 2022 तक इसके जरिए राजनीतिक पार्टियों को 10,000 करोड़ रुपये चंदे में दिए गए हैं.

विभाग के मुताबिक इन बॉन्ड की बिक्री के 21वें दौर के तहत एक से 10 जुलाई के बीच 10,000 करोड़ का आंकड़ा पार हो गया. अभी तक कुल 10,246 करोड़ मूल्य के कुल 18,779 बॉन्ड बेचे जा चुके हैं. सभी बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की शाखाओं के जरिये बिके, जो इन्हें बेचने के लिए अधिकृत इकलौता बैंक है.

(पढ़ें: राष्ट्रीय पार्टियां हो या क्षेत्रीय, सब की फंडिंग के स्रोत हैं 'अज्ञात')

चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत मत हासिल करने वाली पार्टियां चुनावी बॉन्ड से कमाई कर सकती हैं

इतनी धनराशि केंद्र सरकार की कई बड़ी योजनाओं के कुल आबंटन के बराबर है. 2022-23 में सरकारी स्कूलों में भोजन देने के लिए चलाए जाने वाली 'मिड डे मील' योजना के लिए कुल आबंटन को घटा कर करीब 10,000 करोड़ कर दिया गया था.

चुनाव नहीं, फिर भी चंदे से कमाई

इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक एसबीआई ने कोमोडोर बत्रा को बताया कि ताजा दौर में एक से 10 जुलाई 2022 के बीच अलग अलग पार्टियों ने 389.5 करोड़ मूल्य के 475 बॉन्ड भुना भी लिए.

यह ऐसे समय पर हुआ जब देश में ना लोक सभा चुनाव थे और ना किसी भी राज्य में विधान सभा चुनाव. साल के अंत में दो राज्यों - गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने हैं.

(पढ़ें: इलेक्टोरल बॉन्ड: सत्ताधारी बीजेपी को चंदे के तौर पर मोटी रकम)

चुनावी बॉन्ड की योजना केंद्र सरकार 2017 में ले कर आई थी और 2018 में इसकी शुरुआत हुई. इसके तहत गुमनाम रूप से बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं और फिर पार्टियां इन बॉन्ड को भुना सकती हैं.

मोदी सरकार ने 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत की थी

बॉन्ड 1,000, 10,000, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ मूल्य वर्ग में उपलब्ध हैं. ये सिर्फ उन्हीं पार्टियों द्वारा हासिल किए जा सकते हैं जिन्होंने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत अपना पंजीकरण करवा रखा हो और पिछले लोक सभा या विधान सभा चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत मत हासिल किए हों.

कई विशेषज्ञ और ऐक्टिविस्ट चुनावी बॉन्ड का विरोध करते हैं क्योंकि ये चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाने की जगह घटाते हैं. पार्टियां चंदे का जो ब्यौरा चुनाव आयोग को देती हैं उनमें चुनावी बॉन्ड से मिले चंदे के बारे में जानकारी नहीं देती हैं.

(पढ़ें: बढ़ रही है राजनीतिक पार्टियों की कमाई)

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज जैसी संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाऐं दायर कर चुनावी बॉन्ड पर बैन लगाए जाने की मांग की है, लेकिन इन याचिकाओं पर सुनवाई तीन साल से लंबित है.

Source: DW

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English summary
political parties raise rs 10000 cr through electoral bonds
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