MCD Election 2022: राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ेगा इन नतीजों का असर
दिल्ली नगर निगम चुनाव 2022 में गुजरात चुनाव की तरह सभी दलों ने अपनी ताकत झोंक रखी है। इस बार चुनाव स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा जाएगा। इस वजह से दिल्ली MCD चुनाव की राजनीतिक अहमियत बढ़ गयी है।
MCD Election 2022: रविवार को दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिए वोटिंग होगी। इस बार यह चुनाव कई मायनों में अलग है। गुजरात विधानसभा चुनाव के समय इसके सम्पन्न होने से इसकी राजनीतिक अहमियत बढ़ गयी है। इसके नतीजे गुजरात और हिमाचल की मतगणना से एक दिन पहले मिल जाएंगे। यानी दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजों का राष्ट्रीय महत्व है। इसके अलावा अब लगभग सभी दल यही चाहते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के स्थानीय शासन पर उनका दबदबा रहे। इसलिए उन्होंने विधानसभा चुनाव की तरह इस चुनाव में भी अपनी ताकत झोंकी है। आमतौर पर नगर निकाय के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं लेकिन पहली बार यहां राष्ट्रीय मुद्दों पर जनता से वोट मांग गया।
भाजपा और आप ने विधानसभा चुनाव की तरह किया प्रचार
भाजपा, आप और कांग्रेस तो मैदान में हैं ही बसपा, सपा, रालोद जदयू, एआइएमआइम, एनसीपी, सीपीएम, सीपीआइ जैसे दल भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसलिए इस बार दिल्ली में पार्षद के टिकट के लिए विधानसभा चुनाव से अधिक मारामारी रही। चुनाव जीतने के ख्याल से आप, भाजपा और कांग्रेस ने विधायकों, पूर्व विधायकों के रिश्तेदारों को टिकट दिये हैं। भाजपा पिछले तीन बार से दिल्ली नगर निगम का चुनाव जीत रही है। लेकिन इस बार उसके सामने कठिन चुनौती थी। इसलिए भाजपा ने सात राज्यों के अपने मुख्यमंत्रियों को यहां चुनाव प्रचार में उतारा था। केन्द्रीय मंत्रियों ने भी भाजपा प्रत्याशियों के लिए वोट मांगे थे। इतनी चुनावी गहमागहमी पहले कभी नहीं रही। भाजपा और आप ने सभी 250 वार्डों के लिए उम्मीदवार उतारे हैं। कांग्रेस ने 247 उम्मीदवार दिये हैं। बसपा 132 वार्डों में चुनाव लड़ रही है। एआइएमआइएम और चंद्रशेखर रावण की पार्टी में गठबंधन है। ओवैसी की पार्टी 15 सीटों पर चुनौती पेश कर रही है।
शीला दीक्षित, केजरीवाल नहीं रोक पाये थे भाजपा की राह
दिल्ली नगर निगम की राजनीति में भाजपा एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित है। इसका वोटिंग पैटर्न लोकसभा या विधानसभा चुनाव से बिल्कुल अलग है। 2007 और 2012 में कांग्रेस, केन्द्र और दिल्ली राज्य में सत्तारूढ़ थी। इसके बाद भी भाजपा नगर निगम चुनाव जीत गयी थी। शीला दीक्षित की सरकार या मनमोहन सिंह की सरकार नगर निगम चुनाव में भाजपा की राह नहीं रोक पायी थी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में करिशमा करने वाले अरविंद केजरीवाल भी 2017 में भाजपा को नहीं हरा पाये थे। 2022 में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली नगर निगम चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। उन्होंने वार्डों में साफ-सफाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वोट मांगा है। उन्होंने कूड़े के ढेर के आधार पर भाजपा की छवि बिगाड़ने की कोशिश की। दूसरी तरफ भाजपा ने सत्येन्द्र जैन और टिकट बेचने के मामले को उछाल कर आप को घेरने की कोशिश की। कांग्रेस नगर निगाम चुनाव के जरिये दिल्ली की राजनीति में पुनर्स्थापित होना चाहती है। अब फैसला जनता को करना है। रविवार को दिल्ली के मतदाता राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला कर देंगे जिसके नतीजे 7 दिसम्बर को घोषित होंगे।
भाजपा पर जीत बरकरार रखने की चुनौती
पिछले चुनाव में 272 वार्डों में चुनाव हुआ था। परिसीमन के बाद 22 वार्ड कम हो गये इसलिए 250 वार्डों में चुनाव हो रहे हैं। पिछली बार भी भाजपा, आप और कांग्रेस के अलावा 18 दलों ने चुनाव लड़ा था। लेकिन तब अन्य दलों के केवल 11 वार्ड पार्षद ही चुने गये थे। भाजपा की बंपर जीत हुई थी। उसे 181 वार्डों में जीत मिली थी। आप के खाते में 48 और कांग्रेस के खाते में 30 जीत दर्ज हुई थी। 2017 के चुनाव के समय दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार थी। लेकिन मतदाताओं ने नगर निगम के चुनाव में आप की बजाय भाजपा को पसंद किया। राज्य में सत्तारूढ़ रहने के बाद भी आप, भाजपा को बिल्कुल टक्कर नहीं दे पायी। वह बहुत बड़े अंतर से दूसरे स्थान पर फिसल गयी थी। 2012 के नगर निगम चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के मुकाबला हुआ था। उस समय आम आदमी पार्टी का गठन नहीं हुआ था। 2012 के चुनाव में भाजपा को 138 तो कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं थीं। बसपा को 15 वार्डों में जीत मिली थी। यानी दस साल पहले स्थानीय चुनाव में बसपा तीसरी बड़ी ताकत थी। इस चुनाव में सपा को 2, लोजपा और जदयू को एक-एक सीट मिली थी। 2022 में भाजपा चौथी जीत हासिल करने के लिए मैदान में है।
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