Success: पापा चलाते थे हाथ रिक्शा...हवलदार बेटे के मजबूत कंधों ने देश को दिलाया गोल्ड
जबलपुर, 09 अगस्त: किसी बुलंदी पर पहुंचना या उसे छूना इतना आसान नहीं होता, जितनी आसानी से हम उसके बारे में सोच लेते है। बड़ी कामयाबी के पीछे लगन, मेहनत और जिंदगी के कड़े संघर्ष की कहानी छिपी होती है। ऐसी ही कहानी, गोल्ड मैडलिस्ट वेटलिफ्टर अचिंता शेउली की है। पिता हाथ रिक्शा चलाते थे, बचपन में 11 साल की उम्र में अचानक पिता की मौत हो गई। बढ़ती मुफलिसी के बीच अचिंता के कंधो की ताकत भी बढ़ती चली गई। लेकिन अब अचिंता के लिए शोहरत, बुलंदी और सुनहरे सपने लिए हर रोज नया सबेरा है।
कौन है ये वेटलिफ्टर अचिंता शेउली ?
नाम अचिंता शेउली...हिंदी में अचिंता का मतलब निश्चिंतता, सुखी होता है। पश्चिम बंगाल के देउलपुर जैसी छोटी सी जगह में जन्मे अचिंता आज अपने नाम के अनुरूप बुलंदियां छू रहे है। महज 20 साल की उम्र में अचिंता ने देश के चुनिंदा वेटलिफ्टर के रूप में अपनी पहचान जगह बनाई है। जीवन के तमाम संघर्षों की अचिंता को अब कोई चिंता नहीं। साल 2011-12 में अपने वेटलिफ्टिंग करियर की शुरुआत की और 2022 में बर्मिंघम में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में कीर्तिमान बनाया। इस जांबाज वेटलिफ्टर ने परिवार के साथ पूरे देश का नाम रौशन किया।
पिता चलाते थे हाथ रिक्शा, बड़े भाई ने उठाया जिम्मा
अचिंता ने आज जिस ऊंचाई को छुआ है। उसके पीछे कई तरह के संघर्षों की कहानी छिपी है। परिवार ने मुफलिसी का बहुत बुरा दौर देखा। जब छोटे थे, तो परिवार की गाड़ी चलाने उनके पिता प्रतीक शेउली, हाथ रिक्शा चलाते थे। मजदूरी के सहारे वह परिवार को पालते थे। अचिंता की जब 11 साल उम्र रही,तो अचानक पिता का निधन हो गया। यह ऐसा वक्त था, जब भविष्य के वेटलिफ्टर को अपनी दिशा तय करना था। बड़ा भाई भी शुरू से वेटलिफ्टिंग में दिलचस्पी रखता था, उसी की प्रेरणा मिली और अचिंता आगे बढ़ता चला गया। इसके लिए बड़े भाई आलोक ने वेटलिफ्टिंग छोड़ दी, क्यों भाई के साथ पूरे परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उसके सिर पर था। अचिंता के कैरियर में कोई रूकावट न आए, इसके लिए मां भी सिलाई कढ़ाई का काम करने लगी।
कॉमनवेल्थ गेम में रिकॉर्ड स्नेचिंग से गोल्ड
31 जुलाई 2022 की रात अचिंता के लिए सुनहरी रात साबित हुई। बर्मिंघम में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स मे पुरषों की वेटलिफ्टिंग में भारत की ओर से अचिंता शेउली प्रतिनिधित्त्व कर रहे थे। 73 किलोग्राम भार कैटेगरी में क्लीन एंड जर्क राउंड में पहली कोशिश में ही उन्होंने अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ दिए। 166 किलोग्राम की स्नेचिंग की फिर दूसरे प्रयास में 170 किलोग्राम की स्नेचिंग करने में सफल रहे। जिसमें उन्हें स्वर्ण पदक हासिल हुआ। गोल्ड हासिल होते ही अचिंता ख़ुशी से झूम उठे। अचिंता ने तीसरा स्वर्ण पदक जीता है।
बड़े भाई और हिन्दुस्तान को समर्पित यह गोल्ड
कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल हासिल कर अचिंता बेहद खुश है। गेम्स जब भारत वापसी पर बड़े भावुक अंदाज में उन्होंने कहा था कि यह कामयाबी बड़े भाई आलोक और देश के लिए समर्पित है। बेटे को इतनी ऊंचाई पर पहुँचता देख मां की आँखों से भी ख़ुशी के आंसू छलक पड़े। पश्चिम बंगाल की जिस जगह में अचिंता जन्मे वहां उनकी जय-जयकार हो रही है। अचिंता का कहना है कि वह आगे भी इसी तरह देश का सम्मान बरक़रार रखना चाहते है।
जबलपुर में 1 टीटीआर में है हवलदार
अचिंता शेउली वर्तमान में मप्र के जबलपुर में सेना के सांकेतिक प्रशिक्षण केंद्र में पदस्थ है। गेम्स के बाद जब वह वापस जबलपुर लौटे तो एयरपोर्ट से लेकर उनके ट्रेनिंग सेंटर तक जोरदार स्वागत किया गया। आर्मी अफसरों ने उन्हें खुली जीप में खुमाया फिर उनके चहेतों ने स्वर्ण पदक हासिल करने की अचिंता को बधाई दी। अचिंता यहां सेना के 1 टीटीआर में हवलदार के रूप में पदस्थ है। अचिंता शेउली
ये
भी
पढ़े-कमाल
की
है
ये
स्कूटी
वाली
मैडम,
जिस
स्कूल
को
सरकार
कर
रही
थी
बंद,
उसे
कर
दिया
जिंदा