Pakistan Election results 2018: क्यों लोकतंत्र के लिए बैड न्यूज है इमरान खान का पीएम बनना!
पाकिस्तान में अब बहुत हद तक साफ हो चुका है कि पूर्व क्रिकेटर और अब पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के मुखिया इमरान खान देश के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं।
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में अब बहुत हद तक साफ हो चुका है कि पूर्व क्रिकेटर और अब पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के मुखिया इमरान खान देश के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं। पाकिस्तान एक ऐसा देश जहां पर 70 वर्षों के इतिहास में कई बार दुनिया ने यहां की मिलिट्री और इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई का दबदबा राजनीति में साफ-तौर पर देखा है। सेना और आईएसआई के दबदबे वाले पाक में कहीं न कहीं इमरान का पीएम बनना लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है, ऐसा कई विशेषज्ञों का मानना है। विशेषज्ञों के मुताबिक सेना जिस देश पर राज करती हो वहां पर इमरान के पीएम बनने का मतलब है लोकतांत्रिक व्यवस्था को पीछे धकेलना। ये भी पढ़ें-पाकिस्तान चुनाव: क्यों इमरान खान अमेरिका से इतनी नफरत करते हैं?
लोकतांत्रिक व्यवस्था उतरेगी पटरी से
एशियाई राजनीति पर पकड़ रखने वाले अमेरिका बेस्ड विशेषज्ञ सदानंद धूमे की मानें तो इमरान का पीएम बनना पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पटरी से उतारना होगा। बहुत से पाकिस्तानी नागरिक उन्हें पसंद करते हैं और पिछले कुछ वर्षों में 65 वर्ष के इमरान ने दक्षिण एशिया की राजनीति में अपनी अच्छी प्रतिष्ठा भी कायम कर ली है, जो कि बहुत कम ही देखने को मिलता है। यन् 1980 और 1990 में पाकिस्तान के क्रिकेट को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले इमरान खान ने खुद को युवाओं को प्रेरणा देने वाले नेता के तौर पर कायम कर लिया है। साल 1992 में उन्होंने पाकिस्तान को वर्ल्ड कप जितवाया और क्रिकेट को नई बुलंदियों पर लेकर गए। उन्होंने पाकिस्तान में पहले कैंसर हॉस्पिटल का निर्माण अपनी मां के नाम पर करवाया और साथ ही साथ एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी का तोहफा भी युवाओं को दिया। ऑक्सफोर्ड में शिक्षा हासिल करने वाले इमरान को ब्रिटेन और भारत में काफी पसंद किया गया। क्रिकेट के बाद इमरान राजनीति की दुनिया में आए। सत्ता में इमरान के आने का मतलब पाकिस्तान और साउथ एशिया दोनों पर ही एक तरह का नकारात्मक प्रभाव पड़ना है।
सेना ने भी की अप्रत्यक्ष मदद
खान का पाकिस्तान की राजनीति में आना और फिर चुनावों में इस तरह की विशाल जीत हासिल करना, सिर्फ उनके अकेले के प्रयास नहीं हैं। इमरान को सेना के दबदबे का फायदा मिला है जिसने पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय और जमीन से जुड़े नेता पूर्व पीएम नवाज शरीफ को सत्ता से दूर कर दिया। पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने नवाज और उनकी बेटी मरियम को, भ्रष्टाचार का दोषी पाया। नवाज को उनके पद से हटा दिया गया और इस माह उन्हें कोर्ट ने 10 वर्ष की कैद की सजा सुनाई। कहीं न कहीं लोग मानते हैं कि नवाज और उनकी बेटी को जेल भिजवाने के पीछे पाकिस्तान की सेना का भी अहम रोल है। नवाज हमेशा से ही पूर्व राष्ट्रपति और रिटायर्ड जनरल परवेज मुशर्रफ पर सजा की मांग करते रहे हैं।
सेना की कठपुतली हैं इमरान
वहीं सिर्फ इमरान की साफ इमेज ही उनकी सफलता की गारंटी नहीं है। मानवाधिकारों की वकालत करने वाले और उनके राजनीतिक विरोधी अक्सर ही उन्हें निशाना बनाते रहते हैं। वहीं पाकिस्तान का मीडिया भी इमरान को लेकर काफी संजीदा है। अखबार ने लिखा है कि इमरान भले ही यह दावा करते रहे हैं कि वह सेना की जेब में नहीं हैं लेकिन वह हमेशा ही सेना को अपना समर्थन देते नजर आते हैं। पाकिस्तान की सेना जो कि यहां की राजनीति में सीधे तौर पर हस्तक्षेप करती है और कई बार राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप कर चुकी है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इमरान सेना के आदेशों पर ही चलेगी। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में राजनीति वैज्ञानिक सी क्रिस्टिन फेयर कहती हैं, 'वह सेना की कठपुतली हैं। वह आज जिस मुकाम पर हैं उसके पीछे सेना और आईएसआई है।'
आतंकी संगठनों पर नरम है इमरान का रुख
पाकिस्तान की कई समस्याओं को सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था से ठीक किया जा सकता है। जो लोग यह मानते हैं कि चुने हुए नेता अब सामाजिक कार्यों के लिए जरूरी संसाधनों पर रकम खर्च करेंगे न कि मिलिट्री पर तो उनके लिए इमरान का पीएम बनना कहीं न कहीं एक बुरी खबर है। पाकिस्तान के कई जर्नलिस्ट्स और विशेषज्ञों के मुताबिक पाकिस्तान में पहले ही मीडिया को लेकर मिलिट्री ने अभियान छेड़ा हुआ है ताकि नवाज की इमेज को नुकसान हो और इसका फायदा इमरान को मिल सके। इमरान का रुख कई चरमपंथी नेताओं को लेकर भी काफी नरम है। वह हमेशा आतंकवाद के लिए अमेरिका को दोष देते हैं और हमेशा ही आतंकी संगठन जैसे हक्कानी और लश्कर-ए-तैयबा का नाम लेने से बचते हैं। दोनों ही संगठनों को पाकिस्तान आर्मी की ओर से अफगानिस्तान और भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ने के लिए समर्थन हासिल है।
पाकिस्तान को बनाएंगे इस्लामिक देश
इमरान ने कभी भी इस्लामिक आतंकियों का विरोध नहीं किया और उनकी इसी आदत से लोग उन्हें तालिबान खान भी बुलाने लगे। इमरान ईशनिंदा के कड़े कानूनों के भी समर्थक हैं जिसे अक्सर पाकिस्तान में बसे अल्संख्यक समुदाय जैसे क्रिश्चियन, अहमदीया मुसलमानों और हिंदुओं को डराने के लिए प्रयोग करने वाला माना जाता है। अर्थव्यवस्था की बात करें तो इमरान अक्सर ही पाकिस्तान को 'इस्लामिक कल्याणकारी देश' में बदलने की बात कहते हैं। जबकि हकीकत में पाकिस्तान की आर्थिक हालत पिछले एक वर्ष से काफी खराब है और यहां पर फॉरेन एक्सचेंज 11.4 बिलियन डॉलर तक गिर गया है यानी पाक मुश्किल से दस हफ्तों का ही आयात झेल सकता है। ऐसे में इमरान का देश को इस्लामिक कल्याणकारी देश में बदलने की बात भी विशेषज्ञों को काफी हद तक नागवार गुजरती है।